क्या उद्धव ठाकरे का अंजाम देखकर डर गए हैं नीतीश कुमार ? जानिए
पटना, 8 अगस्त: बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन सही मायने में संकट में दिख रही है। हो सकता है कि मंगलवार को इसपर स्थिति कुछ ज्यादा स्पष्ट हो जाए। लेकिन, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी की ओर से जो कुछ कहा जा रहा है, उससे लगता है कि नीतीश कुमार अपनी सरकार की स्थिरता को लेकर वाकई चिंता में पड़ चुके हैं। जून में जिस तरह महाराष्ट्र में शिवसेना के अंदर से ही एक धुआं उठा और उद्धव ठाकरे की कुर्सी चली गई, उस घटना ने जेडीयू नेतृत्व को मौजूदा संकट में ज्यादा गंभीरता से सोचने को मजबूर कर दिया है।
नीतीश को सता रहा है बीजेपी से धोखे का डर-रिपोर्ट
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस संकट का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि नीतीश कुमार को इस बात की चिंता है कि बीजेपी उनको धोखा दे (उनसे अलग होने) सकती है। नीतीश कुमार के सहयोगियों का दावा है कि उनकी चिंताएं वहम नहीं हैं। इसके लिए वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उस टिप्पणी का हवाला दे रहे हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां 'नहीं बचेंगी।' वह इसे इस बात का सबूत मान रहे हैं कि बीजेपी चाहती है कि पहले सहयोगियों को कमजोर करे और फिर साफ कर दे। वरिष्ठ जेडीयू नेता उमेश कुशवाहा ने कहा, 'आपने जेपी नड्डा की टिप्पणी देखी है, जिसमें वह कह रहे हैं कि बीजेपी सभी क्षेत्रीय पार्टियों की जगह ले लेगी। लेकिन, बीजेपी के सहयोगी हम जैसे ही लोग हैं- उन्हें इसके बारे में सोचना चाहिए। '
जदयू के बिहार में महाराष्ट्र दोहराने का डर ?
हालांकि, सोमवार की सुबह उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के साथ एक मीटिंग में कथित तौर पर नीतीश कुमार ने कहा, 'कुछ भी गंभीर जैसा नहीं है।' लेकिन, इसे शायद ही कोई इतने हल्के में ले रहा है। कथित तौर पर नीतीश कुमार यह मान चुके हैं कि बिहार में भी महाराष्ट्र दोहराया जाएगा। यही वजह है कि उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने रविवार को भाजपा के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर हमला बोला कि वह 'हमारी पार्टी को तोड़ने के लिए काम कर रही है...'
उद्धव ठाकरे का अंजाम देखकर डर गए नीतीश?
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की कुर्सी उनकी पार्टी के वरिष्ठ सहयोगी एकनाथ शिंदे की बगावत के चलते ही चली गई। अब उद्धव अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह अपने पास रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं। जैसे नीतीश कुमार का भाजपा के साथ ऐतिहासिक नाता रहा है, वैसे कभी उद्धव ठाकरे का भी हुआ करता था। उद्धव की तरह नीतीश भी सियासी कलाबाजी खाकर विपक्षी दलों के साथ गलबहियां कर चुके हैं। फिलहाल अंतर इतना ही है कि नीतीश राजद और कांग्रेस के साथ भी 'खेला' कर चुके हैं, लेकिन उद्धव की शरद पवार और सोनिया गांधी के प्रति राजनीतिक 'श्रद्धा' अभी तक डिगी नहीं है।
आरसीपी की घटना ने बढ़ाया संदेह
रिपोर्ट के मुताबिक अभी नीतीश का संदेह बढ़ा हुआ है कि अब उनकी सहयोगी के टारगेट पर वही हैं। इसमें गृहमंत्री अमित शाह को लेकर उन्हें लगता है कि उन्होंने ही उनकी साझा सरकार में ऐसे मंत्रियों को प्लांट करवाया, जो खासकर उनके करीबी हैं। अब इस साजिश की थ्योरी के पीछे की सच्चाई चाहे जो भी है, अपनी ही पार्टी के आरसीपी सिंह के साथ उनकी दूरी की यही वजह मानी जा रही है। 2021 में नीतीश ने ही उन्हें मोदी सरकार में जदयू का प्रतनिधि बनाया। लेकिन, बिहार में उन्हें अमित शाह से करीबी होते देखा जाने लगा। आखिरकार पार्टी उन्हें ऐसे नेता के रूप में देखने लगी, जो नीतीश कुमार की पार्टी में रहकर मुख्यमंत्री के खिलाफ ही पार्टी में कथित असंतोष पैदा करने लगे थे।
क्या आरसीपी सिंह से नीतीश को था एकनाथ शिंदे बनने का डर ?
इसका अंजाम ये हुआ कि दो महीने पहले नीतीश ने कभी अपने सबसे ज्यादा भरोसेमंद रहे आरसीपी सिंह को दोबारा से राज्यसभा में जाने का रास्ता बंद कर दिया। इसके चलते आरसीपी सिंह की कैबिनेट मंत्री वाली कुर्सी चली गई। पिछले हफ्ते जदयू ने तो आरसीपी सिंह पर व्यापक रूप से भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप लगा दिया। इसके बाद उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी और सीएम नीतीश के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया। उन्होंने दावा किया कि 'नीतीश कुमार सात जन्मों में भी पीएम नहीं बनेंगे। ' लेकिन, नीतीश के अब के भरोसेमंद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने सोमवार को कहा कि आरसीपी बीजेपी का संकेत पाकर बोल रहे हैं। वो बोले,'जब हमसे कहा गया था कि एक कैबिनेट मंत्री बताइए...''आरसीपी सिंह ने कहा कि अमित शाह ने उनसे कहा था कि सिर्फ वही (आरसीपी) स्वीकार्य थे। और नीतीश कुमार ने कहा, 'अगर आपने उनके साथ फैसला कर लिया है, तब जाइए, आप मुझसे क्या कहलवाना चाहते हैं?''