गुजरात में 'उत्पीड़न से तंग' 300 से ज्यादा दलितों ने अपनाया बौद्ध धर्म
गुजरात। मंगलवार को विजयादशमी पर गुजरात के तीन शहरों में हुए अलग-अलग कार्यक्रमों में सैकड़ों दलितों ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म को अपना लिया है।
मंगलवार को गुजरात के तीन प्रमुख शहरों अहमदाबाद, कलोल और सुरेन्द्रनगर में हुए समारोहों में बड़ी संख्या में दलितों को बौद्ध धर्म में शामिल किया गया है।
इन समारोहों के आयोजकों का दावा है कि करीब दो हजार दलितों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया है, जबकि अखबार बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलितों की संख्या पर बंटे हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में ये संख्या 200 से 500 तक बताई जा रही है।
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अहमदाबाद, सुरेन्द्रनगर और कलोल में गुजरात बौद्ध महासभा और गुजरात बौद्ध अकादमी ने बौद्ध दीक्षा समारोह का आयोजन किया था।
दलितों के हिन्दू धर्म छोड़ने की वजह उना कांड!
हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने वालों में मजदूर, शिक्षक, नौकरीपेशा और साफ-सफाई का काम करने वाले दलित शामिल हैं।
बड़ी संख्या में दलितों के हिन्दू धर्म छोड़ने को पिछले कुछ समय में दलितों के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है। गुजरात में दलितों पर हमले की कई घटनाएं हालिया दिनों में सामने आई हैं।
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बौद्ध होने वाले लोगों का कहना है कि वो जाति प्रथा से छुटकारा पाने और बड़े दलित नेता भीमराव अंबेडकर के आदर्शों को मानते हुए बौद्ध हुए हैं। डॉ. अंबेडकर ने भी हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया था।
वहीं इस समारोह में आए लोगों में ज्यादातर का कहना है कि ये उना में दलितों के साथ गौरक्षों ने जो किया था, उसके गुस्से का परिणाम है।
पुलिस की मौजूदगी में हुई थी दलितों की पिटाई
कुछ महीने पहले गुजरात में वेरावल के उना गांव में पशुओं की खाल निकाल रहे कुछ दलित युवकों की पुलिस की मौजूदगी में पिटाई की गई थी। इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे गुजरात में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे।
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दलितों को दीक्षा देने वाले धर्मगुरुओं का कहना है कि वो दीक्षा देते हुए जाति नहीं पूछते लेकिन उन्हें जानकारी मिली है कि ज्यादातर दीक्षा लेने वाले दलित है।
दीक्षा देने वाले उपासक ने दलितों के बौद्ध धर्म में आने के पीछे उना या फिर दूसरी किसी हिंसा को वजह मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ये पहली बार नहीं है, जब दलितों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है।