जब पटना के MLA फ्लैट में गूंजने लगे थे बमों के धमाके, विधायक की वो खौफनाक हत्या
पटना, 13 जून। विधायक अशोक सिंह हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह फिर चर्चा में हैं। वे पेरोल पर जेल से घर आये हुए हैं। भतीजे की शादी में शामिल होने के लिए उन्हें पेरोल मिला है। इस बीच राजद के दिवंगत नेता शहाबुद्दीन के पुत्र ओसामा ने प्रभुनाथ सिंह से मुलाकात कर बिहार के सियासी तापमान को बढ़ा दिया है। राजद के दो बाहुबली घरानों के यूं अचानक मिलने से अटकलबाजियों का दौर शुरू है। क्या राजद की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है ? प्रभुनाथ सिंह अगर सजायाफ्ता नहीं हुए होते तो आज राजद में प्रभावकारी भूमिका निभा रहे होते। लेकिन विधायक अशोक सिंह हत्याकांड में हुई सजा ने उनके राजनीतिक जीवन पर ग्रहण लगा दिया। अगस्त 2020 में झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी उम्रकैद की सजा को बरकरार रख था। इसलिए वे कानून के शिकंजे में हैं। विधायक अशोक सिंह ने कभी प्रभुनाथ सिंह की सरपरस्ती में राजनीति की शुरुआत की थी। लेकिन बाद में उन्होंने प्रभुनाथ सिंह से अलग हो कर अपना रास्ता खुद बनाया। यहीं से दोनों में टकराव की शुरुआत हुई।
1995 का बिहार विधानसभा चुनाव
प्रभुनाथ सिंह मशरक (सारण) के रहने वाले हैं। मशरक पहले विधानसभा क्षेत्र था। अब यह बनियापुर विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। 1980 के दशक में बाहुबल के दम पर कई लोग बिहार की राजनीति में स्थापित हुए थे। 1985 के विधानसभा चुनाव में प्रभुनाथ सिंह मशरक से निर्दलीय चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1990 में वे जनता दल में आ गये और फिर विधायक बने। लेकिन 1995 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक स्थिति बदल गयी। प्रभुनाथ सिंह की छत्रछाया में राजनीति करने वाले अशोक सिंह जनता दल में आ गये। प्रभुनाथ सिंह मशरक के सीटिंग विधायक थे। वे बिहार पीपुल्स पार्टी का प्रत्याशी बन कर चुनावी मैदान में उतरे। उनका मुकाबला जनता दल के उम्मीदवार अशोक सिंह से हुआ। अशोक सिंह ने ताकतवर माने जाने वाले प्रभुनाथ सिंह को करीब 18 हजार वोटों से हरा दिया। एक शागिर्द ने उस्ताद को हरा दिया, ये सबसे बड़ी खबर बन गयी। जिस प्रभुनाथ सिंह की मशरक में तूती बोलती थी, वे चुनाव हार गये। कहा जाता है कि इसके बाद प्रभुनाथ सिंह और अशोक सिंह में दुश्मनी शुरू हो गयी। उस समय जनता दल के नेता लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे।
एमएलए फ्लैट में बमबारी, विधायक की हत्या
