असम हिंसा में मरने वालों की संख्या 49 पहुंची (लीड-2)
गुवाहाटी, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)। असम में भड़की जातीय हिंसा में मृतकों की संख्या बढ़कर 49 हो गई है, जबकि 10 हजार से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। हालांकि प्रशासन का कहना है कि राज्य में स्थिति सामान्य हो रही है।
असम सरकार के प्रवक्ता और स्वास्थ्य मंत्री हिमंत विस्व सरमा ने संवाददाताओं से कहा, "शुक्रवार को भड़की हिंसा के बाद से अब तक 49 लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें से 15 पुलिस गोलीबारी में मारे गए।"
सरमा ने कहा कि हिंसा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू जारी है। हिंसा में घायल आठ लोगों ने सोमवार को विभिन्न अस्पतालों में दम तोड़ दिया।
इस बीच सरकार ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में दो हजार अर्धसैनिक बलों को तैनात किया है।
स्वास्थ्य मंत्री सोमवार को आईएएनएस को बताया, "दारांग, उदलगुड़ी और बक्सा जिलों में हिंसा आदिवासी बोडो और अप्रवासी मुस्लिमों के बीच संघर्ष के कारण नहीं हुई। बल्कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) एक सुनियोजित साजिश के तहत क्षेत्र से सभी गैर बोडो लोगों को बाहर निकाल रहा है।"
गौरतलब है कि इलाके में हिंसक वारदातों और आगजनी की घटनाओं के कारण भयभीत ग्रामीण पलायन कर गए हैं।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि रविवार को केवल तीन गांवों में आगजनी की घटनाएं हुई, इसके अलावा हिंसा की किसी घटना का समाचार नहीं है।
शुक्रवार से भड़की हिंसा में 600 से भी अधिक मकानों में आग लगा दी गई है। इसके कारण बोडो क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के नियंत्रण वाले इलाके से करीब 60,000 लोग गांव छोड़कर चले गए हैं।
बीटीसी का निर्माण केंद्र सरकार ने बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करके वर्ष 2003 में किया था।
एनडीएफबी ने केंद्र सरकार के साथ वर्ष 2005 के बाद से ही संघर्षविराम कायम कर रखा है लेकिन उसने स्वतंत्र बोडो होमलैंड की अपनी मांग छोड़ी नहीं है।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि यह हिंदुओं और प्रवासी बांग्लादेशी मुस्लिमों का संघर्ष नहीं है। बल्कि यह एनडीएफबी का सुनियोजित कार्यक्रम है जिससे असम के मुसलमान, बंगाली हिंदू, सामान्य बोडो के साथ -साथ कुछ चाय बागानों के आदिवासी मजदूर भी प्रभावित हैं।
एनडीएफबी ईसाई बहुमत वाला संगठन है और इसका सरगना रंजन डेमरी बांग्लादेश से संगठन का संचालन करता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।