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Chhattisgarh: बेटी के जाने के बाद टूट चुकी थी सीमा, लेकिन फिर "किट्टू की पाठशाला" ने बदल दी जिन्दगी

दुर्ग जिले में रहने वाली सीमा दुबे के जीवन में एक ऐसी घटना घटी की पूरी जिंदगी को उसने गुमनाम जीने का फैसला कर लिया था। लेकिन पांच साल अंधेरे में जिंदगी बिता रही सीमा की जिंदगी में फ

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दुर्ग, 09 सितम्बर। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में रहने वाली सीमा दुबे के जीवन में एक ऐसी घटना घटी की पूरी जिंदगी को उसने गुमनाम जीने का फैसला कर लिया था। लेकिन पांच साल से भावनाओ को दबाकर गुमनामी के अंधेरे में जिंदगी बिता रही सीमा की जिंदगी में फिर से खुशियों ने दस्तक दी और फिर सीमा ने किट्टू की पाठशाला शुरू कर घुमंतू बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया।

जवान बेटी की मौत से खत्म हो चुकी थी जिंदगी

जवान बेटी की मौत से खत्म हो चुकी थी जिंदगी

भिलाई निवासी सीमा बतातीं हैं कि पांच साल पहले उनके 15 साल की बेटी किट्टू की बीमारी से मौत हो गई थी। इसके बाद सीमा डिप्रेशन में जा चुकी थी। उनकी जिंदगी हताशा व निराशा से भर चुकी थी। वह पांच साल से गुमसुम उदास रहकर जिंदगी जी रहीं थी। लेकिन भावनाओं को दबाकर रखने का असर उनकी खुद की सेहत के साथ परिवार पर भी पड़ रहा था। पूरी तरह हार चुकी सीमा को हर तरह का दुख घेरने लगा था।

सीमा की जिंदगी ने फिर ली करवट

सीमा की जिंदगी ने फिर ली करवट

इस तरह हताश निराश जिंदगी जी रही सीमा की जिंदगी में उस वक्त एक नया बदलाव आया। तभी एक दिन उन्हें अचानक अहसास हुआ कि मुझे इस हालात से निपटना ही होगा। और फिर भिलाई शहर में काम कर रही एक एनजीओ अनुभूतिश्री संस्था के सहयोग से दिवंगत बिटिया के नाम से ही 'किट्टू की पाठशाला' खोल दी। जिसके बाद सीमा का समय इन बच्चों के बीच बीतने लगा। अब यहां सीमा रोज पढ़ाने जाती है।

किट्टू जैसे बहुत से बच्चों को बना रही साक्षर

किट्टू जैसे बहुत से बच्चों को बना रही साक्षर

सीमा अब कहतीं है आज उनके पास उनकी बेटी किट्टू तो नही तो नहीं है पर उसके जैसे कई बच्चे अब जीवन में आ गए हैं। सीमा बताती हैं बेटी को खोने के बाद मैं बिलकुल टूट चुकी थी। जिसका असर पूरे परिवार पड़ रहा था। मुझे इसका भी अहसास था, लेकिन दिल है कि सच स्वीकार करता ही नहीं था पति संजीव दुबे के लगातार प्रयास ने आखिर मुझे हौसला दिया। अब किट्टू की पाठशाला में खुद को बिजी रखने लगी हूं। बेटी की कमी दिल में हमेशा खलती रहेगी। लेकिन किट्टू जैसे अब 40 बच्चे मेरे जीवन में हैं। उनको साखर बनाकर उनका भविष्य संवारना ही मेरे जीवन का लक्ष्य बन गया है।

घुमंतू व बस्ती के मजदूर बच्चों को पढ़ाती है सीमा

घुमंतू व बस्ती के मजदूर बच्चों को पढ़ाती है सीमा

अनुभूति श्री संस्था की संचालिका डिंपल नेबताया कि भिलाई में ऐसी कई बस्तियां है, जहां लोग मूर्ति बनाकर, भीख मांगकर, कचरे बीनकर, ठेला या रिक्शा चलाकर जीवन यापन करते हैं। वे अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते और बच्चे गलत रास्ता चुनते हैं। इनकी परेशानियों को देखते हुए संगठन ने उनके बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।

झोपड़ी में ही चल रही पाठशाला

झोपड़ी में ही चल रही पाठशाला


फिलहाल किट्टू की पाठशाला यहां एक झोपड़ी में संचालित हो रही है। उन सभी घुमंतू बच्चों को नशे से दूर रखने और पढ़ाई के लिए संस्था की महिलाएं प्रेरित करतीं हैं। जिसके बाद उन्हें स्कूल में एडमिशन या फिर पाठशाला में लाया जाता है। बच्चे रोज 2 घण्टे यहां पढ़ने आतें हैं। यहां सीमा सहित दो अन्य टीचर 40 बच्चों को पढ़ाती हैं। पाठशाला के संचालन में डेंटल कॉलेज के संचालक संजय रूंगटा हर महीने 10 हजार रुपए की मदद भी करते हैं।

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English summary
Chhattisgarh: The border was broken after the daughter's departure, but then "Kittu ki Pathshala" changed life
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