बच्चों को सेक्स एजूकेशन देने से घबराएं नहीं, जानिए सही तरीका और क्या है इसकी सही उम्र ?
नई दिल्ली, 20 मई। ये बात तो हम सबको पता है कि सेक्स एजूकेशन का जीवन में कितना महत्व है। वैसे तो यह सबके लिए जरूरी है लेकिन बच्चों और किशोरों को उनकी जिंदगी में सही समय में इसके बारे में जानकारी देना जरूरी हो जाता है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक उम्र में पहुंचने के बाद बच्चे अपने आस-पास होने वाली चीजों के बारे में उत्सुक होते हैं जिसमें उनके शरीर में होने वाले बदलाव भी शामिल हैं। इसलिए परिजनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को सही समय पर सही जानकारी मिल सके ताकि वे इसे कहीं और से पाने की कोशिश न करें।
2 साल के बच्चे
बच्चों को जननांगों सहित शरीर के सभी अंगों का नाम पता होने चाहिए। उन्हें शरीर के अंगों के सही नाम सिखाकर, आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे स्वास्थ्य, चोटों या यौन शोषण के बारे में अधिक अच्छे तरीके से बताने में सक्षम होंगे। यह बच्चों को यह भी समझने में मदद करता है कि शरीर के ये अंग भी अन्य अंगों जैसे हाथ या पैर की तरह ही सामान्य हैं।
प्री
स्कूल-
2
से
4
साल
2
से
4
साल
की
उम्र
के
बच्चों
को
उनकी
समझ
और
रुचि
के
स्तर
के
आधार
पर
आप
बच्चों
को
उनकी
जन्म
के
बारे
में
बता
सकते
हैं।
यह
मत
सोचिए
कि
आपको
एक
ही
बार
में
सब
कुछ
बताना
है।
छोटे
बच्चे
सेक्स
के
बजाय
गर्भावस्था
और
शिशुओं
में
रुचि
रखते
हैं।
इसके
अलावा
उनके
अंदर
यह
समझ
विकसित
कीजिए
कि
उनका
शरीर
उनका
है
और
उनकी
अनुमति
के
बिना
कोई
भी
उनके
शरीर
को
छू
नहीं
सकता
है।
साथ
ही
इस
उम्र
तक
बच्चों
को
ये
भी
बताइए
कि
उन्हें
किसी
और
को
छूने
से
पहले
पूछना
चाहिए
और
उन्हें
अपनी
सीमाओं
के
बारे
में
जानकारी
दीजिए।
5-8 साल के स्कूल जाने वाले बच्चे
इस उम्र में बच्चों के अंदर समझ होना चाहिए कि किसी के लिंग की पहचान केवल उसके जननांगों से ही नहीं होनी चाहिए बल्कि कुछ लोग होमोसेक्सुअल या बाइसेक्सुअल और हेट्रोसेक्सुअल भी होते हैं। बच्चों को सामाजिक दायरे में निजता, नग्नता और रिलेशनशिप में दूसरे के प्रति सम्मान जैसी बुनियादी बातों के बारे में पता होना चाहिए।
किशोरावस्था
से
पहले-
9-12
साल
की
उम्र
किशोरावस्था
से
पहले
ही
बच्चों
में
हॉर्मोनल
चेंज
होने
लगते
हैं
और
किशोरावस्था
में
पहुंचने
तक
ये
बदलाव
नजर
आने
लगते
हैं।
इसलिए
किशोरावस्था
से
पहले
बच्चों
को
सुरक्षित
सेक्स
और
गर्भनिरोधकों
के
बारे
में
बताया
जाना
चाहिए।
उन्हें
गर्भावस्था
और
यौन
संक्रमित
रोगों
के
बारे
में
बुनियादी
जानकारी
होनी
चाहिए।
साथ
ही
उन्हें
यह
भी
समझाना
चाहिए
कि
किशोर
होने
के
मतलब
उन्हें
सेक्सुअली
एक्टिव
होना
नहीं
है।
उन्हें
पॉजिटिव
और
निगेटिव
रिलेशन
के
बारे
में
पता
होना
चाहिए।
उन्हें
सेक्सटिंग
(सेक्सुअल
टेक्स्ट
मैसेज)
सहित
इंटरनेट
सुरक्षा
के
बारे
में
भी
बताना
चाहिए।
किशोर- 13 से 18 साल
किशोरों को मासिक धर्म, स्वप्नदोष और नींद दौरान ऑर्गैज्म के बारे में अधिक विस्तार से जानकारी मिलनी चाहिए। उन्हें गर्भावस्था और यौन संचारित रोगों के और विभिन्न गर्भनिरोधक विकल्पों की जानकारी होनी चाहिए और सुरक्षित यौन संबंध के लिए उनके उपयोग करने के तरीके के बारे में भी पता होना चाहिए। उन्हें एक हेल्थी और अनहेल्थी रिलेशन के बीच के अंतर को भी समझना चाहिए। इसमें दबाव और हिंसा के बारे में सीखना और यौन संबंधों में सहमति का अर्थ समझना शामिल है।
सेहत के साथ बेडरूम लाइफ में रोमांस भी भरती है अच्छी नींद, रिसर्च में खुलासा