स्टेंस, दोनों पुत्रों के हत्यारों की सजा बरकरार
नई दिल्ली। आस्ट्रेलियाई ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दोनों पुत्रों को उड़ीसा में भीड़ द्वारा जलाकर मार डालने के ठीक 12 साल बाद शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने उग्र भीड़ की अगुवाई करने के जुर्म में दारा सिंह उर्फ रविंदर कुमार और उसके साथी महेंद्र हम्बराम की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी।
उम्रकैद की सजा की पुष्टि करते हुए न्यायमूर्ति पी. सतशिवम और न्यायमूर्ति बी.एस. चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में मौत की सजा नहीं सुनाई जा सकती।उड़ीसा उच्च न्यायालय के फैसले से सहमति जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दारा सिंह और उसका साथी स्टेंस को ईसाई धर्म में धर्मातरण सहित उनकी धार्मिक गतिविधियों के लिए सबक सिखाना चाहते थे।
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने पिछले साल नवम्बर में न्यायालय में कहा था कि ये हत्याएं नरसंहार से बदतर थीं। एजेंसी ने दारा सिंह की मौत की सजा बहाल करने का अनुरोध किया था। उल्लेखनीय है कि ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दोनों पुत्रों फिलिप (10) और टिमोथी (6)की उड़ीसा के क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में 22 जनवरी 1999 में निमर्म हत्या कर दी गई थी। घटना के समय वे तीनों अपनी स्टेशन वैगन में सो रहे थे।
सीबीआई की विशेष अदालत ने सितम्बर 2003 में दारा सिंह को सजा-ए-मौत सुनाई थी जबकि उसके 12 साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।मई 2005 में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने दारा सिंह की मौत की सजा कम करते हुए उसे उम्रकैद में बदल दिया था। हम्बराम को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई जबकि 11 अन्य को बरी कर दिया गया।
कटक-भुवनेश्वर के आर्कबिशप रॉफेल चीनाथ ने कहा कि ईसाई समुदाय को सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मंजूर है लेकिन ईसाई समुदाय पहले ही दोषी को माफ कर चुका है।उन्होंने कहा, "जहां तक ईसाई समुदाय का सवाल है हम पहले ही दारा सिंह को माफ कर चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने जो उम्रकैद की सजा सुनाई है, वह हमें मंजूर है।"
बेंगलुरू
की
ग्लोबल
काउंसिल
ऑफ
इंडियन
क्रिश्चियंस
के
अध्यक्ष
साजन
के
जार्ज
ने
कहा,
"हम
सर्वोच्च
न्यायालय
के
फैसले
की
सराहना
करते
हैं।"हिंदू
नेताओं
ने
भी
न्यायालय
के
फैसले
का
स्वागत
किया
है।बजरंग
दल
के
राष्ट्रीय
संयोजक
सुभाष
चौहान
ने
कहा,
"जनता
का
न्यायपालिका
में
यकीन
है।
हम
सर्वोच्च
न्यायालय
के
फैसले
का
स्वागत
करते
हैं।"