उत्तर प्रदेश के बच्चे पढ़ रहे हैं 'ब से बम, च से चाकू'
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे मासूम होते हैं उन्हें बचपन में किसी भी प्रकार के हिंसात्मक शब्दों व कार्यवाही से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि इससे उनके व्यवहार में परिवर्तन हो सकता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यदि बच्चों के सामने हिंसात्मक शब्दों का प्रयोग किया जाए तो वह उग्र हो जाते हैं और आगे चलकर वह भी हिंसा में रूचि लेने लगता है।
निजी स्कूलों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। राजधानी के कुछ निजी स्कूलों में चल रही आलोक शब्द नाम की हिन्दी की किताब में ब से बम शब्द पढ़ाया जा रहा है वह भी नर्सरी के बच्चों को। इतना ही नहीं कुछ स्कूलों में च से चाकू भी पढ़ाया जा रहा है लेकिन स्कूल प्रबंधन इस ओर आंखे बंद किए बैठे हैं।
सूत्रों का कहना है कि मुनाफे को देखते हुए स्कूल प्रबंधन अब किताबों पर कोई ध्यान नहीं देते उन्हें तो सिर्फ अपने कमीशन से मतलब रह गया है। यही कारण है कि निजी स्कूलों में इस प्रकार की पुस्तकों से पढ़ाई करायी जा रही है। ज्ञात हो कि पूर्व में ऐसी किताबे भी पकड़ी गयीं जिनमें भारतीय इतिहास की गलत जानकारी दी गयी थी। अधिकारी बताते हैं कि अब निजी पब्लिकेशन हाउस मनमाने ढंग से किताबों को छाप रहे हैं और कमीशन देकर यह किताबें स्कूलों में चला दी जाती हैं।
उक्त प्रकरण पर सीबीएसई सिटी कॉर्डिनेटर जावेद आलम का कहना है कि हिंसात्मक शब्दों वाली किताबों को सिलेबस में शामिल नहीं किया जा सकता है। यह जिम्मेदारी स्कूल के प्रधानाचार्य की होती है यदि ऐसा हुआ है तो जांच करा कार्यवाही की जाएगी।