1600 करोड़ के घोटाले की मुख्य आरोपी है प्रिया कुमारी, ठेले पर साड़ी बेचा करती थीं सास
पटना। बिहार के भागलपुर जिले में हुए सृजन घोटाले मामले में आरोपी मोस्ट वांटेड मनोरमा देवी की बहू प्रिया कुमारी अब भी सीबीआई की गिरफ्त से बाहर है। इनकी तलाशी के लिए पिछले कई महीनों से सीबीआई की टीम खाक छान रही है। लगभग 16 सौ करोड़ रुपये के हुए घोटाले का मुख्य आरोपी प्रिया कुमारी अब तक पुलिस और जांच एजेंसी की आंखों में धूल झोंककर फरार है तो दूसरी तरफ सूत्रों की माने तो प्रिया अब भी अपने मोबाइल फोन के जरिए नजदीकी लोगों के संपर्क में है और WhatsApp के जरिए बातचीत कर रही है। अगर जांच एजेंसी तथा पुलिस चाहे तो उसे आसानी से गिरफ्तार कर सकती है।
Recommended Video
सृजन घोटाले की मास्टरमाइंड की बहू है प्रिया
आपको बता दें कि बिहार के भागलपुर जिले में सामने आए सृजन महाघोटाले में अब तक कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें कुछ सरकारी अधिकारी है तो कुछ इस घोटाले में शामिल लेकिन अब तक इस घोटाले का मास्टरमाइंड मनोरमा देवी की बहू और बेटा दोनों सीबीआई की पड़क से दूर है और अब तक अपना पक्ष रखने के लिए जांच एजेंसी के सामने नहीं आए हैं। अगस्त 2017 से ही प्रिया और अमित कहीं भूमिगत हो चुके हैं उनके दोनों घर और कोचिंग में ताला लटका हुआ है तो घोटाला उजागर होने के बाद प्रिया और अमित के खिलाफ विदेश भागने की आशंका को देखते हुए रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की अनुशंसा एसएसपी ने की थी। 7 अगस्त को इस मामले में FIR दर्ज की गई थी। वहीं प्रिया और अमित 2 अगस्त से ही फरार हैं। दोनों को पहले ही भनक लग चुकी थी कि इस घोटाले का पर्दाफाश होने वाला है जिसमें दोनों की गर्दन बुरी फंस जाएगी। अब तक मामले में भागलपुर बांका और सहरसा में 23 अलग-अलग FIR दर्ज कराई गई है जो करीब 16 सौ करोड़ रुपए के घोटाले का है। इस घोटाले में कौन-कौन IAS-IPS नेता व मंत्री शामिल है उनके बारे में सीबीआई को आसानी से पता चल सकता है पर सृजन की सचिव प्रिया और उसके पति अमित को गिरफ्तार करने में पुलिस की लापरवाही सामने आ रही है।
जानिए कैसे दिया जा रहा था इस महा घोटाले के खेल को अंजाम
सृजन कि संस्थापक मनोरमा देवी कभी ठेले पर घूम-घूम कर सारी बेचा करती थी लेकिन किस्मत की वह धनी थी। एक सिलाई मशीन से हजार करोड़ तक का सफर उसने बड़ी ही बारीकी से तय किया। मनोरमा देवी इस घोटाले को अंजाम देने के लिए सरकारी बैंकों का इस्तेमाल किया। जिसमें गवर्नमेंट वेलफेयर डिपार्टमेंट्स के अकाउंट थे। घोटाले को अंजाम देने के लिए मनोरमा देवी ने सरकारी अधिकारी और बैंक कर्मचारी को भी अपने झांसे में फसाया तथा इस घोटाले को अंजाम दिया जिसने बैंक मैनेजर और जिला अधिकारी के PA की अहम भूमिका रही। इंडियन बैंक और ऑफ़ Bank of Baroda जैसे बैंकों में सरकारी योजना की अधिकतर राशि जमा की जाती थी। जैसे ही सरकारी खातों में कोई भी रकम जमा होता मनोरमा देवी को इसकी जानकारी हो जाती थी और बैंक मैनेजर तथा जिला अधिकारी के असिस्टेंट कि मदद से फर्जी हस्ताक्षर के जरिए सृजन के अकाउंट में ट्रांसफर करा दिया जाता था।
ऐसे होता था फर्जीवाड़े का खेल
