बिहार में MSP की हकीकत, एक छोटे किसान की जुबानी, छग से आधे दाम में धान बेचने को मजबूर
मैं एक किसान हूं। गांव नगरी। प्रखंड चरपोखरी। जिला भोजपुर। यही पता है मेरा। पांच बीघा खेत है। खेती से खर्चा पूरा नहीं होता। कुछ दूसरे काम भी करता हूं। ननिहाल में ममेरी बहन की शादी है। न्योता में धोती, साड़ी, घी, दही और दूसरे सामान लेकर जाना है। नगद पैसा है नहीं। धान की कटनी तो हो गयी है लेकिन दौंनी नहीं हुई है। एक दो दिन में सब तैयारी करनी है। किसी तरह बोझा पीट कर चार क्विंटल धान तैयार किया। सोचा धान बेच कर इज्जत-हाल संभाल लूंगा।
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किसान की धान बिक्री का दृश्य एक
सबेरे उठा तो गाय को नाद पर बांध कर सानी-पानी दिया। दूध लेकर डेयरी फॉर्म गया। हमारे जैसे छोटे किसानों की गांव में डेयरी ही नगद आमदनी का जरिया है। हफ्ते में पैसा मिल जाता है। छोटे मोटे रोज के खर्च निकल जाते हैं। डेयरी में दूध दे कर बनिया के पास गया। गांव में धान बेचने का सुगम माध्यम बनिया ही हैं। जब धान कटने लगता है तो गांव-जवार के कुछ बनिया इसका व्यापार शुरू कर देते हैं। उनके धान खरीदने के दो तरीके होते हैं नगदी और करारी। नगदी का रेट करारी से कम होता है। करारी मतलब बनिया अभी धान लेते हैं और 15 दिन या एक महीना के बाद पैसा देने का करार करते हैं। आप पूछेंगे कि बिहार सरकार ने धान की एमएसपी 1888 रुपये तय की है। फिर बनिया को क्यों धान बेच रहे ? इस मजबूरी की अलग कहानी है, वो आगे बाताऊंगा।
दृश्य-2
मैं गज्जू साव की दुकान पर पहुंचा। उनसे धान खरीदने के लिए कहा। गमछे के कोने में बांध कर नमूना भी ले गया था। गज्जू साव ने ध्यान से धान को देखा और कहा, सौदा थोड़ा मलीन है, बारह सौ का रेट लगेगा। यानी बारह रुपये किलो। मन में तो गुस्सा आया लेकिन चुप रहा। कितने लागत और मेहनत से फसल उगायी लेकिन उसका कोइ मोल नहीं। वहां से उल्टे पांव लौटा। फिर सोहराई आढ़ती के पास पहुंचा। मैने कहा, चार क्विंटल धान है, तुरंत पैसे की जरूरत है, तौला लीजिए। सहोराई ने नमूने का धान देखा, फिर कहा, आपके लिए साढ़े बारह सौ का रेट लगा दूंगा। ये करारी रेट है लेकिन आपको नगद दे दूंगा। बस शर्त इतनी है कि धान आपको मेरी गद्दी (दुकान) तक पहुंचाना होगा। एक दो जगह और पूछा लेकिन कोई और साढ़े बारह सौ का भाव देने को तैयार नहीं हुआ। चार क्विंटल धान खरीदने में कोई दिलचस्पी भी नहीं दिखा रहा था। अभी धान की दौंनी शुरू नहीं हुई थी। इसलिए एक्का-दुक्का ही खरीद हो रही थी। न्योता का दिन नजदीक आ रहा था। मैं गर्जमंद आदमी, क्या करता ?
