पोलियो की बदनामी से मिली भारत को निजात
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अलावा नाईजीरिया अब भी इस खतरनाक बीमारी से जूझ रहा है। 13 जनवरी, 2011 को सामने आया था पोलियो का आखिरी मामला, पश्चिम बंगाल के हावड़ा में दो साल की बच्ची बनी थी। बीमारी का शिकार चेचक के बाद पोलियो ऐसी दूसरी खतरनाक संक्रामक महामारी है, जिससे दुनिया को छुटकारा दिलाने की कोशिशें चल रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम से जुड़ी सोना बारी ने कहा कि अगले कुछ सप्ताह में पूरे आंकड़े आ जाएंगे। तब भारत को पहली बार डब्लूएचओ के पोलियो नक्शे से हटा दिया जाएगा। भारत के पोलियो से निपटने में सफलता को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाईजीरिया भी अपने लिए मिसाल बना सकते हैं।
पोलियो वायरस शरीर के तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है। इसके संक्रमण के कुछ घंटों के अंदर ही लकवा मार सकता है। पोलियो गंदगी वाले इलाकों में ज्यादा फैलता है। इसी कारण से भारत को इस बीमारी से मुक्ति पाने में दशकों लग गए। पांच साल से कम के बच्चों में बीमारी का खतरा ज्यादा रहता है। 1988 तक पोलियो दुनिया के 125 देशों में महामारी बना हुआ था। रोजाना करीब 1000 बच्चे इस बीमारी का शिकार बनते थे। 1988 में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम शुरू होने के बाद से अब तक बीमारी के मामलों में 99 फीसदी की कमी आई है। वर्ष 2011 में दुनियाभर में पोलियो के कुल 620 नए मामले सामने आए।
दुनिया के विशेषज्ञ पोलियो वैक्सीन को लेकर चिंता में हैं। पोलियो की ओरल यानी मुंह से पिलाई जाने वाली वैक्सीन में जिंदा वायरस मौजूद होता है। विशेषज्ञों की चिंता यह है कि इस वायरस की वजह से पोलियो फिर फैलने के खतरे को कैसे कम किया जा सकता है। वायरस के दो स्ट्रेन वाली ओरल वैक्सीन बीओपीवी पोलियो के टाइप 1 और टाइप 3 दोनों तरह के वायरस के लिए प्रभावी है। सोना बारी का कहना है कि पोलियो के वायरस के खतरे की तुलना में वैक्सीन का खतरा ज्यादा हो जाएगा, तब हमें कोई फैसला करना पड़ेगा। मालूम हो कि विकसित देशों में निष्क्रिय वायरस वाली पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) इस्तेमाल की जा रही है। लेकिन महंगी होने के कारण भारत जैसे देशों में यह अभी व्यावहारिक नहीं है।