Motivational Story: दिव्यांग के जज्बे को देख कर आप भी कहेंगे 'सलाम बंधन भाई'
Motivational Story: परेव गांव (कोइलवर प्रखंड, भोजपुर) निवासी बंधन दिव्यांग है, परिवार की ज़िम्मेदारी का बोझ उठाने के लिए उन्होंने अपनी स्कूटी से ही इडली बेचने का काम शुरू किया। इससे उनके परिवार की ज़िम्मेदारियां तो...
Motivational Story: इंसान के अंदर कुछ करने का जुनून और जज़्बा हो तो कामयाबी की बुलंदियों को ज़रूर छूता है। कामयाबी के रास्ते में अगर कुछ रुकावट आती है तो वह आपकी नकारात्मक सोच। वहीं आपके अंदर निगेटिव सोच को पॉज़िटिव सोच में तब्दील करने की कुव्वत है तो आप कामयाबी की ईबारत ज़रूर लिखेंगे। आज हम आपको बिहार के भोजपुर जिले के एक ऐसे ही युवक से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जो कि दिव्यांग होते हुए भी, दिव्यांगता की आड़ में लोगों से मदद नहीं मांगी बल्कि खुद ही आत्मनिर्भर बने और आज लोग उनकी मिसला दे रहे हैं। स्थानीय लोग तो फिल्मी अंदाज़ में सराहना करते हुए कहते हैं 'सलाम बंधन भाई'।
परिवार की ज़िम्मेदारी का उठा रहे बोझ
परेव गांव (कोइलवर प्रखंड, भोजपुर) निवासी बंधन दिव्यांग है, परिवार की ज़िम्मेदारी का बोझ उठाने के लिए उन्होंने अपनी स्कूटी से ही इडली बेचने का काम शुरू किया। इससे उनके परिवार की ज़िम्मेदारियां तो पूरी हो ही रही है, इसके साथ ही बंधन खुद भी खुशहाल ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। आपको बता दें कि दिव्यांग बंधन स्कूटी पर पिछले 4 साल से इडली बेचने का काम कर रहे हैं।
ज़िंदगी से निराश हो चुके थे बंधन
मीडिया से मुखातिब होते हुए बंधन ने अपनी दर्द भरी दास्तां सुनाई, उन्होंने कहा कि दिव्यांग होने की वजह से अपनी ज़िंदगी से निराश हो चुके थे, लेकिन दूसरे दिव्यांगों की तरह भीख नहीं मांगी। परिवार के पालन पोषण की ज़िम्मेदारियां को पूरा करने की चुनौती थी। इन सब चीज़ों को देखते हुए उन्होंने स्कूटी पर इडली बेचने का व्यवसाय शुरु किया। चार साल से स्कूटी की मदद से वह विभिन्न क्षेत्रों में घूम-घूम कर इडली बेच रहे हैं।
बंधन की चलती फिरती इडली की दुकान
बंधन की चलती फिरती इडली की दुकान से वह ग्रामीण इलाकों में जा कर इडली बेच रहे हैं। जिससे मुनाफा भी अच्छा हो रहा है। बंधन ने कहा कि स्वरोज़गार से मुनाफा भी हो रहा है और इज़्ज़त से कमा भी रहे हैं। दिव्यांग बंधन ने सातवीं तक तालीम हासिल की है वह आगे और पढ़ना चाहते थे लेकिन परिवार की ज़िम्मेदारियों की वजह से आगे पढ़ाई नहीं कर सके। अब वह इडली के व्यापार से रोज़ाना क़रीब आठ सौ रुपये तक कमा लेते हैं।
सरकार की तरफ से मिली सहयोग राशि बहुत कम है
बंधन ने कहा कि समाज में दिव्यांग को लेकर लोगों की सोच बदल रही है, पहले दिव्यांग को लोग देखना पसंद नहीं करते थे लेकिन अब समाज के लोग मानसिकता बदल रहे हैं, लेकिन फिर भी कई ग्रामीण इलाकों में अभी भी सोच बदलने की ज़रूरत है। वहीं उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की तरफ़ से जो सहयोग राशि मिलती है, वह बहुत ही कम है। इसलिए ही उन्होंने इडली की दुकान भी खोल ली ताकि परिवार की ज़िम्मेदारियां उठा सकें।
दिव्यांगों की मदद करने की है ज़रूरत
दिव्यांग बंधन ने कहा कि सरकारी की तरफ से मदद तो नहीं मिली लेकिन सरकार से यह मांग करते हैं कि जो दिव्यांग खुद का व्यवसाय करना चाहते हैं उनकी मदद की जाए। ताकि वह भी समाज में 10 लोगों के बीच गर्व से अपनी पहचान बना सके। दिव्यांग को लोग दया भाव के नज़रिया से देखते हैं, उन्हें दया नहीं बल्कि मदद करे ताकि वह समाज में दस के बराबर मुकाम पा सके।
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