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देश में बीटी बैंगन पर रोक, अभी और होंगे परीक्षण (राउंडअप)

By Staff
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केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि चूंकि इस मुद्दे पर देश के वैज्ञानिकों में स्पष्ट सहमति नहीं है, लिहाजा वह इस मामले में एहतियाती दृष्टिकोण अपनाएंगे।

ज्ञात हो कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है, जहां जीन परिवर्धित फसल की व्यावसायिक खेती का मुद्दा सामने आया है।

रमेश ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती की तब तक अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययन जनता और पेशेवरों को इस मामले में संतुष्ट नहीं कर देता कि इसका मानव स्वास्थ्य पर और पर्यावरण पर कोई दीर्घकालिक कुप्रभाव नहीं होगा।"

रमेश ने इस मुद्दे पर देश के सात शहरों में आयोजित की गई जन सुनवाई के दौरान पर्यावरण कार्यकर्ताओं की ओर से, किसानों की ओर से और 11 राज्य सरकारों की ओर से जीन परिवर्धित इस फसल के खिलाफ उठाई गई आवाजों का जिक्र किया।

रमेश ने कहा, "यह निर्णय इस सूचना पर आधारित है कि वैज्ञानिक समुदाय में इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट आम राय नहीं है। पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इतने प्रश्न खड़े किए हैं कि उनका कोई संतोषजनक जवाब नहीं है।"

रमेश ने कहा, "यह निर्णय लेना काफी कठिन रहा है, क्योंकि मुझे विज्ञान और समाज, उपभोक्ताओं और उत्पादकों तथा केंद्र व राज्यों के बीच संतुलन स्थापित करना था।"

रमेश ने कहा, " विभिन्न राज्यों में इस मुद्दे पर भारी विरोध भी सामने आए हैं। नकारात्मक जनभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि बीटी बैंगन को मंजूरी देने की इतनी कोई जल्दी नहीं है।"

उन्होंने कहा, "बीटी बैंगन पर सावधानी पूर्वक कदम बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है। इसके मानव शरीर पर दीर्घकालीक असर के बारे में अध्ययन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।"

रमेश ने साफ किया कि इस रोक का अर्थ बीटी बैंगन की सशर्त स्वीकृति नहीं है। उन्होंने कहा, "मैं यह कहना चाहूंगा कि इस रोक के लिए वैज्ञानिक समुदाय और समाज जिम्मेदार है।"

रमेश ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रतिबंध महाराष्ट्र स्थित माहिको कंपनी द्वारा विकसित किए जा रहे बीटी बैंगन पर है। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (कोयमबटूर), धारवाड़ (कर्नाटक) स्थित कृषि विश्वविद्यालय के अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की दो प्रयोगशालाएं भी जीन परिवर्धित बैंगन विकसित कर रही हैं।

नकली बीटी बैंगन के बीजों के बाजार में आने की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर रमेश ने कहा कि इस पर रोक लगाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी होगी। उन्होंने कहा, "मैं उम्मीद करता हूं कि बीटी कॉटन जैसी स्थिति देखने को नहीं मिलेगी, जहां नकली और अनधिकृत बीटी कॉटन के बीज बाजार में प्रचलित हो गए।"

बीटी बैंगन पर निर्णय की घोषणा बुधवार को की जानी थी, लेकिन रमेश ने इसे एक दिन पहले ही घोषित कर दिया। इस मुद्दे पर देश भर में और राजनीतिक गलियारों में माहौल काफी गरम हो गया था। सरकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी द्वारा पिछले वर्ष हरी झंडी दिखाए जाने के बाद कृषि मंत्री शरद पवार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती का समर्थन किया था।

रमेश ने कहा कि उन्होंने यह निर्णय एम.एस.स्वामीनाथन जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों से सलाह लेने के बाद लिया है। उन्होंने कहा, "मैंने कई सारे वैज्ञानिकों से बातचीत की, लेकिन इस मामले में विज्ञान नाकाफी है।"

देश में बीज नीति होनी चाहिए :

रमेश ने देश के लिए एक बीज नीति बनाए जाने की जरूरत पर भी जोर दिया।

रमेश ने यहां संवाददाताओं से कहा, "हमारे पास एक बीज नीति होनी चाहिए और मैं सोचता हूं कि बीज उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि अंतरिक्ष और परमाणु रिएक्टर। हमारे पास 2004 से ही बीज अधिनयम लंबित पड़ा हुआ है। हमें अपने बीज उद्योग की ओर देखने की जरूरत है। मैं सार्वजनिक क्षेत्र के बीज उद्योग की मौलिक प्रधानता में विश्वास करता हूं।"

