आडवाणी ने ब्लाग पर की चावला को हटाने की पैरवी
आडवाणी ने कहा, "नवीन चावला से संबंधित ताजा विवाद की तुलना चुनाव आयोग से संबंध अनुच्छेद 324 के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय से संबंध अनुच्छेद 124 से करनी बेहतर होगी।"
अनुच्छेद 124 में यह प्रावधान है कि न तो प्रधान न्यायाधीश और न ही सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को संसद में पारित महाभियोग के अलावा किसी दूसरे तरीके से पद से हटाया जा सकता है।
आडवाणी ने रविवार को अपने ब्लॉग पर लिखा है, "चुनाव आयोग के मामले में इस तरह का संरक्षण केवल मुख्य चुनाव आयुक्त को दिया गया है और न कि चुनाव आयुक्तों को।"
उन्होंने कहा, "अन्य चुनाव आयुक्तों के बारे में संविधान कहता है कि उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना नहीं पद से नहीं हटाया जा सकेगा।"
मुख्य चुनाव आयुक्त ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने 'भेदभाव' का आरोप लगाते हुए चावला को हटाने की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति ने पत्र को प्रधानमंत्री के पास भेज दिया। इस बीच चावला ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया।
आडवाणी ने लिखा है, "भाजपा की तरफ से अरुण जेटली ने ठीक कहा था कि अनुच्छेद 324 (3) में प्रयोग किया गया 'अनुशंसा' शब्द निश्चित तौर पर सिफारिश की जरूरत को रेखांकित करता है।"
उन्होंने कहा है, "जेटली ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंध अनुच्छेद 217 की ओर ध्यान आकृष्ट किया है, जिसमें प्रधान न्यायाधीश की सलाह लेने के बाद नियुक्ति की बात कही गई है, जिसमें उनकी सलाह को हमेशा बाध्यकारी माना जाता है।"
आडवाणी ने कहा, "ऐसे में पार्टी महसूस करती है कि नवीन चावला के बारे में गोपालस्वामी की सिफारिश सरकार को अवश्य माननी चाहिए।"
आडवाणी ने कहा कि इस विवाद ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के दौरान नई दिल्ली में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो के साथ हुई उनकी चर्चा की याद आती है।
आडवाणी ने उनसे पूछा था, "ब्रिटिश शासन के दौरान भारत और पाकिस्तान के नेता एक जैसी राजनीतिक संस्कृति से वाबस्ता हुए, ऊिर ऐस क्यों हुआ कि जहां भारत ने सफलता के साथ अपने लोकतंत्र को संभाला वहीं पाक में लोकतंत्र पूरी तरह विफल रहा।"
उन्होंने कहा कि बेनजीर का जवाब स्तब्ध करने वाला था। बेनजीर ने कहा कि आपके देश में लोकतंत्र के सफल होने के पीछे दो कारण है-एक तो आपकी सेना गैर राजनीतिक है और दूसरा, आपका चुनाव आयोग संवैधानिक रूप से स्वतंत्र है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।