Kaimur Historic Temple: ना बकरे की गर्दन काटी और ना ही निकला खून, मां को दी जाती है 'अनोखी बलि'
स्थानीय लोगों की मानें तो रोजाना सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मंदिर खुलता है। इस नवरात्रि पर दूसरे प्रेदेशों से भी काफी श्रद्धालु आ रहे हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो यहां आने वाले श्रद्धालु मन्नत रखते हैं, उनकी मुराद..
कैमूर, 1 अक्टूबर 2022। बिहार में कई एतिहासिक मंदिर जहां कि अलग-अलग मान्यता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इन मंदिरों के दर्शन करने पर हर मुराद पूरी होती है। इसी कड़ी में हम आपको बिहार के कैमूर ज़िले में स्थित मुंडेश्वरी माता मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां रक्तहीन बलि की प्रथा सदियों से चली आ रही है। बिहार की राजधानी पटना से करीब 190 किलोमीटर दूर कैमूर जिले के भभुआ मुख्यालय में यह मंदिर स्थित है। जानकार बताते हैं कि यह मंदिर स्ट्रक्चर के एतबार से पूरे देश में सबसे पुराना माता का मंदिर है। बताया जाता है कि यह मंदिर 5वीं शताब्दी का है। पहली बार एक चरवाहे नें 6ठी शताब्दी में इस मंदिर को देखा था।
पंवरा पहाड़ी पर है मुंडेश्वरी माता मंदिर
मुंडेश्वरी माता मंदिर की अपने इतिहास के साथ ही यहा कि अनोखी 'रक्तहीन बलि' के लिए भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। पंडितों की मानें तो यहां बलि के नाम पर बकरे को काटा नहीं जाता है। मंत्र से कुछ देर तक बकरे को बेहोश कर दिया जाता है, इसे ही बलि माना जाता है। रामपुर पंचायत (भगवानपुर ब्लॉक) में 600 फीट ऊंची पंवरा पहाड़ी पर मुंडेश्वरी मंदिर मौजूद है। दो रास्ते से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, एख रास्ता सीढियों से होकर मंदिर तक पहुंचता है।दूसरा रास्ता सड़क है, 524 फीट की उंचाई तक घुमावदार सड़क के ज़रिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त खुलता है मुंडेश्वरी माता मंदिर
स्थानीय लोगों की मानें तो रोजाना सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मंदिर खुलता है। इस नवरात्रि पर दूसरे प्रेदेशों से भी काफी श्रद्धालु आ रहे हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो यहां आने वाले श्रद्धालु मन्नत रखते हैं, उनकी मुराद पूरी होने पर वह बकरे की बलि देते हैं। मंदिर के पुजारी पिंटू तिवारी ने बताया कि मन्नत पूरी होने वाले श्रद्धालुओं को सबसे पहले हवन कुंड संकल्प कराया जाता है। उन लोगों के साथ बकरा भी मौजूद रहता है। इसके बाद बकरे को गर्भगृह में ले जाया जाता है।
मंत्र पढ़ने से बेहोश हो जाता है बकरा
गर्भगृह में बकरे को मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा के चरणों के नीचे लिटा कर मंत्र पढ़े जाते हैं। मंत्र पढ़ने के थोड़ी देर बाद बकरा बेहोश हो जाता है। मां की पूजा की जाती है, पूजा मकम्मल होने के बाद बकरा खुद खड़ा हो जाता है। यही बकरे की बलि होती है। बलि देने के बाद कई भक्त बकरे को छोड़ मंदिर में ही छोड़ देते हैं। वहीं कुछ श्रद्धालु बकरे की रक्तहीन बलि देने के बाद उसे घर ले जाते हैं और फिर बलि देकर प्रसाद के रूप में खाते हैं।
नागा शैली डिजाइन में बनाया गया है मंदिर
मंदिर के पुजारी पिंटू तिवारी बताया कि मां मुंडेश्वरी मंदिर के इतिहास के बारे में कोई भी सही सही जानकारी दे सका है। सिर्फ अटकलें ही लगाई जाती रही हैं, पहाड़ी पर अभी सिर्फ मंदिर का गर्भगृह है। पहले यहां बड़े-बड़े स्ट्रक्चर में चारों तरफ मंदिर बने थे। मान्यता है कि यहां चंड और मुंड नाम के दो असुरों का वास था। वह दोनों लोगों को काफी प्रताड़ित किया करते थे। लोगों की पुकार सुनकर मां ने धरती पर अवतार लेते हुए दोनों का वध किया था। जिसके बाद माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से यह जगह प्रसिद्ध हुआ। गोपाल कृष्ण (कोषाध्यक्ष, मां मुंडेश्वरी मंदिर न्यास समिति) की मानें तो 635 ईसा पूर्व चरवाहे ने मंदिर को देखा था। इस मंदिर को नागा शैली डिजाइन में बनाया गया है जो कि सदियों पुरानी शैली है।
ये भी पढ़ें: OMG ! धूम धाम से निकाली गई बंदर की शव यात्रा, आत्मा की शांति के लिए होगा रामधुनी यज्ञ