क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

रोजा खोलने के लिए भी नहीं है अन्न का एक दाना

By Jaya Nigam
Google Oneindia News

सहरसा (बिहार), 28 अगस्त (आईएएनएस)। पिछले दो दिनों से मेहरून ने न तो सेहरी की है और ना ही इफ्तार। रमजान के इस पवित्र महीने में उनका घर उजड़ गया है और उन्हें अपने परिवार के साथ तटबंध पर शरण लेनी पड़ी है।

सहरसा के महिषी प्रखंड के भेलाही गांव की विधवा मेहरून आपदा के समय घर से एक दाना भी नहीं निकाल पाई थीं। मेहरून के दो पुत्र हैं लेकिन दोनों कमाने के लिए बाहर गए हैं। अब मेहरून के पास न तो सेहरी के लिए कुछ बचा है और ना ही रोजा खोलने की कोई व्यवस्था है।

यह कहानी सिर्फ महरून की नहीं है बल्कि पूर्वी कोसी तटबंध से सटे कई अल्पसंख्यक बहुल गांवों के लोगों की भी यही कहानी है। बाढ़ की चपेट में इनका सब कुछ तबाह हो गया।

झपाड़ी गांव निवासी 65 वर्षीय मोहम्मद अफजल कहते हैं कि रोजा खोलने के लिए उनके पास अन्न का एक दाना तक नहीं है। पूरा गांव बाढ़ में डूबा है लेकिन तटबंध पर न तो कोई सरकारी मुलाजिम आया है और न ही गांव से ही कोई बचाने आया।

अफजल बताते हैं कि जो लोग तटबंध पर शरण लिए हैं वे ही अपने घर से जो कुछ लेकर आए हैं उसे ही इकट्ठा कर हम लोग रोजा खेालते हैं।

तटबंध पर शरण लिए नौहट्टा प्रखंड की निशा बेगम कहती हैं कि रमजान के इस पाक महीने में दिन तो किसी तरह कट जाता है परंतु रोजा खोलने के समय घर की याद आती है। उन्होंने कहा कि रोजा के लिए लोग कई तरह की व्यवस्था रखते हैं परंतु इस वर्ष तो लोगों के दिए खाद्य पदार्थो से रोजा खोलना पड़ रहा है। उनके साथ दो बच्चे भी हैं, जो रोजा रखे हुए हैं।

सहरसा जिले के समाजसेवी मोहम्मद ताहिर कहते हैं कि तटबंध पर अल्पसंख्यक परिवारों के लिए सेहरी और इफ्तार के लिए लोगों से चंदा इकट्ठा कर इसकी व्यवस्था की जा रही है लेकिन वह यह आशंका भी जताते हैं कि चंदे से क्या होगा और कितने दिन यह व्यवस्था चल सकेगी।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X