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अमिताभ से दर्द बांटना चाहते हैं मुजफ्फरनगर के 'ऑरो'

By Staff
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मुजफ्फरनगर, 21 दिसम्बर (आईएएनएस)। अमिताभ बच्चन की फिल्म 'पा' के ऑरो से कहीं कठिन जिन्दगी मुजफ्फरनगर के दो बच्चे वर्षो से जी रहे हैं। वे तिलतिल कर जिन्दगी का एक-एक दिन गुजार रहे हैं। इन बच्चों के माता-पिता की इच्छा है कि अमिताभ बच्चन इन बच्चों से मिलकर इनकी पीड़ादायक जिंदगी से साक्षात्कार करें।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर जनपद गन्ना, गुड़ व स्टील उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहां के कुछ लाल फिल्म पा के ऑरो के किरदार की तरह ऐसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं कि उन्होंने अपने जीवन में खुशियों का सूरज नहीं देखा है। वे पा जैसी बेदम जिन्दगी ढोते आ रहे हैं।

शहर के कृष्णापुरी क्षेत्र में पैदा हुई बच्ची स्मृति (परिवर्तित नाम) के पिता एक सरकारी महकमे में बाबू हैं। करीब 19 साल पहले जब उनके यहां स्मृति का जन्म हुआ तो खुशियां मनाई गईं। जब वह सात साल की हुई तो उसे एक ऐसी बीमारी ने घेर लिया कि वह फिर कभी बिस्तर से उठने के काबिल न हो सकी।

उसके माता पिता के अनुसार उसे उस समय तेज बुखार हुआ था। बुखार के बाद उसने स्नान कर लिया,अचानक ही उसके हाथ पैर अकड़ गए। चिकित्सकों से इस बारे में सलाह ली गई तो उन्होंने बुखार से कमजोरी होना बताया।

उसके बाद स्मृति के लिए अपने पैरों पर खड़े होना बीते कल की बात बनती चली गई। कुछ चिकित्सकों ने बताया कि उस पर पोलियो के वायरस का असर हुआ है। अब उसका शरीर ऐसा है कि जैसे वह एक प्लास्टिक की हर तरफ मुड़ने वाली गुड़िया हो।

इस बालिका के माता पिता ने इलाज के लिए उसे विशाखापट्नम, दिल्ली सहित तमाम शहरों में दिखाया। विशाखापट्टनम में तो उसका चार बार ऑपरेशन भी किया गया ताकि उसका आगे का जीवन कामयाब हो जाए। लेकिन अब उसका चलना फिरना भी मुश्किल है। शरीर ऐसा है कि जैसे एक मुठ्ठी में भर लो।

चिकित्सकों को चुनौती देने वाली इस बेनाम बीमारी में ही वह अपने जीवन के 19 साल पूरे कर चुकी है, लेकिन अभी भी उसे कोई ऐसा चिकित्सा संस्थान व चिकित्सक नहीं मिला जो उसे इस कष्ट से मुक्ति दिला सके।

परिजन उस पर अपनी सारी दौलत न्योछावर कर बस उसके चेहरे पर आम लोगों जैसी मुस्कान देखना चाहते हैं।

कुछ इसी स्थिति से गुजर रहा बालक आभास (परिवर्तित नाम) 24 जनवरी, 1994 को जब इस दुनिया में आया था तो परिवार में भारी उत्साह था क्योंकि वह अकेला नहीं आया था उसके साथ उसका जुड़वा भाई प्रभात (परिवर्तित नाम) भी आया था। लेकिन समय के साथ दोनों जुड़वां भाइयों की कहानी नदी के दो किनारों की तरह हो गई।

इस परिवार के लिए इन बच्चों के साथ एक झोली में फूल और एक में कांटे की कहावत चरितार्थ हुई। आभास का जुड़वा भाई अब 10 वीं कक्षा का छात्र है। लेकिन आभास ने स्कूल तो क्या, अपना बचपन भी नहीं देखा। वह जब दो माह का था तो एक बेनाम बीमारी ने उस पर अचानक हमला बोल दिया। आज वह 15 वर्ष का है लेकिन उसकी लम्बाई दो फुट वह चेहरा हाथ पैर सब कुछ कुरूप है। वह दो तीन साल का बच्चा लगता है। पैरों से खड़ा नहीं हो पाता है।

भूख लगती है तो कुछ कह नहीं पा सकता है। खाना भी नहीं चबा सकता है। उसकी माता के अनुसार उसके इलाज पर खूब पैसा खर्च हुआ लेकिन चिकित्सा विज्ञान भी असफल साबित हुआ। हर तरफ प्रयास किया गया लेकिन असफलता मिली।

आज वह पा के ऑरो से भी बदतर जिन्दगी जी रहा है। परिवार में उसे अकेला नहीं छोड़ा जाता है।

उसका भाई प्रभात उसको बहुत प्यार करता है। आभास इतना समझता है कि वह उसका भाई है। हल्की मुस्कुराहट के साथ अपने भाई को बेबसी से निहारता है।

इन दोनों बच्चों के परिवारों को अब इतने बरस बाद भी उम्मीद है कि उसे ठीक कर ऑरो के घर से बाहर निकालने वाला कोई मिलेगा। इलाज के खर्च से आर्थिक रूप से खोखले हो चुके इन बच्चों के परिजनों को किसी ऐसी संस्था अथवा व्यक्ति की तलाश है जो बच्चों को लेकर सही मागदर्शन दे सकें। साथ ही वे अमिताभ बच्चन से भी चाहते हैं कि वे मुजफ्फरनगर आकर इन बच्चों के दर्द को महसूस करें।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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