गुजरात चुनाव से पहले पाटीदारों को लेकर क्या चल रहा है? जानिए
अहमदाबाद, 18 अप्रैल: गुजरात में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए सभी दलों के लिए एक बार फिर से पाटीदार समाज बहुत ही अहम हो गया है। बीजेपी एक पाटीदार नेता को फिर से सीएम की कुर्सी पर बिठा चुकी है। आम आदमी पार्टी भी संभावित चेहरों पर डोरे डालने की ताक में लगी हुई है। मुश्किल में कांग्रेस ज्यादा है। क्योंकि, वह एक पाटीदार नेता को लाना चाह रही है तो दूसरा छिटकने की धमकियां दे रहा है। आइए समझते हैं कि सभी दलों में पाटीदार वोट बैंक पर कब्जा करने के लिए क्या कुछ चल रहा है।
नरेश पटेल के लिए प्रशांत की बैटिंग की खबरें
शनिवार को जब चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस नेतृत्व से मिले तो उनके प्रमुख एजेंडे में गुजरात के प्रभावशाली लेउआ पटेल (पाटीदार) नेता नरेश पटेल की पार्टी में एंट्री भी प्रमुख था। चर्चा है कि प्रशांत खुद और पटेल दोनों को कांग्रेस में लेने की डील एकसाथ कर रहे हैं, इसकी एक रिपोर्ट वन इंडिया पहले भी दे चुका है। गुजरात में पाटीदार समाज से कुल पांच लोग मुख्यमंत्री बन चुके हैं, जिनमें से चार लेउआ पटेल ही रहे हैं। प्रदेश में बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी सभी दल इस समाज के पीछे इसीलिए भाग रहे हैं, क्योंकि राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 60 से ज्यादा सीटों पर पाटीदारों का प्रभाव है।
हार्दिक निकाल चुके हैं कांग्रेस नेतृत्व पर भड़ास
पिछले कुछ साल से कांग्रेस पाटीदारों के बीच में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में है। हार्दिक पटेल को प्रदेश का कार्यकारी अध्यक्ष बनाना भी उसी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन, खोडालधाम ट्रस्ट के प्रभावी पाटीदार नेता नरेश पटेल को लाने की कोशिश कहीं ना कहीं हार्दिक को नाराज कर चुका है। पाटीदार आंदोलन से निकले हार्दिक की वजह से बीजेपी को पिछली बार काफी नुकसान हुआ था। लेकिन, जहां नरेश लेउआ पटेल हैं, वहीं हार्दिक कडवा पटेल हैं। हाल ही में पार्टी नेतृत्व पर हार्दिक इस कदर भड़क चुके हैं कि 'उनकी स्थिति ऐसे नए दूल्हे की तरह है, जिसकी नसबंदी करा दी गई हो।' उन्होंने यह भी कहा था कि '2017 में आपने हार्दिक का इस्तेमाल किया, 2022 में नरेश भाई को करना चाहते हैं और 2027 में कोई और पाटीदार नेता का इस्तेमाल करेंगे।' इसी वजह से जो आम आदमी पार्टी पहले नरेश पटेल पर डोरे डालने की कोशिश कर चुकी है, हार्दिक को पटाने में लगी हुई है।
भाजपा भी पाटीदारों का पूरा समर्थन पाने की कोशिश में
2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सिर्फ 99 सीटों पर सिमट गई थी और उसे इस बात का पूरा अंदाजा है। क्योंकि, हार्दिक पटेल की वजह से पाटीदारों का एक बड़ा तबका पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ चला गया था और बीजेपी वह झटका फिर से बर्दाश्त नहीं करना चाहती। इसलिए, भाजपा भी शांत नहीं बैठी है। तीन दशक हो चुके हैं। कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी ने सत्ता के लिए क्षत्रीय-दलित-आदिवासी और मुसलमानों के गठजोड़ का एक प्रयास किया था, जिसके बाद पाटीदारों ने भाजपा का झंडा उठा लिया और वह उसके बाद के हर चुनाव में आमतौर पर इसी के साथ खड़े रहे हैं। लेकिन, पाटीदार आंदोलन के बाद से पार्टी की मुसीबत जरूर बढ़ी है।
सीएम भूपेंद्र पटेल को चेहरा बना चुकी है बीजेपी
पिछले पांच साल में गुजरात में कांग्रेस के एमएलए की संख्या 77 से घटकर सिर्फ 65 बच गई है। पार्टी के एक नेता ने हाल ही में आरोप लगाया था कि सत्ताधारी पार्टी 10 और विधायकों पर डोरे डालने की कोशिश में है। उधर 2017 से भाजपा को भी सबक मिला है और वह भविष्य में किसी भी सूरत में पाटीदार समाज को फिर से कांग्रेस की ओर नहीं जाने देना चाहती। पिछले साल बीजेपी ने इसी वजह से विजय रुपाणी की जगह पर पाटीदार नेता भूपेंद्रभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति की ओर से फिर विरोध प्रदर्शन शुरू करने की धमकी के बाद राज्य सरकार ने 2015 के पाटीदार आंदोलन से जुड़े 10 मुकदमे वापस लेने का ऐलान किया था।
पीएम मोदी को भी गुजरात की चुनौती मालूम है
पिछले 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उमिया माता मंदिर (यह कडवा पाटीदारों की कुलदेवी हैं) की स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया था। 19 और 20 अप्रैल को पीएम मोदी फिर से गुजरात आ रहे हैं और कई कार्यक्रमों को संबोधित करने वाले हैं। पीएम ने यूपी चुनाव के बाद से ही गुजरात का मोर्चा संभाल लिया हुआ है। राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा है, 'गुजरात की राजनीति में स्मार्ट चीज ये है कि पाटीदार को अपने साथ (कम से कम आपका विरोध न करें) रखें।.......गुजरात में चुनाव जीतना किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों का गृहराज्य है और ये भाजपा को जिताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। '