ओडिशा: कोरापुट जिले के आदिवासी लोगों की जिंदग बदल दी कॉफी की खेती ने, जानिए कैसे
भुवनेश्वर, सितंबर 20। ओडिशा का कोरापुट जिला आदिवासी आबादी के लिहाज से भारत का सबसे पिछड़ा हुआ जिला माना जाता है, लेकिन कॉफी की खेती ने इस जिले के लोगों की जिंदगी बदल दी है। समुद्र तल से 3,000 फीट की ऊंचाई पर पूर्वी घाट में स्थित कोरापुट अपनी ठंडी जलवायु और वर्षा के कारण कॉफी की खेती के लिए सबसे उत्तर जगह है। कोरापुट कॉफी एक अनूठा मिश्रण है, जिसमें 100 प्रतिशत अरेबिका कॉफी शामिल है।
कोरापुटा में उगाई जा रही कॉफी का निर्यात भी किया जा रहा है। आपको बता दें कि कॉफी बागान की शुरुआत सबसे पहले कोरापुट में 1930 के दशक में जयपुर के तत्कालीन महाराजा राजबहादुर राम चंद्र देव द्वारा की गई थी। हालाँकि, 1951 में जमींदारी व्यवस्था के उन्मूलन के बाद राज्य के मृदा संरक्षण विभाग ने 1958 में मचकुंड बेसिन में गाद को रोकने के लिए कॉफी बागान शुरू किया।
अब ओडिशा सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय और भारतीय कॉफी बोर्ड की की साझेदारी से कॉफी की खेती ने जिले के आदिवासी लोगों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है और जैविक कोरापुट कॉफी एक ब्रांड नाम के रूप में उभर रही है। जिले में ज्यादातर आदिवासी इसकी खेती करते हैं।
जानकारी के मुताबिक, कोरापुट जिले के आठ ब्लॉकों में 2000 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर कॉफी की खेती की जा रही है। पिछले फसल सीजन (2020-21) में लगभग 1100 मीट्रिक टन (एमटी) कॉफी का उत्पादन किया गया था। यहां सेमिलीगुडा, दसमंतपुर, लक्ष्मीपुर, लमतापुट, नंदापुर, कोरापुट, बैपरिगुडा और पोट्टांगी ब्लॉक में आदिवासी आबादी कॉफी की खेती में लगी हुई है।