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होलिका के गांव में खंडहर हुआ हिरण्यकश्यप का किला

By Staff
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झांसी, 27 फरवरी (आईएएनएस)। रंगों के पर्व होली के जनक बुन्देलखंड के एरच कस्बे में होलिका के भाई हिरण्यकश्यप का किला खंडहर में बदल चुका है। लेकिन इस किले की दशा से यहां के लोग खुश हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बीच सिर्फ प्रहलाद की स्मृति जीवित रहे न कि हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की।

बुंदेलखंड के झांसी में है एरच कस्बा। यह इलाका कभी हिरण्यकश्यप के राज्य की राजधानी हुआ करता था। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था मगर उसके घर प्रहलाद जैसा बेटा हुआ। प्रहलाद विष्णु भक्त था। बस इसी को लेकर हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की बैर हो गई।

तमाम धर्म ग्रंथ इस बात के गवाह हैं कि हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई दफा कोशिश की। उसने प्रहलाद को नदी में फेंका, सांपों से कटवाया, मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ।

इतिहासविद् हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसे न नर मार सकेगा न जानवर, न वह दिन में मरेगा और न रात में, इतना ही नहीं वह घर के भीतर तथा बाहर भी नहीं मरेगा। इसीलिए विष्णु भगवान को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा था। प्रहलाद को जब हिरण्यकश्यप मारने में सफल नहीं हुआ तो उसने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया।

होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। प्रहलाद को मारने के लिए रची गई साजिश के मुताबिक बेतवा नदी के किनारे स्थित डीकांचल पर्वत पर एक समारोह का आयोजन किया गया। इसमें तय हुआ कि होलिका नाचते-नाचते प्रहलाद को गोदी में लेकर आग में बैठ जाएगी, जिसमें प्रहलाद जल जाएगा। मगर प्रहलाद को जलाने की कोशिश में हुआ उलटा। होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।

कुशवाहा धर्म ग्रंथों का हवाला देते हुए बताते हैं कि हिरण्यकश्यप को इस बात का पता चला तो वह बौखला गया। उसने प्रहलाद को मारने की कोशिश की। प्रहलाद की रक्षा को भगवान नरसिंह के अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप को मार डाला। उसके बाद प्रहलाद को राजगद्दी सौंपी गई। मगर दानवों ने उसे राजा नहीं माना क्योंकि वह अपने पिता का कातिल था।

बताते हैं कि भगवान विष्णु ने दानवों और देवताओं की एरच के पास डीकांचल पर्वत के करीब पंचायत कराई। इस पंचायत में विष्णु जी ने प्रहलाद को अपना बेटा स्वीकारा। इस पंचायत के बाद सभी ने एक दूसरे को गुलाल लगाई। तभी से होली मनाई जाने लगी। जिस दिन यह पंचायत थी उस दिन पंचमी थी।

एरच में खुदाई के दौरान एक ऐसी मूर्ति भी मिली है, जिसमें प्रहलाद को गोदी में लिए होलिका को दिखाया गया है। इसके अलावा हिरण्यकश्यप काल की शिलाएं भी मिली हैं। एरच में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनमें प्रहलाद की मूर्तियां स्थापित हैं और यहां के लोग उनकी पूजा करते हैं।

एरच कस्बे के एक छोर पर हिरण्यकश्यप के काल का किला लगभग खंडहर में बदल चुका है। ओमकार सिंह कहते हैं कि आमतौर पर किले लोगों को लुभाते हैं, मगर यह किला ऐसा नहीं है। इस किले में बरसों में लोग कभी कभार आते हैं। इसका कारण यह है कि यहां के लोग हिरण्यकश्यप को याद नहीं करना चाहते। उनकी इच्छा तो यह है कि हिरण्यकश्यप की यह निशानी ही खत्म हो जाएं।

एरच के लोगों को इस बात का गर्व है कि प्रहलाद जैसा व्यक्ति उनके इलाके में जन्मा और आज पूरी दुनिया उस पर नाज करती है। गांव के लोग अपने बेटों के नाम प्रहलाद तो रखते हैं मगर उसके पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका को कोई याद नहीं करना चाहता।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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