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दिल की सुन रहे हैं राजगद्दी छोड़ चुके शाही लोग

By Neha Nautiyal
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मधुश्री चटर्जी

नई दिल्ली, 15 मार्च (आईएएनएस)। स्वतंत्रता के बाद अपनी राजगद्दी और रियासतें छोड़ चुके कुछ पुराने शाही लोग अब अपने दिल की बात सुन रहे हैं। ये लोग अब भारतीय विरासत, संस्कृति और मानवाधिकारों के संरक्षक की भूमिका निभा रहे हैं।

मानवेंद्र सिंह गोहिल गुजरात की एक छोटी सी रियासत राजपिपला के राजकुमार थे। इस रियासत की स्थापना 1370 ईसवी में हुई थी।

गोहिल ने आईएएनएस को बताया, "मैं कई भूमिकाएं निभा रहा हूं। मैं हारमोनियम को संगत के वाद्य यंत्र की बजाए एक एकल शैली के वाद्य यंत्र के रूप में पुनर्जीवित करना चाहता हूं।"

गोहिल हर रोज एक घंटे का रियाज करते हैं। वह समलैंगिक हैं और समलैंगिकों के अधिकारों के लिए 'लक्ष्य ट्रस्ट' चला रहे हैं। वह इस ट्रस्ट की ओर से समलैंगिकों के अधिकारों के लिए मदद करते हैं।

उन्होंने कहा, "मैंने अपने राज्य में समलैंगिक पुरुषों के लिए देश के पहले वृद्धाश्रम के लिए भूमि की पहचान कर ली है और इसके लिए काम शुरू होने वाला है। मैंने बड़ौदा में 20 बुजुर्ग पुरुषों के लिए स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधाओं का इंतजाम किया है। एक बार वृद्धाश्रम का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद वे वहां रहने चले जाएंगे।"

गोहिल देशभर के कम से कम 30 पूर्व शाही परिवारों के 50 सदस्यों में से एक हैं। ये सभी सदस्य 99 वर्ष बाद शनिवार शाम राजधानी के ऐतिहासिक इम्पीरियल होटल में पुनर्मिलन के लिए इकट्ठे हुए थे।

गुजरात के खेड़ा जिले के बालासिनोर की रानी आलिया सुल्तान बाबी का जिंदगी 1981 में उस समय बदल गई जब राईयोली से डायनोसॉर के जीवाश्म मिले। वह एक शौकिया जीवाश्म विज्ञानी बन गईं और 'डॉ. डायनोसॉर' के नाम से मशहूर हो गईं।

आलिया ने आईएएनएस से कहा, "यह मेरे दादा का गांव है और अब यह भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित देश का तीसरा सबसे बड़ा ऐतिहासिक जीवाश्म स्थल है।"

इसी तरह जुब्बल की रानी भिबूती सिंह गुजरात के गोंडल में अपने पति के साथ एक रिसॉर्ट चला रही हैं। इसे देश के सबसे अच्छे सांस्कृतिक खजाने में से एक माना जाता है।

भारतीय शहंशाहों और उनकी रियासतों पर तीन किताबें लिख चुके अमीन जाफर कहते हैं कि पूर्व शाही परिवारों के ज्यादातर लोग होटल चला रहे हैं या अन्य व्यापार कर रहे हैं। इनमें से कुछ विरासत संरक्षण का काम कर रहे हैं और कुछ राजनीति में चले गए हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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