क्या सच में शेयर बाजार का रिकॉर्ड स्तर खोखला है? जानिए क्यों निवेशकों के लिए है खतरा
नई दिल्ली, 02 जून। पिछले साल जब देश में कोरोना ने दस्तक दी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान किया था तो शेयर बाजार औंधे मुंह गिर गया था। शेयर बाजार बुरी तरह से क्रैश हो गया था और सेंसेक्स 27000 के करीब पहुंच गया था। लेकिन महज एक साल के भीतर ही शेयर बाजार में जबरदस्त उछाल देखने को मिला और बाजार 100 फीसदी से ऊपर चला गया, यही नहीं सेंसेक्स ने रिकॉर्ड छलांग लगाते हुए अपने रिकॉर्ड स्तर को छुआ। आलम यह है कि अब सेंसेक्स 52000 के करीब पहुंचने वाला है। लेकिन कुछ दिन पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए शेयर बाजार में रिकॉर्ड उछाल को बबल यानि पानी का बुलबुला बताया, जो लगातार फूलता जाता है लेकिन अंदर से खोखला होता है। क्या सच में शेयर बाजार में यह रिकॉर्ड उछाल भीतर से खोखली है?
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आरबीआई की चेतावनी
रिजर्व बैंक की वित्त वर्ष 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में शेयर बाजार की उछाल पर निवेशकों को चेताया गया है। ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था अपने 40 साल के निचले स्तर पर है और जीडीपी में लगातार गिरावट हो रही है, ऐसे में शेयर बाजार अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया ऐसे में सवाल खड़े होने लाजमी है। लेकिन आखिर किस वजह से शेयर बाजार में यह उछाल देखने को मिल रहा है। देश की गिरती अर्थव्यवस्था के बावजूद लोगों का शेयर बाजार में रिकॉर्ड निवेश के मुख्य रूप से दो कारण है, पहला आरबीआई और सरकार की ओर से वित्तीय मदद दूसरा एफपीआई यानि फॉरेन पोर्टफोलिया इंन्वेस्टमेंट।
क्यों ऊपर जा रहा है शेयर बाजार
कोरोना काल में केंद्र सरकार की ओर से 20 हजार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की गई, लोगों की लोन की किश्तों के भुगतान में कुछ समय की राहत दी गई, यही नहीं आरबीआई की ओर से भी राजकोषीय वित्त की घोषणा की गई है। सरकार और आरबीआई की ओर से यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि लोगों की खर्च करने की शक्ति बढ़े और देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप ना हो। ऐसे में एक बड़ी वजह शेयर बाजार में उछाल की यह है कि जिस तरह से सरकार और आरबीआई की ओर से वित्तीय राजकोष जारी किए गए उससे शेयर बाजार में भी मांग बढ़ी। साथ ही अमेरिका में चुनाव को लेकर अनिश्चितता खत्म होने और देश में कोरोना वैक्सीन आने से भी निवेशकों में विश्वास बढ़ा और इसका सीधा असर शेयर बाजार में देखने को मिला।
एफपीआई में बढ़ोतरी
देश के बाहर के लोग जब शेयर बाजार, सरकार द्वारा जारी बॉन्ड या फिर कंपनी द्वारा जारी किए गए बॉन्ड में निवेश करते हैं तो उसे एफपीआई यानि फॉरेन पोर्टफोलियो इंन्वेस्टमेंट कहा जाता है। पिछले कुछ समय में एफपीआई में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। पिछले कुछ सालों की बात करें तो 10 साल में लगातार इसमे बढ़ोतरी देखने को मिला है। विदेशी निवेशक मुख्य रूप से शेयर बाजार में निवेश करते हैं तो उसे इक्विटी निवेश कहते हैं, जब किसी बॉन्ड में निवेश करते हैं तो उसे डेट निवेश कहते हैं। लेकिन जब कोई निवेशक दोनों में निवेश करता है तो उसे हाइब्रिड निवेश कहते हैं। आरबीआई ने शॉर्ट टर्म निवेश की सीमा को 20 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया है।
आखिर क्यों बाजार की रिकॉर्ड ऊंचाई खतरनाक
दरअसल जब भी किसी कंपनी के शेयर का दाम बढ़ता है तो उसके पीछे की दो वजह होती है। पहली वजह यह कि कंपनी अच्छा बिजनेस करती है और अपने लाभ को बढ़ाती है जिससे निवेशकों में भरोसा बढ़ता है और शेयर के दाम ऊपर जाते हैं। दूसरा जब कोई कंपनी भविष्य में बेहतर करने की उम्मीद जताती है, कुछ ऐसी योजना लेकर सामने आती है जिसका आधार मजबूत होता है तो उस कंपनी के शेयर के दाम बढ़ते हैं। लेकिन कोरोना काल में ऐसे समय जब देश में आर्थिक गतिविधियां तकरीबन ठप हैं, बावजूद इसके कंपनियों के शेयर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं तो इसका मतलब साफ है कि शेयर के दाम उसकी वास्तविक कीमत से कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं जोकि आने वाले समय में जरूर सेटल होंगे।
निवेशकों को क्या करना चाहिए
ऐसे समय में जब शेयर बाजार बिना मजबूत आधार और के रिकॉर्ड स्तर पर जा रहा हो तो निवेशकों को और भी सतर्क रहने की जरूरत है। सबसे जरूरी बात यह कि निवेशक अच्छी कंपनी के शेयर में ही निवेश करें। अच्छी कंपनी का अभिप्राय है जिसके फंडामेंटल अच्छे हो, पिछले कुछ साल में कंपनी ने अच्छा बिजनेस किया हो और कंपनी का रिकॉर्ड अच्छा हो। छोटी कंपनी के शेयर, स्मॉल कैप और मल्टीबैगर शेयर के दाम जिस तेजी से ऊपर जाते हैं उससे कहीं तेज रफ्तार से नीचे भी आते हैं। लिहाजा निवेशकों को वैल्यू इन्वेस्टमेंट करना चाहिए और लंबी अवधि के लिए बेहतर निवेश पर भरोसा करना चाहिए।