Gandhi, Patel and Nehru: नेहरू और सरदार पटेल के आपसी रिश्ते सुधारना चाहते थे गांधीजी
महात्मा गांधी के निधन से पहले जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच के मतभेद सबके सामने खुलकर आ गए थे। उन मतभेदों को महात्मा गांधी समाप्त करना चाहते थे।
Gandhi, Patel and Nehru: सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू के व्यवहार में असमानता थी क्योंकि पटेल ग्रामीण परिवेश के एक साधारण किसान परिवार में पैदा हुए जबकि नेहरू को विरासत का धनी कहा जाता था। महात्मा गांधी का मानना था कि नेहरू उदार थे और उनका खुलापन उन्हें लोकप्रिय बनाता था और वो अंग्रेजों से भारत की आजादी के लिए अच्छे से डील कर सकते थे।
दूसरी तरफ इसके उलट पटेल एकाग्र और थोड़े सख्त थे। वे व्यवहार में कुशल थे लेकिन स्पष्ट बोलने वाले शख्स थे। दिल से धैर्यवान पर हिसाब-किताब में माहिर थे। कांग्रेस कमेटी के सभी नेता जानते थे कि पटेल ही अकेले ऐसे शख्स हैं जो जिन्ना से पाकिस्तान पर अच्छा मोल-भाव कर सकते थे। पटेल राजनीतिक तंत्र का हर पुर्जा पहचानते थे। सबसे बड़ी बात ये है कि दोनों के लिए महात्मा गांधी ही मार्गदर्शी थे।
कई मसलों पर पटेल और नेहरू में मतभेद थे
सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू के बीच मतभेद महात्मा गांधी की हत्या से पहले सबके सामने आ चुके थे। जिसे खुद जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल भी स्वीकार कर चुके थे। दुर्गादास द्वारा संपादित पुस्तक, 'सरदार पटेल का पत्र-व्यवहार' के अनुसार जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल के साथ मतभेदों को स्वीकार करते हुए कहा था, "सरदार और मेरे बीच स्वभावगत मतभेद ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सांप्रदायिक मसलों को लेकर भी मतभेद हैं। ये मतभेद बहुत लंबे समय से चले आ रहे थे, यहां तक कि जब हम कांग्रेस में साथ-साथ काम कर रहे थे तब से ही।"
सरदार पटेल देना चाहते थे इस्तीफा
दोनों नेताओं के बीच मतभेद महात्मा गांधी की हत्या से पहले इतने बढ़ गए थे कि सरदार पटेल ने खत लिखकर महात्मा गांधी से गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने की बात कही थी। दरअसल, 13 जनवरी 1948 को सरदार पटेल ने इस मामले पर महात्मा गांधी को एक चिट्ठी लिखकर कहा कि "पूज्य बापू, आज सुबह सात बजे मुझे काठियावाड़ जाना है। आपको उपवास करते छोड़कर जाना असहनीय तकलीफदेह है, लेकिन कठोर कर्तव्य में और कोई चारा नहीं होता। कल आपके दुख ने मुझे बेचैन कर दिया। मैं क्रोधावेश में सोचने पर मजबूर हो गया। काम का इतना बोझ बढ़ गया है कि मैं दबा जा रहा हूं। अब मुझे लगता है कि इस तरह चलना न तो देश के हित में है और न मेरे हित में। उलटे यह नुकसानदेह हो सकता है।
जवाहर पर तो मुझसे भी ज्यादा भार है। उनका ह्रदय दुख से बोझिल है। हो सकता है, मैं सठिया गया हूं और उनके साथ काम करने और उनका बोझ करने लायक नहीं बचा। मौलाना (आजाद) भी मेरे कामों से अप्रसन्न हैं और आपको बार-बार मेरा बचाव करने के लिए खड़ा होना पड़ता है। यह मेरे लिए भी असहनीय है। इन परिस्थितियों में मेरे और देश के लिए यही बेहतर होगा कि आप मुझे जाने दें। मैं जो कर रहा हूं, उसके विपरीत नहीं जा सकता और जिन लोगों के साथ मैंने आजीवन काम किया है, अगर मैं उनके लिए बोझ और आपके लिए आफत बन गया हूं। इसके बाद भी मैं इस पद से चिपका रहूं तो कम से कम मेरी निगाह में तो इसका अर्थ होगा कि मैं सत्ता का लालची हूं और पद छोड़ने का इच्छुक नहीं हूं। इस असहनीय स्थिति से आप मुझे शीघ्र निकाल दें।"
गांधी 'मनमुटाव' को खत्म करना चाहते थे
30 जनवरी 1948 को अपनी बेटी मणिबेन को लेकर सरदार पटेल नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में महात्मा गांधी से मिलने गये। बातचीत का मुख्य मसला जवाहरलाल नेहरू और पटेल के बीच चल रहा विवाद था। इस दौरान, महात्मा गांधी ने सरदार पटेल से कहा कि दोनों के बीच किसी तरह का विवाद विनाशकारी होगा। महात्मा गांधी ने फैसला किया कि अगले दिन नेहरू और पटेल दोनों के साथ बैठक करेंगे। साथ ही कहा कि मैं इस दृढ़ निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि मंत्रिमंडल में दोनों की उपस्थिति अपरिहार्य है। इस अवस्था में दोनों में से किसी एक का भी अपने पद से अलग होना खतरनाक साबित होगा। उन्होंने अपनी बात रखते हुए पटेल से कहा कि मैं इस मामले पर नेहरू से भी बात करुंगा। अगर जरूरी हुआ तो मैं सेवाग्राम जाना स्थगित कर दूंगा और तब तक दिल्ली नहीं छोडूंगा, जब तक दोनों के बीच फूट की आशंका को पूरी तरह समाप्त न कर दूं। हालांकि, ऐसा कभी न हो सका और उसी दिन गांधी जी की हत्या कर दी गई।
