असुरक्षा और अकेलेपन ने माधुरी गुप्ता को जासूस बनाया!
गुप्ता अपने वरिष्ठ अधिकारियों के भी खिलाफ थीं और जब उसे इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में ऊर्दू भाषा के जरिए काम करने का मौका मिला तो वह कुछ दक्षिणपंथी पाकिस्तानी मीडिया संगठनों के संपर्क में आ गईं और भारत के खिलाफ काम करने लगीं।
गुप्ता ने ऊर्दू भाषा की समझ का इस्तेमाल द्विपक्षीय मुद्दों पर करने लगीं। कई महत्वपूर्ण मसलों पर वह सतर्क रहने लगी थी और नई दिल्ली की आवाजाही बढ़ा दी थी।
गुप्ता की सैन्य मसलों पर अधिक रुचि को देखकर उच्चायोग में भारतीय रक्षा विभाग के अधिकार सतर्क हो गए और उसकी गतिविधियों पर नजर रखने लगे।
आईएएनएस को विश्वस्त सूत्र से मिली जानकारी के अनुसार गुप्ता ने पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का फैसला 'पैसे या प्रेम' के लिए नहीं किया था। माना जा रहा है पूछताछ की प्रक्रिया आगे बढ़ने के साथ कई और राज खुलेंगे।
इस बात को लेकर आशंका है कि पाकिस्तान ने गुप्ता की 'मनोवैज्ञानिक असुरक्षा की भावना' का फायदा उठाया है। गुप्ता अकेले रहती थीं, उसका एकमात्र भाई संपर्क में नहीं था।
ऊर्दू की विशेष समझ होने के कारण गुप्ता पाकिस्तान की प्रमुख अखबारों के संपर्क में आईं। इसी दौरान वह 'नावा-ई-वक्त' नामक अखबार के संपर्क में आई। यह अखबार माजिद निजामी का है। निजामी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद का करीबी है।
उल्लेखनीय है कि गुप्ता भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) की बी कैडर की सदस्य है। वह इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में बतौर द्वितीय सचिव के तौर पर काम करती थी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।