न बिजली और न सड़क लेकिन पूर्णिया के बच्चों ने बना डाली शॉर्ट फिल्में
पूर्णिया। गोवा में चल रहे अंतराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के बारे में तो आप सुनते आए हैं लेकिन इन सबसे दूर बिहार के पूर्णिया में पिछले दिनों एक ऐसा फिल्म फेस्टिवल आयोजित हुआ जिसमें दिखाई गई फिल्मों के लिए न तो बहुत हाई फाई टेक्निक का प्रयोग हुआ और न ही कोई बड़ा स्टार इन फिल्मों में था। वह भी ऐसे गांव में जहां न तो बिजली की व्यवस्था है और न ही सड़क का कोई इंतजाम है।
चनका में नहीं बिजली और सड़क
इस खास फिल्म महोत्सव में यूनिसेफ और अन्य फिल्म कारों द्वारा बनाई गई फिल्में बच्चों को दिखाई गई थी। बिहार के कुछ ग्रामीण इलाकों में हाल ही में ग्रामीण फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया था, जिसमें ग्रामीण परिवेश में रह रहे बच्चों ने बाल फिल्मों को जमकर लुत्फ उठाया।
बिहार के पटना, गया, वैशाली और पूर्णिया जिले में यूनिसेफ के सौजन्य से ग्राम्य फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया था। 17 नवंबर से शुरु हुए फिल्म महोत्सव का समापन 27 नवंबर को बिहार के पूर्णिया जिला के सुदूर देहात इलाका चनका में हुआ। बिजली और सड़क से दूर चनका गांव में आयोजित फिल्म महोत्सव में बच्चों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
यूनिसेफ ने सच किया बच्चों का सपना
यूनिसेफ के सौजन्य से आयोजित फिल्मोत्सव का समापन चनका जैसे सुदूर देहात में करने की वजह यह रही क्योंकि इस इलाके में बच्चों के बीच फिल्मों को लेकर कई काम हो रहे हैं।
चनका के बच्चे मोबाइल के वीडियो प्लेयर के माध्यम से शार्ट फिल्में बना रहे हैं। इन्हीं बच्चों को जब बड़े पर्दे पर फिल्में दिखाईं गईं तो वे खुशी से झूम उठे। चनका स्थित एक सरकारी विद्यालय के छात्र रमेश यादव ने कहा, 'हम सभी ने कभी सोचा भी नहीं था कि गांव में खासकर बच्चों के लिए बड़े पर्दे पर फिल्म दिखाने की व्यवस्था की जाएगी। हमारे लिए तो यह किसी सपने का सच होने जैसा है।'
गौरतलब है कि ग्राम्य फिल्म महोत्सव में बच्चों को भारत सरकार की चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी (सीएफएसआई) द्वारा बनाई गई फिल्में दिखाई जाती हैं।
स्वस्थ मनोरंजन का अधिकार
इस अनोखे ग्राम्य फिल्म महोत्सव के बारे में यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ सुश्री निपुण गुप्ता ने हा कि इस वर्ष को बाल अधिकार समझौता रजत जयंती वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसके तहत बच्चों को कई अधिकार दिए गए हैं। बच्चों को उनके उम्र, परिवेश के अनुरूप स्वस्थ, सार्थक, मनोरंजक व शिक्षापूर्ण मनोरंजन का भी अधिकार प्राप्त है।
गांव सिनेमा गौरव की बात
बिहार के ग्रामीण इलाकों में बच्चों को फिल्मों के द्वारा जागरुक करने की मुहिम में लगे "गांव-सिनेमा" के गिरीन्द्र नाथ झा ने कहा कि राज्य के ग्रामीण इलाकों के लिए यह गौरव की बात है कि बाल अधिकार समझौते की रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में ग्रामीण बच्चों के लिए फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया।
उन्होँने कहा कि फिल्में, बच्चों को जागरूक करने एवं बच्चों को उनके अधिकार को दिलवाने में भी एक सशक्त माघ्यम की भूमिका निभा सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि गिरीन्द्र नाथ की पहल से ही पूर्णिया जिले में यह फिल्म महोत्सव आयोजित किया गया था। गिरीन्द्र इन दिनों किसानी में नए प्रयोग तो कर ही रहे हैं साथ ही वह ग्रामीण बच्चों को डिजिटल मीडिया के माध्यम से जागरुक भी कर रहे हैं।