अलग ब्लड ग्रुप में लिवर प्रत्यारोपण, दुनिया का पहला मामला
भारतीय चिकित्सकों ने समान खून की अनिवार्यता समाप्त कर दी है। मेदांता मेडिसिटी के डॉक्टरों ने खून के ओ पॉजिटिव ग्रुप के मरीज को ए पॉजिटिव ग्रुप का लिवर प्रत्यारोपित कर पूरी दुनिया के डॉक्टरों को हैरानी में डाल दिया है। दुनियां के किसी भी कोने में इस तरह का अनोखा प्रत्यारोपण अब तक नहीं किया गया है।
राजस्थान के सीकर निवासी शबनम की दो वर्षीय बेटी जुआना गंभीर लिवर रोग से ग्रसित थी। उसका लिवर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। राजस्थान में इलाज उपलब्ध न होने से उसे मेदांता मेडिसिटी लाया गया। पीडियाट्रिक हेमैटोलॉजिस्ट डॉ. नीलम मोहन ने बताया कि जुआना का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव था। जबकि उसके माता-पिता और करीबी रिश्तेदारों का ए व बी ग्रुप था।
इसलिए कैडेवरिक यानी मरे हुए दाताओं के अंग से प्रत्यारोपण की सूची में जुआना का नाम डाल दिया गया। लेकिन छह महीने तक इंतजार करने के बावजूद भी कोई अंगदाता नहीं मिला। इसलिए अलग अलग रक्त ग्रुप का लिवर प्रत्यारोपित करने का फैसला किया गया। मां शबनम का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। जूआना के खून में एंटीबॉडी कम थे। इसलिए उसकी दादी नसीम के लिवर का 20 फीसदी हिस्सा लिया गया।
सीनियर लिवर प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. एएस सोईन ने बताया कि जुआना का शरीर ए पॉजिटिव ग्रुप वाले का लिवर स्वीकार करे इसके लिए रणनीति बनाई गई। पहले एंटीबॉडीज को खून से साफ करने के लिए प्लाज्मा बदला गया। प्लाज्मा सेल को निष्क्रिय करने के लिए जुआना को मायोकोफेनोलेट दवा दी गई और अन्य तरह के एंटीबॉडीज को सही हालत में रखने के लिए दवाएं दी गईं।
सीनियर लिवर कंसल्टेंट डॉ. आर काकोडकर ने बताया कि इस पूरी रणनीति का मकसद था मरीज के ब्लड में एंटीबॉडी का स्तर 128 यूनिट से घटाकर आठ यूनिट तक लाना और कम से कम तीन सप्ताह तक इस स्तर को बनाए रखना। इतने समय तक शरीर अन्य ग्रुप के लिवर को स्वीकार कर लेता है। यह प्रत्यारोपण सात सप्ताह पहले किया गया था। अब लिवर दाता नसीम और मरीज जुआना दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं। अस्पताल के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन का कहना है कि इस अनोखी सर्जरी से हजारों मरीजों को लाभ मिल सकता है। साथ ही, देश इस क्षेत्र में कई कदम आगे बढ़ गया है।