नियमानुसार सरकारी फंड से संबंधित बैंक में एनईएफटी या चेक के जरिए पैसा भेजा जाता था। जब भी कोई पैसा चेक के द्वारा भेजा जाता था संबंधित अधिकारी चेक के पीछे सृजन के बैंक अकाउंट डिटेल्स डाल देते थे और जिला अधिकारी के पीए के द्वारा इसे अंजाम दिया जाता था। क्योंकि जिला अधिकारी के पीऐ और ट्रेजरी ऑफिसर को जिले में हुए हर सरकारी ट्रांजेक्शन की जानकारी रहती थी और बैंक कर्मचारी की मिलीभगत से इसे सृजन के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता था।
सड़क से हवेली और हजार करोड़ तक का सफर
वर्ष 1996 में सृजन की संस्थापक मनोरमा देवी के हालात ऐसे थे कि उसे दो वक्त की रोटी के लिए भी सोचना पड़ता था लेकिन घोटाले की मास्टरमाइंड मनोरमा देवी सड़क पर सारी बेचते बेचते एक सिलाई मशीन लेकर सिलाई का काम शुरु किया और धीरे-धीरे महिलाओं को अपने समूह में जोड़ने लगी। एक दो वर्ष के बाद उसके पास सौ महिलाओं का एक समूह तैयार हो गया जिसमें सभी महिला सिलाई मशीन के जरिए काम किया करती थी। जिसके बाद एक एनजीओ सृजन की स्थापना की गई जो बाद में कोऑपरेटिव सोसाइटी में बदल गया। तब तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दूसरी बार बिहार के मुखिया बने थे और विकास योजनाओं से जुड़ा फंड सीधे संबंधित जिले में भेजने का आदेश जारी कर दिया था। मनोरमा देवी सरकारी कर्मचारी तथा बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से इस पर पैनी नजर रखती थी। प्रारंभिक जांच के दौरान यह पता चला कि सृजन के अकाउंट में जो रकम ट्रांसफर की गई है वह जमीन अधिग्रहण स्वास्थ्य विभाग और शहरी विकास बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का था।
270 करोड़ रुपए के फर्जी चेक ने किया इस घोटाले का पर्दाफाश
आपको बताते चलें कि 270 करोड़ की फर्जी चेक से प्रकाश में आया यह मामला धीरे-धीरे हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। जिसे भागलपुर और सहरसा के सरकारी बैंकों के अकाउंट से गलत तरीके से सृजन महिला विकास समिति के खाते में डाली जाती थी। इस तरह का खेल पिछले कई वर्षों से चल रहा था पर इस महीने के अगस्त में इसका खुलासा हुआ तथा जांच पड़ताल शुरु की गई। ऐसा कहा जा रहा है कि इस घोटाले को अंजाम देने वाली मनोरमा देवी की अगर मौत नहीं हुई होती तो शायद यह मामला अब तक किसी के सामने नहीं आया होता। सृजन की संस्थापक मनोरमा देवी फरवरी में इस दुनिया को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चली गई और 4 अगस्त को फर्जी चेक से इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ। इस चेक को भागलपुर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट आदेश तितिरमारे के द्वारा पावर प्लांट के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहण के बदले जारी किया था। पर बैंक में डालते ही चेक बाउंस हो गया जिसके बाद मामला सामने आया। और जिला अधिकारी के द्वारा इस घोटाले की स्कीम की जानकारी चीफ सेक्रेटरी अंजनी कुमार सिंह को दी गई जिन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस मामले से अवगत कराया।
ये बी पढ़ें- हिमाचल प्रदेश: मिस कॉल शुरू हुई दोस्ती रेप पर आकर हुई खत्म