बिहार चुनाव : अगर बापू स्वर्ग से देख रहे होंगे तो ‘गांधीवादी नीतीश’ के इन दो उम्मीदवारों से कितने खुश होंगे ?
गांधी जी के नाम का ढिंढोरा पीटने वाले नीतीश कुमार कितने गांधीवादी हैं, इसकी एक बानगी देखिए। 2020 विधानसभा में उन्होंने अतरी से मनोरमा देवी और चेरिया बरियारपुर से मंजू वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। मनोरमा देवी का पुत्र रॉकी यादव गया रोड रेज मामले में आदित्य हत्याकांड का प्रमुख आरोपी रहा है। विधान पार्षद रहते हुए मनोरमा देवी घर में शराब रखने के आरोप में जेल जा चुकी हैं। एक समय वे, उनके पति और पुत्र तीनों जेल में थे। राजनीतिक आदर्शवाद पर व्याख्यान देने वाले नीतीश कुमार ने बेहिचक इनको टिकट दिया। मंजू वर्मा 2018 में नीतीश सरकार में मंत्री थीं। इस बीच मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में बच्चियें के यौन शोषण का मामला उजागर हुआ। इसमें मंजू वर्मा के पति चंद्रशेखर का नाम उछला। पुलिस ने छापा मारा तो मंजू वर्मा के घर से अवैध कारतूस बरामद हुए। मंजू वर्मा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में मंजू वर्मा और उनके पति, दोनों जेल गये। मंजू वर्मा को जदयू से निलंबित भी किया गया था। लेकिन जब चुनाव आया तो नीतीश कुमार ने सारी बातें भूला कर मंजू वर्मा को फिर टिकट दे दिया।
क्या नीतीश का गांधीवाद ढकोसला है ?
नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में महात्मा गांधी की बेजोड़ ब्रांडिंग की है। वे अपना हर राजनाति अभियान बापू की कर्मभूमि चम्पारण से शुरू करते हैं। उन्होंने महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती इतनी धूमधाम से मनायी की उसकी देश भर में चर्चा हुई। गांधी जी ने अपने दर्शन में मनुष्य को सात पापों से बचने का की सलाह दी है। ये सात पाप हैं- सिद्धांत के बिना राजनीति, काम के बिना धन, विवेक के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवता के बिना विकास और त्याग के बिना पूजा। 2018 में नीतीश कुमार ने अलग-अलग मंचों से गांधी जी के इन सात पापों का खूब जिक्र किया था। इसके जरिये (काम के बिना धन) उन्होंने लालू परिवार पर जोरदार हमला भी बोला था। उन्होंने एक आदेश दिया था कि सभी स्कूलों, थानों और सरकारी भवनों के गेट पर गांधी जी के बताये सात पापों को लिख कर बताया जाय ताकि आम लोग और सरकारी कर्मचारी इससे बचने के लिए प्रेरित हो सकें। आदेश का पलान भी हुआ था। लेकिन जब खुद की परीक्षा की घड़ी आयी तो नीतीश कुमार ने इसका पालन नहीं किया। अगर सिद्धांत के बिना राजनीति पाप है तो क्या नीतीश कुमार ने (अतरी और चेरिया बरियारपुर) इससे बचने की कोशिश की ?
अतरी उम्मीदवार मनोरमा देवी
7 मई 2016 को 12 वीं का छात्र आदित्य अपने दोस्तों के साथ बोध गया से गया लौट रहा था। वे कार में सवार थे। रास्ते में कार को पास देने के सवाल पर मनोरमा देवी के पुत्र रॉकी यादव का आदित्य और उसके दोस्तों के साथ विवाद हुआ। इसके बाद आरोप लगा कि रॉकी यादव ने आदित्य की गोलीमार कर हत्या कर दी। मनोरमा देवी उस समय जदयू की विधान पार्षद थीं। उनके पति बिंदी यादव (अब दिवंगत) की छवि एक दबंग नेता की थी। आदित्य गया के प्रमुख व्यापारी श्याम सुंदर सचदेव का बेटा था। इस घटना के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया था। पुलिस ने इसकी सख्ती से जांच शुरू की। फरार रॉकी यादव की तलाश में जब पुलिस ने मनोरमा देवी के घर पर छापा मारा तो वहां से विदेशी शराब बरामद हुई। शराबबंदी के बावजूद सत्तारुढ़ पार्टी की विधान पार्षद के घर से विदेशी शराब का मिलना नीतीश कुमार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया। अंतत: रॉकी यादव, बिंदी यादव को आदित्य मामले में और मनोरमा देवी को शराब मामले में जेल जाना पड़ा था। गया की अदालत ने आदित्य हत्याकांड में रॉकी को उम्र कैद की सजा सुनायी गयी थी। मनोरमा देवी के पति बिंदी यादव को पांच साल के कैद की सजा सुनायी गयी थी। शराब मामले में मनोरमा देवी को पटना हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी थी जिसकी वजह से वे जेल से बाहर आ गयीं। बाद में बिंदी यादव को भी जमानत मिल गयी थी। इस घटना के बाद जेडीयू ने मनोरमा देवी को पार्टी से निलंबित कर दिया था लेकिन कुछ दिनों के बाद वे फिर जेडीयू में शामिल हो गयीं थीं। विधान पार्षद के रूप में मनोरमा देवी का कार्यकाल 2021 तक है। लेकिन इसके बाद भी नीतीश कुमार ने उन्हें अतरी से जदयू का उम्मीदवार बना दिया है। उम्मीदवार का यह चयन क्या गांधीवाद के अनुरूप है ? अतरी सीट अभी राजद के कब्जे में है।
चेरिया बरियारपुर उम्मीदवार मंजू वर्मा
अगस्त 2018 में मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण कांड के उजागर होने से नीतीश सरकार की देशभर में बदनामी हो रही थी। इस मामले में जब विभागीय मंत्री ( समाज कल्याण विभाग) मंजू वर्मा के पति चंद्रशेखर वर्मा का नाम उछलने लगा तो नीतीश सरकार मुश्किल में फंस गयी। इस कांड के मास्टर माइंड ब्रजेश ठाकुर ने जब चंद्रशेखर वर्मा का भी नाम लिया तो हंगामा मच गया। दोनों के बीच फोन पर 17 बार बात हुई थी। इसके बाद मंजू वर्मा के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी। मंजू वर्मा इस्तीफा नहीं देने पर अड़ गयीं। जब नीतीश कुमार ने सख्ती दिखायी तो मंजू वर्मा इस्तीफा देने पर मजबूर हुईं। मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड की जांच के सिलसिले में जब सीबीआइ ने मंजू वर्मा के घर पर छापा मारा तो वहां से अवैध कारतूस बरामद हुए। इस संबंध में मंजू वर्मा और उनके पति के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। मंजू वर्मा फरार हो गयीं। जब बिहार पुलिस उनकी गिरफ्तारी नहीं कर पा रही थी तब सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को फटकार भी लगायी थी। आखिरकार मंजू वर्मा ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। करीब चार महीने तक जेल में रहने के बाद वे मार्च 2019 में जमानत पर बाहर निकली थीं। जदयू ने उन्हें विवाद के समय पार्टी से निलंबित कर दिया था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के समय वे फिर राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गयीं थीं। उन्होंने बेगूसराय से चुनाव लड़ रहे भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह का चुनाव प्रचार भी किया था। मंजू वर्मा ने 2015 में चेरिया बरियारपुर से ही जीत हासिल की थी। इतने विवादों में रहने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें फिर उम्मीदवार बनाया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार गांधी जी के आदर्शों का कितना पालन करते हैं।
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