उम्रकैद की सजा से राहत पाने के लिए बर्खास्त संजीव भट्ट ने खटखटाया गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा
गांधीनगर। जामनगर की एक ट्रायल कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के एक महीने बाद, बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। संजीव वर्ष 1990 के कस्टोडियल डेथ केस में अपनी सजा को चुनौती दे रहे हैं। वह उम्रकैद की सजा से राहत पाना चाहते हैं। बता दें कि, संजीव भट्ट के साथ रिटायर्ड कांस्टेबल प्रवीणसिंह ज़ला को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। ऐसे में उन्होंने 17 जुलाई को ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की। उनकी यह अपील उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार कर ली गई है।
आखिर क्यों हुई संजीव भट्ट को उम्रकैद
मामला 30 अक्टूबर, 1990 को हुई घटना से जुड़ा है, जब भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के चलते दिए गए भारत बंद के दौरान जामजोधपुर निवासी प्रभुदास वैष्णनी को पुलिस ने 132 अन्य लोगों के साथ हिरासत में लिया था। संजीव भट्ट उस समय जामनगर जिसे के एएसपी थे। वैष्णनी की उस वर्ष 18 नवंबर को गुर्दे की गंभीर क्षति के इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। वैष्णनी के भाई, अमृत ने पुलिस में शिकायत दर्ज की थी। इस साल 20 जून को जामनगर की एक सत्र अदालत ने सात आरोपियों को दोषी ठहराया। संजीव भट्ट और ज़ाला के अलावा, पांच अन्य पुलिस हिरासत में मौत के लिए दोषी पाए गए और अदालत ने उन्हें दो साल की जेल की सजा दी है।
जज ने 22 पहलुओं का उल्लेख किया
अपने 432-पृष्ठ के फैसले में, सत्र न्यायाधीश डी एम व्यास ने गवाह की गवाही, चिकित्सा और दस्तावेजी साक्ष्य से प्राप्त अपने निष्कर्षों के 22 पहलुओं का उल्लेख किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि संजीव भट्ट निगरानी कर रहा था और जामनगर के एएसपी के रूप में अपराध का पर्यवेक्षण और दौरा किया था। संजीव भट्ट सह-अभियुक्त के साथ अपराध के स्थान पर मौजूद था। यह इस बात के लिए स्थापित किया गया है कि किसने वैष्णनी की पिटाई की थी, जिसकी होमिसाइडल मौत साबित हुई है।
'पिटाई से वैष्णनी की किडनी खराब हो गई थी'
अदालत ने कहा कि चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस बात का विरोध किया कि पिटाई और यातना के कारण वैष्णनी की किडनी खराब हो गई थी। कोई सतही चोट नहीं थी, लेकिन उन्हें गंभीर आंतरिक चोटें आईं थी। संजीव भट्ट समेत चार व्यक्तियों पर आरोप दर्ज किया गया था।
'संजीव भट्ट का मकसद स्पष्ठ था'
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि संजीव भट्ट का मकसद स्पष्ट था और वही लोगों की मौत की वजह भी बने। कोई भी पुलिसकर्मी शारीरिक चोट या किसी व्यक्ति को यातना देने के लिए अधिकृत नहीं है। अदालत ने यह भी देखा कि वैष्णनी को तब भी पानी मुहैया नहीं कराया गया था, जब उसने हिरासत के दौरान मांग की थी।