भिलाई: इंजीनियरिंग के छात्रों ने बनाया "सुरक्षा कवच", IED ब्लास्ट, लैंड स्लाइड से जवानों को रखेगा सुरक्षित
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने सुरक्षा कवच का निर्माण किया है। जो पहाड़ी इलाकों, नक्सल प्रभावित क्षेत्र या बार्डर पर गश्त कर रहे जवानों को ऑपरेशन के दौरान होने वाले परेशानी से बचाएगा।
दुर्ग, 06 अगस्त। देश में डिफेंस सर्विस के लिए नई तकनीकों का निर्माण कर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे की भारत हथियारों या अन्य डिफेंस तकनीक के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म हो सके। इसके साथ रक्षा क्षेत्र में होने वाले खर्च को कम किया जा सके। इसी के तहत छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने 'सुरक्षा कवच' का निर्माण किया है। जो पहाड़ी इलाकों, नक्सल प्रभावित क्षेत्र या बार्डर पर गश्त कर रहे जवानों को ऑपरेशन के दौरान होने वाले परेशानी से बचाएगा। आइए जानते हैं कि यह सुरक्षा कवच क्या है।
जानिए
क्या
है
सुरक्षा
कवच
देश
में
जवानों
सीमावर्ती
इलाकों,
पहाड़ी
क्षेत्रों
,
नक्सल
प्रभावित
इलाकों
में
सर्चिंग
के
दौराम
सबसे
ज्यादा
सेना
की
गाडिय़ों
को
निशाना
बनाया
जाता
है,
जिससे
भारी
जानमाल
की
हानि
होती
है।
हमारे
जवानों
को
सुरक्षित
रखने
छत्तीसगढ़
के
दुर्ग
जिले
के
रूंगटा
इंजीनियरिंग
कॉलेज
के
छात्रों
ने
रक्षा
क्षेत्र
इस्तेमाल
हो
रह
एन्टीलैंडमाइंस
जैसे
व्हीकल
के
लिए
स्पेशल
ग्रेड
व
डिजाइन
की
गई
कवच
(लेयर)
तैयार
किया
है।
जो
बुलेट
रजिस्टेंस
के
साथ-साथ
एक्सपोज
ऑफ
हैवी
लोड,
लैंड
स्लाइड,
ऊपरी
स्तर
से
होनी
वाली
बमबारी
से
जवानों
को
सुरक्षित
रखेगा।
सुरक्षा
कवच
बनाने
मिलेंगे
पांच
करोड़,
हुआ
पेटेंट
इस
कवच
को
भारतीय
पेंटेंट
कार्यालय
कोलकाता
ने
मान्यता
दे
दी
है।
इसके
साथ
इसे
डवलप
करने
के
लिए
शुरुआती
ग्रांट
के
तौर
पर
12
लाख
50
हजार
का
अनुदान
भी
दिया
गया
है।
अलग-अलग
विभागों
द्वारा
भी
दो
साल
के
भीतर
5
करोड़
रुपए
तक
की
फंडिंग
के
लिए
सलेक्ट
किया
गया
है।
अभी
तक
डिफेंस
सर्विस
में
बम
धमाकों
को
झेलने
और
बुलेट
प्रूफ
गाडिय़ां
करीब
20
से
25
करोड़
रुपए
तक
की
लागत
से
तैयार
हो
रही
है।
लेकिन
रूंगटा
इंजीनियरिंग
कॉलेज
के
छात्रों
ने
नई
तकनीकी
का
उपयोग
करते
हुए
बेहतर
सुरक्षा
के
साथ
इन
वाहनों
को
25
से
32
लाख
के
बजट
में
तैयार
करने
का
दावा।किया
है
।
सेना
के
जवानों
को
इन
क्षेत्रों
में
मिलेगा
लाभ
सुरक्षा
कवच
तैयार
करने
वाले
स्टूडेंट्स
और
प्रोफेसर्स
ने
बताया
कि
यह
'सुरक्षा
कवच'
एक्सपोजन
ऑफ
हैवी
लोड
जैसे
बड़े
भारी
पत्थर,
लैंड
स्लाइड
से
आघात,
हिमालय
क्षेत्र,
नक्सल
प्रभावित
क्षेत्र,
इंडोचाइना
बॉर्डर,
वैष्णोदेवी
यात्रा
आदि
में
यात्रियों
और
सैनिकों
को
सुरक्षा
देगा।
इसका
सबसे
बड़ा
फायदा
यह
है
कि
इसके
लिए
अलग
से
गाडिय़ां
खरीदने
की
जरूरत
नहीं
होगी,
बल्कि
कवच
वर्तमान
गाडिय़ों
पर
ही
फिट
किया
जा
सकेगा।
सुरक्षा
कवच
में
क्या
है
नई
तकनीक
वर्तमान
में
डिफेंस
की
गाडिय़ों
में
UHMWPE
स्पॉल
लाइनिंग,
हाई
प्रैक्चर
टफनेट
एपॉक्सी
मटेरियल
कार्बन
फाइबर
कैवलार
जैसे
उच्च
मटेरियल
उपयोग
किया
जाता
है,
जो
काफी
महंगी
तकनीक
है।
जबकि
रूंगटा
आर-1
के
स्टूडेंटस
द्वारा
तैयार
किया
गय।
कवच
हाई
नाइट्रोजन
स्टील
और
एग्रो
बेस्ड
बैलेस्टिक
जैल
की
मदद
से
तैयार
किया
गया
है।
इसमें
स्टूडेंट्स
ने
सस्पेंशन
तकनीक
का
उपयोग
किया
है,
जिससे
किसी
भी
हमले
या
दुर्घटना
की
स्थिति
में
आने
वाला
प्रेशर
सीधे
बस
या
व्हीकल
में
सवार
सैनिकों
तक
नहीं
पहुंचेगा।
बल्कि
इसे
रिटर्न
फोर्स
के
जरिए
रोक
दिया
जाता
है।
यह
तकनीक
कम
वजनी
है,
फिर
भी
गाडिय़ों
को
अधिक
सुरक्षा
प्रदान
करती
है।
अब
इसकी
तकनीकी
परखेंगे
DRDO
के
अधिकारी
रूंगटा
ग्रुप
ने
रक्षा
मंत्रालय(
Difence
Ministery)
को
इस
प्रोजेक्ट
के
पेटेंट
की
जानकारी
भेज
दी
है।
इसके
साथ
ही
इस
तकनीक
को
एमएसएमई,
डीआरडीओ,
नेशनल
फौरेंसिक
साइंस
यूनिवर्सिटी,
आईडीईएक्स,
चैलेंज
ऑफ
इंडियन
आर्मी
डिजाइन
ब्यूरो
को
भी
परखने
के
लिए
भेजा
गया
है।
इसे
तैयार
करने
में
आरसीईटी
के
छात्र
ज्ञानेश
कुमार
राव,
आशीष
कुमार
पंडित,
नीरज
सिंह
ने
भूमिका
निभाई
है।
प्राचार्य
डॉ.
राकेश
हिमते,
रूंगटा
इन्क्यूबेशन
सेल
इंचार्ज
डॉ.
मनोज
वर्गीस
और
आईपीआर
सेल
इंचार्ज
डॉ.
रामकृष्ण
राठौर
का
योगदान
रहा।