नहीं दिया गया था गंगा बचाने वाले निगमानंद को जहर
गौरतलब है हरिद्वार के स्वामी निगमानंद की मौत पर विवाद काफी बढ़ गया था। गंगा को बचाने की मांग को लेकर करीब चार महीने के अनशन के बाद उनकी देहरादून के अस्पताल में मौत हो गई थी। स्वामी निगमानंद के पिता और अन्य रिश्तेदारों ने इस मामले में न्याय दिलाने की मांग की थी। उन्होंने निगमानंद की मौत को लेकर मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद की भूमिका की भी जांच करवाने की मांग की थी।
स्वामी निगमानंद के पिता सुभाष चंद्र झा, दादा सूर्य नारायण झा और दादी जयकली देवी ने इस मामले में उत्तराखंड सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि सरकार की असंवेदनशीलता साफ जाहिर है क्योंकि देहरादून के उसी अस्पताल में बाबा रामदेव को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं, लेकिन निगमानंद को मरने के लिए छोड़ दिया गया। 34 साल के स्वामी निगमानंद गंगा के किनारे हो रहे अवैध उत्खनन के विरोध में 19 फरवरी 2011 से अनशन पर थे। जिला प्रशासन ने उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती करा दिया था।
हालांकि हरिद्वार के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक पीके भटनागर और खनन माफिया ज्ञानेश कुमार के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर में लिखा गया था कि संभावना है कि इलाज के प्रथम चरण में ही निगमानंद को जहर दिया गया था। बाद में नई दिल्ली स्थित लाल पैथ लैब में इस बात की पुष्टि हुई कि उनके शरीर में ऑरगेनोफास्फेट कीटनाशक उपस्थित हैं। हालांकि अब साफ हो गया है कि उन्हें जहर नहीं दिया गया था।