फर्जी मुठभेड़ पर सर्वोच्च न्यायालय में उप्र सरकार की खिंचाई
अदालत ने यह निर्देश ऐसे समय में दिया, जब राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि मोहम्मद सलीम का शव उसके परिजनों को सौंप दिया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रत्नाकर दास ने कहा कि शव 16 मई को ही दे दिया गया था और उसे दफन किया जा चुका है।
इस पर न्यायमूर्ति जी.एस.सिंघवी और न्यायमूर्ति सी.के.दास की अवकाशकालीन खण्डपीठ ने दास से पूछा कि शव मृतक के रिश्तेदारों को क्यों नहीं सौंपा गया। दास ने जवाब दिया कि शव रिश्तेदारों को ही सौंपा गया था।
मृतक के परिजनों की ओर से पेश होते हुए अधिवक्ता डी.के.गर्ग ने कहा कि याची गरीब है।
गर्ग ने कहा कि यह शीर्ष अदालत की परंपरा है कि इस तरह के मामलों को केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंप दिया जाता है।
ज्ञात हो कि सलीम को उत्तर प्रदेश पुलिस ने 15-16 मई, 2010 की रात कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था। पुलिस का आरोप है कि सलीम ने अन्य अपराधियों के साथ मिल कर एक कार लूटा था। अन्य अपराधी भागने में सफल हो गए थे।
दूसरी ओर सलीम के परिजनों का कहना है कि सलीम ऐसा कर पाने की स्थिति में ही नहीं था, क्योंकि 11 नवंबर, 2009 को हुई एक गंभीर दुर्घटना के बाद उसे लकवा मार दिया था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।