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हमेशा सुर्खियों में रहे चिदंबरम (संप्रग सरकार का 1 वर्ष)

By Staff
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नई दिल्ली, 20 मई (आईएएनएस)। कुछ सहयोगियों से अभिमानी होने की आलोचना झेलने वाले और विपक्ष से प्रभावी काम करने की तारीफ पाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम मनमोहन सिंह सरकार के एक ऐसे मंत्री हैं जो आतंरिक सुरक्षा के चुनौतीपूर्ण काम के साथ ही व्यक्तित्व के कारण अधिक चर्चा में रहे।

मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमले के बाद 65 वर्षीय चिदंबरम ने शिवराज पाटील से गृह मंत्रालय का कामकाज संभाला था और तब से वह लगातार पद पर बने हुए हैं।

जहां उनके पूर्ववर्ती के बारे में कभी-कभी ही सुनने को मिलता था, हार्वर्ड से व्यापार प्रबंधन स्नातक ने अपनी योग्यता साबित की और पिछले वर्ष मई में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के सत्ता में वापसी के बाद फिर गृह मंत्री का पद हासिल किया।

आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियों से जूझ रहे गृह मंत्रालय में सुचारू कामकाज को बढ़ाने के लिए एक प्रभावी मंत्री के रूप में चिदंबरम की प्रशंसा विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तक ने की।

संप्रग के सत्ता में दूसरी बार वापसी के एक वर्ष बाद नक्सलवादी हिंसा में नाटकीय वृद्धि के कारण सुरक्षा प्रतिष्ठान सर्वाधिक गंभीर खतरे से जूझ रहे हैं।

दूसरी ओर असम और जम्मू एवं कश्मीर में परेशानी के बावजूद पिछले 18 महीनों में केवल एक बड़ा आतंकवादी हमला-13 फरवरी को पुणे में बम विस्फोट के रूप में हुआ, इसमें 17 लोग मारे गए थे।

गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि ऐसा नहीं है कि आतंकवादी हमला नहीं करना चाहते। एक अधिकारी ने आईएएनएस से कहा, "वे षड्यंत्र रचते हैं लेकिन हमने आतंकवादी हमले की करीब 20 साजिशों को विफल किया है।"

उन्होंने कहा कि ऐसा खुफिया सूचनाओं की साझेदारी में प्रत्यक्ष सुधार से संभव हुआ।

सफलताओं के अलावा छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में छह अप्रैल को नक्सली हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 76 जवानों की मौत के बाद चिदंबरम करीब-करीब पद छोड़ चुके थे।

इसके केवल 40 दिन बाद 17 मई को दंतेवाड़ा में ही एक बस को निशाना बनाकर किए गए बारूदी सुरंग के विस्फोट में नागरिकों सहित 30 लोग मारे गए।

नक्सली विद्रोह के चार दशकों के सबसे भीषण हमले के बाद चिदंबरम की कार्यशैली की उनकी ही पार्टी के कई सदस्यों ने कड़ी आलोचना की। इनमें मंत्रिमंडल के उनके सहयोगी जयराम रमेश भी शामिल हैं।

कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले चिदंबरम को 'बौद्धिक अहंकारी' कहकर विवाद को शुरू किया। राज्यसभा के सदस्य मणिशंकर अय्यर ने भी इसी कारण से गृह मंत्री की आलोचना की।

रमेश ने हाल ही में बीजिंग में कहा कि चिदंबरम के नेतृत्व में गृह मंत्रालय चीन को लेकर आशंकित है। इस टिप्पणी को लेकर भारी विवाद हुआ जो केवल मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप के बाद ही शांत हुआ।

अपने ही साथियों से अप्रत्याशित सार्वजनिक आलोचना झेलने वाले प्रखर वकील-नेता को वहां से समर्थन मिला जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी। भाजपा ने आतंरिक सुरक्षा के लिए किए गए उनके प्रयासों की प्रशंसा की और उनका समर्थन किया।

भाजपा के नेता अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा, "राष्ट्र, विपक्ष और गृह मंत्री नक्सलियों से लड़ना चाहते हैं। परंतु सरकार का रुख विरोधाभासी है। नक्सलियों के खिलाफ चिदंबरम जो भी कड़े उपाय करें, हम उसके समर्थन में हैं।"

नक्सलियों के हिंसा छोड़ने की शर्त पर उनसे कई बार वार्ता की पेशकश कर चुके चिदंबरम ने नक्सलियों के खिलाफ अपनी विफलता का दोष गृह मंत्री के तौर पर हासिल सीमित अधिकारों को दिया। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार इसका अर्थ है कि वह अधिकतम बल का उपयोग करना चाहते हैं।

इस प्रस्ताव पर उनको सरकार के भीतर और बाहर कुछ समर्थन मिला है।

एक सुरक्षा विश्लेषक और दक्षिण एशिया में आतंकवाद पर एक पोर्टल के संचालक अजय साहनी ने सवाल किया, "उनके पास जो ताकत है उसका उन्होंने क्या उपयोग किया है?"

साहनी ने कहा कि मंत्री ने अपने पास उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं किया।

साहनी ने आईएएनएस से कहा, "आप अधिक शक्तियों की मांग करते हैं, क्या आप तानाशाह बनना चाहते हैं, क्या आप इस देश के फील्ड मार्शल बनना चाहते हैं? हमें केवल एक बेहतर रणनीति की जरूरत है। आपको एक लड़ाई जीतनी है। सीखिए कैसे इसे जीतेंगे।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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