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नीतीश पहले परिस्थितियों के CM थे, अब मजबूरियों के CM हैं

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क्या भाजपा को मात देने के लिए नीतीश कुमार ने तेजस्वी के सामने समर्पण कर दिया ? 'झुके’ हुए नीतीश कुमार महागठबंधन की राजनीति में कैसे सम्मानजनक तरीके से काम कर पाएंगे ? तेजस्वी यादव पर तब जो आरोप थे, वे अब भी कायम हैं। अब उनको उपमुख्यमंत्री बनाना नीतीश कुमार की मजबूरी थी। पहले वे परिस्थितियों के सीएम थे, अब मजबूरियों के सीएम हैं। एक 'आरोपी’ नेता की शरण में गिरना क्या आत्मसमर्पण नहीं है ? अगर भाजपा से निभाना मुश्किल था तो नीतीश इस्तीफा दे कर चुनाव में क्यों नहीं गये ? नया जनादेश लेना चाहिए था। जिसका कभी परित्याग कर दिया था अब उसकी चिरौरी क्यों की ? राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद नीतीश कुमार तत्काल राबड़ी देवी को आवास पर पहुंच गये। वे समर्थन के अनुग्रह से दबे हुए हुए थे और बिना वक्त गंवाये आभार व्यक्त करना जरूरी था। लेकिन 2017 में तो वे सुशील कुमार मोदी के घर नहीं गये थे। वह इसलिए क्यों कि उस समय अनुग्रह का कोई दबाव नहीं था।

ताकतवर और कमजोर की दोस्ती

ताकतवर और कमजोर की दोस्ती

अभी सत्ता प्राप्ति का उत्सव है। मौसम सुहावना है। लेकिन यह भी सच है कि मौसम एक जैसा नहीं रहता। महागठबंधन के सियासी आकाश पर संकट के बादल छाएंगे तब इस दोस्ती की असली परीक्षा होगी। ये दोस्ती जब हकीकत की जमीन पर उतरेगी तब कई सवाल खड़े होंगे। 79 विधायकों वाले राजद के साथ 45 विधायकों वाले जदयू का तालमेल कैसा रहेगा ? जदयू अब तक बराबरी के अधिकार का अभ्यस्त रहा है। लेकिन संख्याबल में इतना कम होने के बावजूद जदयू क्या राजद के बराबर खड़ा हो पाएगा ? क्या राजद अपने शक्तिशाली होने का फायदा नहीं उठाएगा ? ऐसे में अगर राजद नीतीश कुमार पर हावी होगा तब क्या होगा ? किसी व्यवस्था में ताकतवर और कमजोर की दोस्ती का क्या परिणाम होता है, इसके संदर्भ में पंचतंत्र की एक प्रसिद्ध कहानी है - शेर का हिस्सा।

शेर का हिस्सा

शेर का हिस्सा

पंचतंत्र की यह कहानी बताती है कि लोभ में की गयी बेमेल दोस्ती का क्या नतीजा होता है। एक बार जंगल के राजा शेर की लोमड़ी, सियार और लकड़बग्घा से दोस्ती हुई। शेर ने इनके सामने मिल कर शिकार करने का प्रस्ताव दिया। लोमड़ी, सियार और लकड़बग्घा खुश हो गये कि वे जंगल के राजा के साथ शिकार करेंगे। उनको लोभ हो गया कि शेर के रहने से अच्छा शिकार मिलेगा और भरपूर भोजन मिलेगा। इसके लिए बहुत भाग-दौड़ भी नहीं करनी होगी। चारो ने मिल कर हिरण का शिकार किया। शेर की गुफा के पास शिकार का बंटवारा होने लगा। शेर खुद हिस्सा बांटने लगा। उसने शिकार के चार हिस्से किये। उसने पहला हिस्सा लेकर कहा, यह मेरा क्यों कि मैंने शिकार किया है। अब लोमड़ी, सियार और लकड़बग्घा खुश थे कि आज पेट भर भोजन मिलेगा। वे अपने हिस्से की बात सोच ही रहेल थे कि शेर ने दूसरा हिस्सा अपनी तरफ करके कहा, यह भी मेरा क्यों कि मैं जंगल का राजा हूं। यह देख कर लोमड़ी, सियार और लकड़बग्घा को झटका लगा। फिर शेर ने तीसरा हिस्सा भी ले लिया और कहा, चूंकि मैं बांटने का काम कर रहा हूं इसलिए यह भी मेरा। अब एक हिस्सा ही बचा था। तीनों निर्बल मित्रों की यह आखिरी उम्मीद थी। तब शेर ने कहा, यह हिस्सा वह ले जिसके पास सबसे अधिक ताकत हो। यह सुन कर लोमड़ी, सियार और लकड़बग्घा के मुंह लटक गये। तीनों भूखे ही वापस लौट गये। राजनीति में कोई सबल, निर्बल से दोस्ती नहीं करता। वह दोस्ती की कीमत वसूलने की ताक में रहता है।

अपना-अपना हिस्सा, अपना अपना किस्सा

अपना-अपना हिस्सा, अपना अपना किस्सा

2020 विधानसभा चुनाव के बाद जदयू के 43 विधायक जीते थे। लेकिन उसके 15 मंत्री बने थे। भाजपा के 74 विधायक थे और जिसमें 16 मंत्री बने थे। मतलब संख्याबल में कम होने के बाद भी जदयू की मंत्रिपरिषद में लगभग भाजपा के बराबर ( प्रतीकात्मक रूप से एक कम) हिस्सेदारी थी। लेकिन अब जदयू क्या राजद के साथ ऐसा मंत्रिपरिषद गठित कर पाएगा ? राजद ने संख्याबल के आधार पर मंत्रिपरिषद गठित करने की मांग रखी है। चर्चा है कि राजद को 21 और जदयू को 12 विभाग मिलेंगे। यानी नीतीश कुमार का वह रुतबा नहीं रहगा जैसा कि 2020 में था। जदयू ने कहा है कि राजद को वे 18 विभाग मिलेंग जो पहले भाजपा के पास थे। लेकिन क्या तेजस्वी इसके लिए राजी होंगे ? उन्होंने 45 विधायकों वाले नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री मान कर पहले ही कुर्बानी दे दी है। अब वे शायद ही जदयू की कोई शर्त मानें। शपथ लेने से पहले ही गृहविभाग के लिए राजद और जदयू में खींचतान हो चुकी है। अगर तेजस्वी सरकार में आये हैं तो वे अपनी राजनीति को मजबूत करने आये ,है न कि नीतीश कुमार की मदद करने। जदयू जितना कमजोर होगा, राजद को उतना ही अधिक फायदा मिलेगा। वह इसलिए क्यों कि दोनों के आधार मत लगभग एक हैं। जदयू और राजद अपनी मजबूती के लिए पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक मतों पर निर्भर हैं। ऐसे में राजद चाहेगा कि यह विशाल वोट बैंक उसके पाले में आ जाए। तेजस्वी पहले भी कह चुके हैं कि भविष्य में बिहार की राजनीति राजद बनाम भाजपा की होने वाली है।

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English summary
bihar new government formation and nitish kumar position
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