रोहतांग: सबसे लंबी सुरंग की सोनिया ने रखी आधारशिला
सोलांग (हिमाचल प्रदेश)। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को 13,300 फुट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी सुरंग की आधारशिला रखने के बाद कहा कि इसके निर्माण से न केवल पर्यटन और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ावा मिलेगा बल्कि युवाओं के सामने रोजगार के ज्यादा अवसर भी उपलब्ध होंगे।
यह सुरंग मनाली से 25 किलोमीटर दूर धुंडी में बनेगी। यह 8.8 किलोमीटर लंबी होगी। इस सुरंग के बन जाने के बाद लद्दाख और मनाली से सालों भर सड़क संपर्क बना रहेगा। इस सुरंग से हिमाचल के लाहौल और स्पीति जिले सड़क संपर्क से जुड़ जाएंगे। सर्दी के मौसम में इन दोनों जगहों का संपर्क देश के शेष हिस्से से कट जाता था।
इस मौके पर सोनिया ने कहा, "लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं पूरे साल हासिल कर सकेंगे। चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ावा मिलेगा। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और युवाओं के पास रोजगार पाने का अवसर भी बढ़ेगा।" उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर जैसे पर्वतीय राज्यों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
रोहतांग सुरंग से निकलेगा 16 लाख टन मलबा :-
रोहतांग सुरंग के निर्माण के दौरान खुदाई से 16 लाख टन चट्टानों व पत्थरों का मलबा निकलेगा। बीआरओ के लेफ्टिनेंट कर्नल के.एस.ओबेराय ने सुरंग स्थल पर आईएएनएस से कहा, "सुरंग की खुदाई से 16 लाख टन मलबा निकलेगा।"
ओबेराय ने कहा कि चट्टान के इस मलबे का काफी हद तक इस्तेमाल 8.82 किलोमीटर लंबी घोड़े की नाल के आकार वाली इस सुरंग के निर्माण में हो जाएगा। यह सुरंग 11.25 मीटर चौड़ी होगी। इस सुरंग के जरिए दोतरफा यातायात की सुविधा होगी।
ओबेराय ने कहा, "बाकी मलबे को, जिसे हम कंकरीट के साथ मिला कर इस्तेमाल नहीं कर सकते, उसे सुरंग स्थल के रास्ते में पड़ने वाले निचले इलाकों में पाट दिया जाएगा।" इससे इलाके के कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र को पर्यावरण का कोई खतरा नहीं होगा।
धूमल ने कहा, बड़ा खतरा हिमालय के उत्तर से :-
मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि भारत की सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा हिमालय के उत्तरी इलाके से हो सकता है। लिहाजा जिस रफ्तार से चीन अपनी सीमा पर अधोसंरचना का निर्माण कर रहा है, अपने देश को भी उसी रफ्तार से अपनी ओर अधोसंरचना के विकास की जरूरत है।
धूमल ने कहा, "देश की सुरक्षा को सबसे खड़ा खतरा उत्तर से हो सकता है। सीमा के उस पार जोरदार तैयारी चल रही है। वहां अधोसंरचना का निर्माण किया जा रहा है।" उन्होंने कहा कि लेह के लिए एक रेल लाइन का निर्माण किया जाना चाहिए। सरकार रेलवे के पठानकोट सेक्शन का भी विस्तार कर सकती है।
भाजपा का दावा:-
कांग्रेस द्वारा रोहतांग सुरंग के लिए पूरा श्रेय लेने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सोमवार को आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि इस रणनीतिक परियोजना की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में ही रखी थी।
भाजपा नेता प्रकाश जावड़ेकर ने आईएएनएस से कहा, "हम चकित और हैरान हैं। काग्रेस किस तरह से यह सब खेल करती है।" उन्होंने कहा कि रोहतांग सुरंग परियोजना की घोषणा वाजपेयी ने 2000 में की थी और यह परियोजना सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा पूरी की जानी थी। बाद में 23 मई, 2002 को वाजपेयी ने इसकी आधारशिला रखी थी।
जावड़ेकर ने कहा, "इस परियोजना की दूसरी बार आधारशिला रखी गई है। कांग्रेस के लिए इतिहास और भूगोल नेहरू-गांधी खानदान के दरवाजे पर शुरू होता है और समाप्त हो जाता है।"
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है रोहतांग सुरंग :-
लेह-मनाली राजमार्ग को हर मौसम में रणनीतिक लद्दाख क्षेत्र तक सुगम बनाने की दिशा में यह एक प्रमुख कदम है। यह क्षेत्र चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ है। यद्यपि इस सुरंग का विचार 1984 में ही सामने आया था, लेकिन 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध ने श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग के विकल्प के रूप में लद्दाख के लिए एक सड़क संपर्क के महत्व को रेखांकित कर दिया।
कहा जाता है कि 1999 में पाकिस्तानी सेना की मदद से बड़ी संख्या में आतंकियों की घुसपैठ का मकसद महत्वपूर्ण श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग को काटना और लद्दाख व सियाचिन ग्लेशियर के अग्रिम इलाकों में आपूर्ति को ठप्प करना था। इसके बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा हमले की योजना थी।
श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग, नियंत्रण रेखा (एलओसी) से लगा हुआ है और यहां पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से गोलीबारी का खतरा बना रहता है। हालांकि दोनों देशों के बीच 2003 में हुए एक संघर्ष विराम समझौते के बाद से गोलीबारी बंद है। 13,300 फुट की ऊंचाई पर बनने वाली रोहतांग सुरंग, श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग के लिए वैकल्पिक संपर्क की दिशा में एक कदम है।
इस सुरंग पर 1,500 करोड़ रुपये की लागत आने वाली है। इससे मनाली-लेह राजमार्ग पर सड़क की दूरी लगभग 48 किलोमीटर कम हो जाएगी और यात्रा समय में चार घंटे की कमी आएगी। प्रतिदिन कोई 1,500 भारी वाहन और 3,000 हल्के वाहन 80 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से सुरंग पार कर सकते हैं। लेकिन रोहतांग सुरंग, मनाली-लेह राजमार्ग को बारहमासी बनाने के लिए अकेले पर्याप्त नहीं है, क्योंकि रास्ते में बारालाचा ला और थांगलांग ला जैसे दो बर्फीले दर्रे और हैं।
रक्षा विभाग के एक प्रवक्ता ने बताया कि इन बर्फीले दर्रो से पार पाने के लिए रोहतांग परियोजना में 292 किलोमीटर लंबे बारहमासी मार्ग के निर्माण की योजना बनाई गई है। यह मार्ग पदम-दारचा से शिंकुनला दर्रे से होते हुए लद्दाख के दूरवर्ती इलाके जानस्कर तक जाएगा। इस मार्ग के निर्माण पर 286 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत आएगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।