कहता है इतिहास..जिसके पास कोहिनूर उसकी बर्बादी निश्चित..
आज एक बार फिर से बेशकीमती हीरे कोहिनूर की बात चली है, सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में साफ किया कि कोहिनूर हीरे को महाराजा रंजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बतौर उपहार में दिया था और उपहार में दी गई चीजों को वापस नहीं लाया जाता इसलिए कोहिनूर भारत कभी नहीं आयेगा।
कभी भी भारत को वापस नहीं मिलेगा कोहिनूर जानिए क्यों
लेकिन इन बातों से इतर जरा इतिहास के पन्नों पर गौर फरमाते हैं..जहां से यह बात निकलकर सामने आती है कि कोहिनूर जहां-जहां भी रहा वहां को लोग बर्बाद ही हुए हैं...आईये जानते हैं कैसे निम्नलिखित बिंदुओं से...
- बाबर और हुमायुं, दोनों ने ही अपनी आत्मकथाओं में कोहिनूर का जिक्र किया है जिसके मुताबिक यह खूबसूरत हीरा सबसे पहले शक्तिशाली ग्वालियर के कछवाहा शासकों के पास था जिन्हें कि बेहद ही कमजोर समझे जाने वाले तोमर राजाओं ने हरा दिया था।
- तोमर राजाओं के पास कोहिनूर आते ही उनकी शक्तियां क्षीण होने लगी और उनके तोमर राजा विक्रमादित्य को सिकंदर लोधी से पराजित होना पड़ा, जिन्होंने विक्रमादित्य को दिल्ली में नजर बंद कर दिया।
- लेकिन लोधी की सफलता काफी दिनों तक नहीं रही वो हुमायूं से हार गया, उस समय भी कोहिनूर उसके पास ही था।
- वो जीवन भर मुगलों की दया पर जीता रहा उसके बाद यह हीरा हुमायूं के पास आ गया लेकिन वो ही उसके लिए बर्बादी का सबब साबित हुआ।
- हुमायूं को शेरशाह सूरी ने हरा दिया लेकिन सूरी भी एक हादसे का शिकार हो गया।
- उसके बेटे को उसके साले जलाल खान ने माजलाऔर इस तरह के कोहिनूर को सूरी के खात्मे का कारण माना जाता है।
- जलाल खान को भी अपने विश्वासपात्र मंत्री से धोखा खाना पड़ा और उसने उसका राज-पाट छीन लिया।
- लेकिन मंत्री भी हादसे का शिकार हो गया और एक आंख से काना हो गया जिसके कारण उसका राज-पाट भी चला गया।
- तब तक देश में अकबर का राज आ गया था लेकिन अकबर ने कभी भी कोहिनूर को अपने पास नहीं रखा और उसने काफी लंबा राज किया।
- लेकिन कोहिनूर उसके पोते शाहजहां के सरकारी खजाने में पहुंच गया।
- जिसे अपने ही बेटे औरंगजेब ने आगरा के किले में कैद कर दिया था।
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-
लेकिन
यहीं
से
औरंगजेब
की
भी
बर्बादी
शुरू
हुई
क्योंकि
इसी
के
बाद
ईरानी
शासक
नादिर
शाह
ने
भारत
पर
आक्रमण
किया
और
वह
मयूर
सिंहासन
सहित
कोहिनूर
लूट
कर
ले
गया।
-
इसके
बाद
नादिर
शाह
की
हत्या
हो
गई
और
यह
अफगानिस्तान
के
अहमद
शाह
अब्दाली
के
हाथों
में
पहुंचा।
-
1830
में,
शूजा
शाह,
अफगानिस्तान
का
तत्कालीन
पदच्युत
शासक
किसी
तरह
कोहिनूर
के
साथ,
बच
निकला
लेकिन
वो
पंजाब
पहुंचा,
व
वहां
के
महाराजा
रंजीत
सिंह
को
यह
हीरा
भेंट
किया।
-
इसके
बदलें
स्वरूप,
रंजीत
सिंह
ने
ईस्ट
इंडिया
कम्पनी
को,
अपनी
टुकड़ियां
अफगानिस्तान
भेज
कर,
अफगान
गद्दी
जीत
कर,
शाह
शूजा
को
वापस
दिलाने
के
लिये
तैयार
कर
लिया
था।
-
रंजीत
सिंह,
ने
स्वयं
को
पंजाब
का
महाराजा
घोषित
किया
था।
-
1839
में,
अपनी
मृत्यु
शय्या
पर
उसने
अपनी
वसीयत
में,
कोहिनूर
को
पुरी,
उड़ीसा
प्रसिद्ध
श्री
जगन्नाथ,
मंदिर
को
दान
देने
को
लिखा
था
लेकिन
ऐसा
हो
नहीं
पाया।
-
और
29
मार्च
1849
को
लाहौर
के
किले
पर
ब्रिटिश
ध्वज
फहराया
और
देश
में
रंजित
सिंह
का
शासन
समाप्त
और
अंग्रेजों
का
राज
हो
गया।
-
जिसमें
एक
लाहौर
संधि
हुई
जिसमें
कहा
गया
था
कोहिनूर
नामक
रत्न,
जो
शाह-शूजा-उल-मुल्क
से
महाराजा
रण्जीत
सिंह
द्वारा
लिया
गया
था,
लाहौर
के
महाराजा
द्वारा
इंग्लैण्ड
की
महारानी
को
सौंपा
जायेगा।
-
बस
यहीं
से
कोहिनूर
भारत
से
बाहर
चला
गया।
वैसे
इतिहास
कार
कहते
हैं
कि
कोहिनूर
पुरूष
शासकों
के
लिए
अनलकी
है
लेकिन
महिला
शासकों
के
लिए
ये
हमेशा
लकी
रहा
है।
- सन् 1911 में कोहिनूर महारानी मैरी के सरताज में जड़ा गया। और आज भी उसी ताज में है। इसे लंदन स्थित 'टावर आफ लंदन' संग्राहलय में नुमाइश के लिये रखा गया है।
ये तो हुई एक इतिहास की बात..जिस पर लोगों को शायद भरोसा ना होगा लेकिन कहीं ना कहीं इससे जुड़ी कुछ तो सच्चाई होगी ही.. मौजूदा हालात भी कुछ अच्छे नहीं दिख रहे हैं क्योंकि इस समय खूफिया तंत्रों के मुताबिक यूके में आईएसआई के 10 हजार लड़ाके घुस चुके हैं। अगर कोहिनूर का प्रभाव इस देश पर पड़ा तो ये आतंकवादी यूके की बर्बादी का काला इतिहास लिख सकते हैं।