दृश्य -3
अगर चार क्विंटल धान को सोहराई की गद्दी तक पहुंचाने की मजदूरी देता तो 120 रुपये लग जाते। इतने में तो मेरा ननिहाल जाने का भाड़ा निकल जाता। सोचा साइकिल से धान ढो दूं। आठ बार साइकिल का फेरा लगाया। धान की तौल हुई। साव जी ने पांच हजार रुपये हाथ पर रख दिये। घर आया तो पत्नी ने कहा, कुछ पैसा रख दो बेटा को परीक्षा देने पटना जाना है। गांव में एक कहावत है, आइल अगहन फूललs गाल। अगहन (दिसम्बर) महीना किसानों की खुशी का महीना होता है। धान की फसल तैयार होती है। नया हरा चूड़ा, दूध और गुड़ का सुबह में नास्ता। दोपहर में नये चावल का भात। भरपूर और सुस्वादु भोजन से शरीर निखर जाता है। इस मौसम में धान तो तैयार होता है लेकिन किसानों की सौ जरूरतें भी होती हैं। पैसे की समस्या मुंह बाये खड़ी रहती है। क्या क्या इंतजाम करें ? सब धान के आसरे होता है। आधा पैसा लेकर न्यौता का सामान खरीदा। ननिहाल गया।
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दृश्य - 4
न्योता से गांव लौटा तो महेनदर चा मिल गये। धोती कुर्ता पहने कहीं निकल रहे थे। हमको देख के बोले, ब्लॉक ऑफिस जा रहे हैं, धान बेचने के लिए रजिस्टेशन कराना है। महेनदर चा मुझसे बड़े खेतीहर हैं। तेरह बीघा जमीन है। 70-80 क्विंटल धान हर साल बेचते हैं। मैं ठहरा छोटा किसान सो आज तक सरकारी रेट का दर्शन नहीं कर पाया। इतने झंझट उठा कर धान बेचना मेरे बस की बात भी नहीं। अकेला आदमी कितना दौड़ेगा ? मैंने महेनदर चा से पूछा, कैसे पैक्स में धान बेचते हैं ? तो उन्होंने बताया, सरकारी दर पर धान बेचने के लिए सहकारिता विभाग के पोर्टल पर आवेदन करना होता है। गांव में इंटरनेट कैफे नहीं है। इसके लिए चरपोखरी ब्लॉक के बाजार में जाना पड़ेगा। आवेदन के साथ नाम, पता, जमीन धारण करने का प्रमाण पत्र , बैंक खाता नम्बर, आधार कार्ड, एक पासपोर्ट साइज का फोटो देना पड़ता है। कैफे वाले को इसके लिए पैसे देने पड़ेंगे हैं। धान ट्रैक्टर में लाद कर पैक्स तक पहुंचाना पड़ेगा। ट्रैक्टर भाड़ा के लिए भी पैसा चुकाना होता है। बोरा लोड और अनलोड करने के लिए मजदूरी देनी पड़ती है। इतना करने के बाद अपनी बारी का इंतजार करना होता है। अगर उस दिन नम्बर नहीं आया तो धान का बोरा अगोरने के लिए रात भी वहीं बितानी पड़ सकती है।
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दृश्य -5
मैंने महेनदर चा से पूछा, क्या बेचने पर तुरंत पैसा मिल जाता है ? तो उन्होंने बताया, सरकार के नियम के मुताबिक तो धान बेचने के 48 घंटे बाद पैसा बैंक खाता में आ जाना चाहिए। ए ग्रेड के धान के लिए 1888 रुपये क्विंटल का भाव है और मध्यम श्रेणी के धान के लिए 1868 रुपये प्रति क्विंटल का भाव है। जिसका जैसा धान वैसा पैसा। लेकिन सब लोग इस दर पर धान कहां बेच पाते हैं। दस दिन पहले अखबार में पढ़ा था कि पिछले साल भोजपुर जिले के चार लाख किसानों में से केवल 22 हजार लोग ही ऑनलाइन आवेदन कर धान बेच सके थे। यह सुन कर मैंने माथा ठोक लिया। धतत् तेरी के, ई हाल है सरकारी रेट का ! किसान की बात करने वाले लोग काहे नहीं हम सब जैसे छोटे किसानों को एमएसपी दिलवाते हैं ? मेरे जैसे न जाने कितने मजबूर किसान बारह सौ- साढ़े बारह सौ रुपये क्विंटल धान बेच रहे हैं, हमारी तो कोई नहीं सुन रहा ! नेता लोग अपना घर देखते नहीं और दिल्ली, पंजाब की बात करते हैं। मैं छोटा आदमी, बस इतना ही कहूंगा, मेरे जैसों की भी सुनिये, ईश्वर आपको बरक्कत देंगे।