पिता का दूसरा सपना पूरा करने आया हूं : अमित सरकार (साक्षात्कार)
पटना, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा के चुनावी मैदान में कूदने वाले एक शख्स ऐसे भी हैं जिन्होंने आस्ट्रेलिया की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी। पूर्णिया के चुनावी समर में कूद पड़े इस शख्स की तमन्ना अपने पिता के दूसरे सपने को पूरा करना है। बहरहाल, वह कोई और नहीं, दिवंगत विधायक और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता अजीत सरकार के पुत्र अमित सरकार हैं। इन्हीं की हत्या के मामले में सांसद पप्पू यादव वर्षो से सलाखों के पीछे हैं।
अमित ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा कि अपने पिता का पहला सपना पूरा करने के लिए उन्होंने आस्ट्रेलिया में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और प्रबंधन की डिग्री भी ली। खर्च जुटाने के लिए उन्हें वेटर का काम भी करना पड़ा, दिक्कतों के बावजूद वह अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए आस्ट्रेलिया में जमे रहे।
उन्होंने कहा, "पिता का पहला सपना मैंने पूरा कर लिया और आस्ट्रेलिया में एक कंपनी में सालाना 50 लाख रुपये की नौकरी भी कर रहा था। लेकिन पिताजी ने गरीबों के विकास का जो सपना संजोया था, वह पूरा नहीं हो सका था। जिसके लिए वह काम कर रहे थे, लेकिन उनकी हत्या हो गई। मैं अब अपने पिता का वही सपना पूरा करने पूर्णिया आया हूं।"
अमित कहते हैं कि उनके पिता वर्ष 1980 से मरते दम तक लगातार विधायक रहे। 14 जून 1998 को उनकी हत्या कर दी गई।
वह कहते हैं, "मेरे पिता गरीबों पर हो रहे अत्याचार के विषय में उन्हें बताते रहते थे। जब उनकी पिता की हत्या हुई, तब मेरी उम्र चुनाव लड़ने की नहीं थी। इस कारण मैं आस्ट्रेलिया चला गया और मेरी मां माधवी सरकार ने चुनाव लड़ा और जीत भी गईं।"
अमित बड़े व्यथित होकर कहते हैं कि पूर्णिया क्षेत्र के गरीबों को उनके पिता अजीत सरकार की कमी आज भी खलती है।
जब उनसे पूछा गया कि अगर चुनाव हार जाएंगे तो क्या फिर आस्ट्रेलिया लौट जाएंगे तो उन्होंने कहा कि चुनाव हारने का प्रश्न ही नहीं उठता। उनके पिता की हत्या के बाद पिछले 12 वर्षो में जब भी गरीबों पर अत्याचार होता है, गरीबों के मुंह से जरूर निकलता है कि 'काश! आज अजीत सरकार होते।' ऐसी स्थिति में क्या उनके सपनों को पूरा करने आया व्यक्ति चुनाव हार जाएगा?
अमित ने बड़े मार्मिक स्वर में कहा, "जिस पुत्र ने अपने पिता की हत्या होते अपनी आंखों से देखी हो, क्या वह उनके अधूरे सपने को पूरा नहीं करेगा?" जब उनसे पूछा गया कि क्या चुनाव लड़ने के लिए माकपा का टिकट ही आवश्यक था, दूसरी पार्टी में क्यों नहीं गए, तो उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा, "पिताजी और मां ने जीवन भर माकपा के झंडे तले ही गरीबों की सेवा की, इस कारण मैंने भी माकपा को ही चुना।"
वह कहते हैं कि चुनाव लड़ने की उनकी पूरी तैयारी है। पूर्णिया क्षेत्र में प्रथम चरण में ही मतदान होना है। उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए छह चरणों में 21 अक्टूबर से 20 नवंबर तक मतदान होगा। सभी सीटों के लिए मतगणना 24 नवंबर को होगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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