हिमाचल प्रदेश चुनाव 2017: सीट नंबर 47 घुमारवीं (अनारक्षित) विधानसभा क्षेत्र के बारे में जानिये
शिमला। घुमारवीं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सीट नंबर 47 है। बिलासपुर जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 75,415 मतदाता थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां से राजेश धर्माणी विधायक चुने गये। घुमारवीं ब्राहम्ण बहुल्य चुनाव क्षेत्र है। यहां से ज्यादातर ब्राहम्ण ही चुनाव जीतते आये हैं। यहां जातिगत समीकरण कभी भी चुनावों के दौरान उभरे तो नहीं । लेकिन ब्राहम्ण व राजपूत मतदाता चुनाव की तस्वीर बदलते रहे हैं। पिछले अरसे से घुमारवीं ने विकास के नये आयाम भी छुये हैं। लेकिन रोजगार के कोई नये अवसर उपलब्ध नहीं हो पाये। लोगों के लिये आज भी अपने काम धंधे ही रोजगार के साधन हैं।
घुमारवीं
(अनारक्षित)
विधानसभा
क्षेत्र
एक
नजर
में
जिला:
बिलासपुर
लोकसभा
चुनाव
क्षेत्र
:
हमीरपुर
मतदाता:
79,630
जनसंख्या
(2011)
:
1,18,330
साक्षरता
:
70
प्रतिशत
अजिविका:
खेती
बाड़ी,परंपरागत
काम
धंधा
शहरीकरण:
ग्रामीण
घुमारवीं
से
अभी
तक
चुने
गये
विधायक
वर्ष
चुने
गये
विधायक
पार्टी
संबद्धता
2012
राजेश
धर्माणी
कांग्रेस
2007
राजेश
धर्माणी
कांग्रेस
2003
करम
देव
धर्माणी
भाजपा
1998
कश्मीर
सिंह
कांग्रेस
1993
कश्मीर
सिंह
कांग्रेस
1990
करमदेव
धर्माणी
भाजपा
1985
कश्मीर
सिंह
कांग्रेस
1982
नारायण
सिंह
स्वामी
भाजपा
1977
नारायण
सिंह
स्वामी
जनता
पार्टी
घुमारवीं के विधायक 45 वर्षीय राजेश धर्माणी आईआईटी हमीरपुर से बी टेक हैं। वह राजनिति में नहीं होते तो आज एक कुशल इंजिनियर होते। उन्होंने बिजनेस मेनेजमेंट में एमबीए भी किया है। उनकी एक बेटी है। धर्माणी इलाके की जानीमानी समाज सेवी संस्था संवेंदना के संस्थापक सदस्य हैं। वह युवा कांग्रेस से होते हुये राजनिति में आये। व 2007 में उन्होंने पहला चुनाव जीता। और 2012 में दोबारा विधायक चुने गये। और वीरभद्र सरकार में मुख्य संसदीय सचिव बने। लेकिन यह विडंबना ही रही कि धर्माणी की मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के साथ पूरे कार्यकाल में पटरी ही नहीं बैठ पाई। व तनातनी भरे रिशतों के चलते उन्होंने नाम के ही सीपीएस बने रहे। उन्होंने सरकारी सुविधाओं का विरोध स्वरूप कोई लाभ नहीं उठाया। धर्माणी की शराफत के चरचे इलाके में सुनने को मिलते हैं। इसी वजह से उनका इलाके में रूतबा है। लोगों ने भले ही उन्हें सर आंखों पर बिठाया हो, लेकिन मौजूदा राजनिति उन्हें रास नहीं आई। एक समय तो उन्हें प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के दावेदार के रूप में भी स्वीकार किया जाना लगा था।