क्या नेहरू भी पटेल को मंत्रिमंडल से हटाना चाहते थे
सरदार पटेल के साथ काम कर चुके वी. शंकर अपनी पुस्तक 'My Reminiscences of Sardar Patel' में लिखते है कि एक बार सरदार को नेहरू का एक पत्र मिला, जिसमें उन्होंने कहा था कि अब सरदार को अपने विभागीय काम नहीं देखने होंगे। पत्र के अनुसार रियासती मंत्रालय गोपालस्वामी आयंगर और गृह मंत्रालय को वे (नेहरू) स्वयं देखेंगे। वी. शंकर ने इस मामले में पटेल की बेटी मणिबेन को सलाह दी कि सरदार पटेल को यह पत्र न दिखाए क्योंकि इससे उनके स्वास्थ्य पर और बुरा असर होगा। वी. शंकर आगे लिखते है, "मुझे विश्वास था कि ऐसा करके मैंने सरदार को पंडित नेहरू के व्यवहार से होने वाली भावनात्मक पीड़ा और दुःख से बचा लिया, वरना उनकी हालत और बिगड़ जाती।"
बापू की मौत के बाद भी मतभेद जारी रहे
महात्मा गांधी के सहयोगी प्यारेलाल अपनी किताब 'महात्मा गांधी- द लास्ट फेज' में लिखते हैं कि गांधी की मौत के बाद भी सरदार और पंडित नेहरू के बीच वैचारिक संघर्ष जारी रहा। एन. वी. गाडगिल अपनी पुस्तक में 'गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड' में यह पुष्टि करते हैं कि मंत्रिमंडल दो गुटों में विभाजित था, जिसमें एक का नेतृत्व पटेल और दूसरे का नेहरू करते थे। उन्होंने अपनी इस आत्मकथा के पृष्ठ 177 पर पुनः लिखा है कि "दोनों के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे थे।"
सरदार ने अपना दुख साझा किया
सरदार पटेल ने सी. राजगोपालाचारी को भी नेहरू से अपने मतभेदों को साझा करते हुए अपने निधन से मात्र दो महीने पहले यानि 13 अक्टूबर 1950 को एक पत्र लिखा, "मानसिक प्रताड़ना की इस प्रक्रिया को लंबा खींचना दर्दनाक है और हमें इसे अभी समाप्त करना होगा, क्योंकि मुझे कोई उम्मीद नहीं दिखती... उनका (नेहरू) रास्ता सुचारू बनाने के लिए मैं अपनी सीमा तक जा चुका हूं, लेकिन मैंने पाया कि वह सब बेकार है और हम इसे सिर्फ ईश्वर पर ही छोड़ सकते हैं।"
दिल्ली की हवा में प्रदूषण
वीपी मेनन, 'This was Sardar the Commemorative volume I' (सहसंपादक - मणिबेन पटेल, पटेल की पुत्री) में प्रकाशित अपने भाषण, 'If Sardar were Alive Today!' में कहते हैं, "एक बार मैं दिल्ली स्थित उनके घर गया। मैंने उन्हें एक ऑक्सीजन टेंट के नीचे लेटे देखा। अतः मैं दरवाजे पर खड़ा होकर सिगरेट पीने लगा। जब सरदार को मेरे आने का पता चल तो उन्होंने डॉक्टर से टेंट हटाने को कहा और मुझसे पूछा कि इस तरह गलियारे में क्यों खड़ा हूँ? मैंने उन्हें बताया कि मैं धुएँ से हवा को दूषित नहीं करना चाहता था। उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली में जवाब दिया, "मेनन, आप चिंता क्यों करते हैं? पूरी दिल्ली की हवा दूषित है। उनकी इस टिप्पणी में कुछ कड़वाहट थी। उन्होंने अपने और प्रधानमंत्री के बीच मतभिन्नता को दिल पर ले लिया था।"
पटेल की मौत के बाद नेहरू का अनोखा 'फरमान'
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सरदार पटेल के निधन के बाद पंडित नेहरू ने एक 'अशोभनीय' आदेश जारी कर दिया। दरअसल, प्रधानमंत्री ने मंत्रियों और सचिवों से पटेल के अंतिम संस्कार में हिस्सा नहीं लेने का आदेश दिया था। के. एम. मुंशी अपनी पुस्तक 'Pilgrimage to Freedom' में लिखते हैं, "उस समय मैं माथेरान (रायगढ़ जिला) के नजदीक था। श्री एनवी गाडगिल, श्री सत्यनारायण सिन्हा और श्री वीपी मेनन ने आदेश को नहीं माना और अन्त्येष्टि में शामिल हुए। वहीं जवाहरलाल ने राजेंद्र प्रसाद से भी बंबई न जाने का आग्रह किया, जिसे राजेंद्र प्रसाद ने भी नहीं माना। उनकी अन्त्येष्टि में डॉ राजेंद्र प्रसाद, राजाजी और पंतजी (गोविन्द वल्लभ) समेत कई गणमान्य शामिल हुए।"
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