रमेश ने कहा कि भारतीय कृषि क्षेत्र को निजी क्षेत्र के बीज उद्योग पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

रमेश ने कहा, "मैं मानता हूं कि कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के लिए सार्वजनिक क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है। हम कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र की जैव प्रौद्योगिकी पर निर्भर नहीं रह सकते। स्वास्थ्य और उद्योग क्षेत्र की जैव प्रौद्योगिकी की बात अलग है लेकिन कृषि क्षेत्र की जैव प्रौद्योगिकी सबसे अनूठी है।"

रमेश के अनुसार यदि जीन परिवर्धित दोनों फसलें (बीटी बैंगन और बीटी कॉटन) सार्वजनिक क्षेत्र से आई होतीं तो वर्तमान विवाद पैदा नहीं हुआ होता।

रोक का स्वागत :

बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती पर रोक लगाए जाने की घोषणा का किसान संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है।

पर्यावरणवादी कार्यकर्ताओं का संगठन ग्रीनपीस ने जयराम रमेश के इस निर्णय को एक अच्छा कदम करार दिया है। ग्रीनपीस पिछले वर्ष से बीटी बैंगन के विरोध में देशव्यापी अभियान चला रखा है।

ग्रीनपीस के कार्यकर्ता जय कृष्णा ने कहा, "देश में टिकाऊ कृषि और खाद्य सुरक्षा का रास्ता तैयार करने की दिशा में यह रोक एक अच्छा कदम है। भारतीय कृषि को प्रदूषित करने वाले बीटी बैंगन को अनुमति न देने के पर्यावरण मंत्री के निर्णय का हम स्वागत करते हैं।"

जय कृष्णा ने कहा है, "रमेश को राष्ट्र को विश्वास दिलाना चाहिए कि इस रोक के बाद बीटी बैंगन की या 41 अन्य जीन परिवर्धित फसलों की पिछले दरवाजे से अनुमति नहीं दी जाएगी।"

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा, "हम पहली बार एक ऐसी फसल के जीन परिवर्धित बीज की बात कर रहे हैं, जो हमारे अधिकांश घरों में लगभग प्रतिदिन इस्तेमाल किया जाने वाला खाद्य पदार्थ है। बैंगन का हमारे भोजन में सीधा इस्तेमाल किया जाता है देश के कई हिस्सों में इसे कच्चा भी खाया जाता है। इसलिए हमें इस खाद्य पदार्थ की समीक्षा करने में अति सावधानी बरतने की आवश्यकता है।"

जीएम फ्री इंडिया अभियान और खेती विरासत मिशन (पंजाब) की कविता कुरुगंथी ने कहा, "जयराम रमेश ने बहुत ही समझदारी के साथ काम किया है और यह रोक बहुत ही सकारात्मक घटना है। लेकिन जो उन्होंने किया है, उस काम को नियामक प्राधिकरण (जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी) को करना चाहिए था। इससे यह साबित होता है कि हमारे देश के संपूर्ण नियामक व्यवस्था में कितने बदलाव की जरूरत है।"

कोलकाता के वैज्ञानिक और रिसर्च कम्युनिकेशन एंड सर्विसिस सेंटर के सचिव अंशुमान दास ने कहा, "इस निर्णय से निश्चित रूप से देश भर के वैज्ञानिकों को, सामाजिक कार्यकर्ताओं को और किसानों को राहत मिली है। लेकिन इसने इस चिंता को भी जन्म दिया है कि सरकार बाद में इसे गुप्त रूप से अनुमति दे देगी।"

बैंगन उत्पादक राज्यों, उड़ीसा और कर्नाटक के किसानों ने भी सरकार के इस निर्णय पर खुशी जाहिर की है।

पश्चिम उड़ीसा कृषिजीवी संघ के अध्यक्ष जगदीश प्रधान ने कहा, "केंद्र सरकार का यह समझदारी भरा निर्णय है।"

कर्नाटक रायथा संघ के अध्यक्ष कोदीहल्ली चंद्रशेखर ने कहा, "यह निर्णय किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हित में है। हम उम्मीद करते हैं कि जयराम और उनकी सरकार इस निर्णय पर अडिग बने रहेंगे।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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