सोना भी हो सकता है शेयर बाजार की तरह धड़ाम
विशेषज्ञों का एक तबका मानता है कि सोने की आसमान छूती कीमतें जल्दी ही जमीन पर आएंगी। हाल ही में केरल में कोवलम में सोने पर आयोजित एक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने कहा कि कि देश में सोने कीमतें विदेशी बाजारों के बल पर बढ़ रही है। घरेलू बाजार में सोने की मांग सामान्य है और आभूषणों की खपत सीमित है। इसलिए खरीदारों को सतर्क रहना चाहिए। फिलहाल हम उथल-पुथल भरे बाजार में हैं। इसमें संभल कर रहना होगा। विश्लेषकों का कहना है कि लोग सोना खरीद रहे हैं लेकिन वे नहीं जानते कि इसकी खरीदारी क्यों की जा रही है। यह मुख्य कारण है जिससे सोने का बुलबुला जल्द फूटेगा।
सोने में निवेश करने से पहले हमने एक बात बहुत अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आप तार्किक रूप से इसका मूल्य नहीं आंक सकते। आप प्रॉपर्टी में धन लगाते हैं तो उस पर आपको किराया मिल सकता है। एफडी या बांड में लगाएंगे तो ब्याज मिलेगा। शेयरों में लगाएंगे तो लाभांश मिलेगा। कंपनी की कमाई (ईपीएस) बढ़ने के साथ शेयरों का असली मूल्य बढ़ जाएगा। लेकिन सोने में ऐसा कुछ नहीं है। उसमें कोई कैश-फ्लो नहीं है, बल्कि उसको रखने का खर्चा अलग से लगता है।
दुनिया का कोई भी विश्लेषक तर्क से नहीं बता सकता कि सोने का दाम इस समय कितना वाजिब है, कितना नहीं। इसलिए सोना सिर्फ और सिर्फ सट्टेबाजी की चीज है। सट्टेबाज ही इसे चढ़ाते-गिराते हैं। दूसरा यह डिमांड और सप्लाई के सिद्धांत पर काम करता है। सोने पर हम हिंदुस्तानी आज से नहीं, सदियों से फिदा हैं। जुग-जमाना बदल गया। लेकिन यह उतरने का नाम ही नहीं ले रही। इसीलिए भारत अब भी दुनिया में सोने का सबसे बड़ा खरीदार है। चीन तेजी से बढ़ रहा है, फिर भी नंबर दो पर हैं।
भारत में सोने की औसत सालाना खपत 800 टन है। सोने के दाम हमेशा मूलतः डॉलर में ही तय होते हैं। इसलिए डॉलर कमजोर हुआ तो सोने महंगा होने लगता है। अमेरिका में डॉलर का उठना गिरना वास्तविक ब्याज दरों (मुद्रास्फीति और ब्याज दर का अंतर) से तय होता है। असल में दुनिया भर की सरकारें और कंपनियां व बड़े निवेशक डॉलर को सुरक्षित मानकर अमेरिका सरकार प्रतिभूतियों – ट्रेजरी बांडों में निवेश करते हैं। अगर इन पर ब्याज दर मुद्रास्फीति से कम या बराबर है तो सोने के दाम बढ़ते हैं।
वास्तविक ब्याज दर ऋणात्मक होने के कारण लोग सोने में निवेश करने लगते हैं और सोना चढ़ने लगता है। अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार आता है तो ब्याज दरें बढ़ सकती हैं। अगर यह दर मुद्रास्फीति से ज्यादा हो गई तो सोना जमींदोज हो सकता है।अमेरिका में ऋणात्मक ब्याज दरों और सोने के भावों के रिश्ते को मुद्रास्फीति और सोने का रिश्ता समझ लिया जाता है जो महज एक भ्रम है।
मुद्रास्फीति के असर को काटने में सोना कैसे नाकाम रहा है, इसका एक उदाहरण पेश है। 1980 से 2005 के बीच में अमेरिका में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या महंगाई दोगुनी से ज्यादा हो गई। लेकिन इस दौरान सोना का मूल्य करीब 27 फीसदी गिर गया। सोचिए, उनका क्या हाल हुआ होगा जिन्होंने महंगाई के असर से बचने के लिए सोने में निवेश किया होगा। अगर चीन व भारत समेत दुनिया के तमाम देशों के केंद्रीय बैंक अपने खजाने में सोना भर रहे हैं तो उन्हें भरने दीजिए क्योंकि इससे उन्हें अपनी मुद्रा से लेकर मुद्रास्फीति तक को संभालने में शायद मदद मिल जाए। लेकिन हमारे-आप जैसे लंबे समय के निवेशकों के लिए सोने में कोई दम नहीं है।
हां, खुद पहनने या बेटी की शादी के लिए जेवरात खरीदने हैं तो उसमें कोई हर्ज नहीं। लेकिन निवेश के लिए सोने पर धन लुटाने में कतई समझदारी नहीं है। मेरा तो यही मानना है भले ही इसमें फायदा हो लोकिन यह निवेश तार्किक रूप से सही नहीं है। सोना तीस हजार की सीमा तोड़ कर और आगे जा सकता है, लेकिन यह सुरक्षित नहीं है।