अशोक सिंह को विधायक बने करीब तीन महीना हुए थे। 18 जून 1995 के आसपास उन्हें 5, स्ट्रैंड रोड स्थित एमएलए फ्लैट में रहने के लिए जगह मिली थी। उनका निवास पहले तल्ले पर था। तारीख 3 जुलाई 1995 और समय शाम के साढ़े छह बजे। विधायक अशोक सिंह से मिलने के लिए कुछ लोग उनके चुनाव क्षेत्र से आये हुए थे। वे फ्लैट के नीचे लॉन में अशोक सिंह के आने का इंतजार कर रहे थे। सुरक्षा के लिए वहां पांच गार्ड पहले से तैनात थे। विधायक के निजी बॉडीगार्ड भी सुरक्षा में लगे थे। जब गार्ड ने विधायक अशोक सिंह को बताया कि नीचे मुलाकाती उनका इंतजार कर रहे हैं तो कमरे से निकल कर वहां पहुंचे। जब विधायक लॉन में पहुंचे तो मुलाकातियों में से कुछ लोग झोला से बम निकाल कर फेंकने लगे। विधायक के सिर की तरफ भी बम मारा गया जिससे उनके सिर का बड़ा हिस्सा उड़ गया। इतने वीआइपी एरिया में सुरक्षा बलों के रहते ताबड़तोड़ बमबाजी से दहशत फैल गयी। वहां मौजूद लोगों और गार्डों ने गेट बंद कर हमलावरों को पकड़ना चाहा तो वे उन पर भी बम फेंकने लगे। इस बमबारी में विधायक अशोक सिंह के साथ एक मुलाकाती भी मारा गया। वहां ऐसी अफरातफरी मची कि अपराधी पैदल ही भागने में कामयाब हो गये।
विधायक की पत्नी चश्मदीद गवाह
विधायक शोक सिंह की पत्नी चांदनी देवी इस घटना की चश्मदीद गवाह थीं। उन्होंने बताया था, घटना के दिन वे शाम को पति और बच्चों के साथ गांव जाने की तैयारी कर चुकी थीं। गाड़ी के इंतजार में बैठे थे कि नीचे से गार्ड ने बताया कि कुछ लोग मिलने आये हैं। विधायक जी नीचे गये और लॉन में खड़े हो कर ही उनसे बात करने लगे। दो लोग गेट पर रुक गये थे और दो लोग अंदर लॉन में आये थे। इनमें एक आदिमी झोला लिये हुए था। इसी बीच विधायक जी के सिर पर बम से हमला कर दिया गया। खून से लथपथ विधयक अशोक सिंह को पीएमसीएच लाय गया लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को जैसे ही इस घटना की जानकारी मिली वे भी पीएमसीएच पहुंचे। उन्होंने चांदनी देवी को सांत्वना दी। दिवंगत विधायक अशोक सिंह की पत्नी चांदनी देवी ने पटना के सचिवालय थाना में प्रभुनाथ सिंह, उनके भाई दीनानाथ सिंह, केदार सिंह एवं अन्य के खिलाफ हत्या की प्राथमिकी दर्ज करायी। सुरक्षा के लिहाज से इस केस की सुनवाई हजारीबाग के कोर्ट में हुई।
दिवंगत विधायक की पत्नी की गवाही के बाद सजा
दिवंगत विधयक की पत्नी चांदनी देवी ने अदालत में प्रभुनाथ सिंह एवं अनके भाइयों के खिलाफ गवाही दी। न्यायाधीश के पूछने पर उन्होंने कहा था, घटना के वक्त मैं बरामदे में खड़ी थीं। घटना के बाद मैंने प्रभुनाथ सिंह के भाई दीना सिंह, रीतेश मुखिया को गेट से बाहर भागते देखा। जब जज ने पूछ कि क्या आप प्रभुनाथ सिंह को पहचानती हैं तो उन्होंने हां में उत्तर दिय। तब जज ने उन्हें कोर्ट में प्रभुनाथ सिंह की शिनाख्त करने के लिए कहा। चंदनी देवी ने उनकी पहचान की। 2017 में हजारीबाग कोर्ट ने इस माले में प्रभुनाथ सिंह, उनके भाई दीनानाथ सिंह और रीतेश मुखिया को उम्रकैद की सजा सुनायी। 2020 में झारखंड हाईकोर्ट ने रीतेश मुखिया को तो इस केस से बरी कर दिया लेकिन प्रभुनाथ सिंह और दीनानाथ सिंह की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। इस सजा ने प्रभुनाथ सिंह के राजनीतिक भविष्य पर विराम लगा दिया।
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