एलिफैंट दर्रे के निकट पहुंची श्रीलंकाई सेना (लीड-1)
जाफना-कैंडी राजमार्ग पर स्थित ऐलिफैंट दर्रा किलिनोच्चि से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां सेना और तमिल विद्रोहियों के बीच भीषण संघर्ष जारी है। सेना का कहना है उसका अभियान लिट्टे नेता प्रभाकरण के अंत होने तक जारी रहेगा।
प्रभाकरण के मुल्लैतिवु जिले के घने जंगलों में भूमिगत बंकरों में छुपे होने की उम्मीद है। यहीं से उसने 1987-90 के दौरान भारतीय शांति सेना का मुकाबला किया था।
सेना के सूत्रों ने बताया, "तमिल विद्रोहियों के साथ लड़ाई चल रही है और सेना एलिफैंट र्दे से दो किलोमीटर पहले तक पहुंच चुकी है।" इससे पहले शुक्रवार को सेना ने लिट्टे की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले किलिनोच्चि इलाके पर कब्जा कर लिया था।
उल्लेखनीय है कि एलिफैंट दर्रा कभी श्रीलंका सेना का मजबूत गढ़ हुआ करता था। तमिल व्रिदोहियों ने अप्रैल, 2000 में इस पर कब्जा कर लिया था।
सेना ने शुक्रवार को लिट्टे की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले किलिनोच्चि इलाके पर कब्जा कर लिया था। सेना के अधिकारी ने बताया कि अब सैनिक लिट्टे के अंतिम ठिकाने मुल्लैतिवु जिले की ओर बढ़ चुके हैं।
दूसरी ओर कोलंबो से पत्रकारों का एक दल किलिनोच्चि पहुंचा और उसने वहां देखा कि सैनिक पूरे इलाके को खाली करा रहे थे।
किलिनोच्चि का दौरा करने वाले पत्रकारों का कहना है कि वहां आम नागरिक नहीं दिखे। पत्रकारों ने इलाके में गोलीबारी की आवाजें भी सुनीं।
श्रीलंकाई सेना की 57 वीं टुकड़ी के कमांडर मेजर जनरल जगथ दियास ने पत्रकारों को बताया कि उनके सैनिक तब तक राहत की सांस नहीं लेंगे जब तक मुल्लैतिवु के जंगलों से लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन को पकड़ नहीं लिया जाता।
इससे पहले श्रीलंकाई सेना की कामयाबी पर श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने कहा था, "यह सिर्फ लिट्टे के खिलाफ जीत नहीं है बल्कि आतंकवाद के खिलाफ चल रही अंतर्राष्ट्रीय लड़ाई की भी विजय है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।