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लगातार बारिश से कालीन निर्यात का बाजार पड़ा ठंडा

By Staff
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वाराणसी, 27 जुलाई (आईएएनएस)। आकाश में मंडराते बादल और लगातार बरसती इन बूंदों ने किसानों के चेहरे भले ही खिला दिए हों, लेकिन कालीन व्यवसायियों के लिये तो इस साल की यह बारिश कहर बनकर टूटी है। पूर्वाचल में लगभग डेढ़ महीने से लगातार हो रही बारिश ने कालीन व्यवसाय की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है।

डालर बेल्ट के नाम से मशहूर भदोही में लगातार बारिश की वजह से एक तरफ करोड़ों रुपये का कालीन निर्यात होने से वंचित हो गया है, तो वहीं दूसरी तरफ हजारों कार्पेट मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट आ गया है। यदि कालीन निर्यातकों की बातों पर यकीन किया जाय तो लगभग पांच सौ करोड़ की कीमत का कालीन धूप न होने की वजह से फिनीशिंग के अभाव में निर्यात होने से वंचित रह गया है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि कार्पेट का व्यवसाय ऐसा व्यवसाय है कि इसमें नमी की नहीं सूखे की जरूरत होती है। और इस साल पिछले 13 जून से लगातार बारिश हो रही है। धूप न निकलने के कारण एक्सपोर्ट वाले कार्पेट की फिनिशिंग नहीं हो पायी है। जिसके कारण विदेशों से मिले आर्डर की सप्लाई रुक गयी है। भारी और लगातार बारिश ने सड़कों की हालत खराब कर दी है। जगह जगह पानी लगा हुआ है, सड़कें टूट गयी हैं। इस कारण नये ग्राहक आने से कतराने भी लगे हैं। जो आर्डर मिले हैं उनकी पूर्ति न हो पाने से विदेशी खरीदार काफी निराश हैं।

अखिल भारतीय कालीन निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि पटौदिया ने बताया कि यहां से कालीन विदेश भेजने का सबसे अच्छा समय जुलाई और अगस्त होता है लेकिन तब जब अप्रैल, मई और जून तीनों महीना धूप मिले। इस बार 13 जून से जो बरसात होनी शुरू हुई है तो आज तक धूप हुई ही नहीं। इससे जुलाई में जाने वाला सारा माल डम्प पड़ा हुआ है।

कालीन निर्यातक अशोक कपूर इस साल मानसून की खास मेहरबानी पर झुंझलाते हुए कहते हैं कि अमेरिका और यूरोप के होल सेलरों के पास अगस्त तक माल पहुंच जाना चाहिए, तभी वहां का रिटेलर माल को बाजार में सितंबर से अक्टूबर तक उतार पाता है। लेकिन इस बार ऐसा हुआ है कि जुलाई बीतने जा रहा है और हमारा माल अभी तक फिनीशिंग में भी नहीं गया है।

अशोक कपूर का एक स्पेन का आयातक जिसने इन्हें ई-मेल किया कि आवर कस्टमर आर वेरी नर्वस। आल इंडिया कार्पेट मेन्युफैक्च रर एसोसिएशन के सचिव एस. के. सिन्हा ने बताया कि ज्यादा नमीं कालीन के लिए घातक होती है। क्योंकि उनमें नमी आ जयेगी तो बुनाई नहीं हो पायेगी, धूप नहीं होगी तो रंगाई के बाद सूख नहीं पायेगा। और आप इस बार देख ही रहे हैं कि धूप डेढ़ महीने से हुई ही नहीं।

गौरतलब है कि कालीन निर्यात के लिए भदोही और मिर्जापुर को डालर बेल्ट कहा जाता है। क्योंकि पूरे भारत के कालीन निर्यात का 60 प्रतिशत कालीन सिर्फ इसी क्षेत्र से निर्यात किया जाता है जिसकी कीमत 1500 करोड़ के आस पास होती है। यही क्षेत्र ऐसा है जहां सभी प्रकार के कालीन जैसे हैण्ड नाटेड, हैण्ड टफ्टिंग, हैण्डलूम मेड, शैगी और इण्डो नेपाली मार्का कालीन का निर्माण होता है। और ये कालीन अमेरिका और यूरोप के बाजारों में खूब अकड़बाजी दिखाते थे। लेकिन सीजन की शुरुआत में ही इस बार मौसम ने धोखा दे दिया है, इसलिये डालर बेल्ट में घोर निराशा छायी हुई है।

जिस मेहनत और प्रतिस्पर्धा से भदोही और मिर्जापुर के कालीन निर्माताओं ने निर्यात में चीन को पछाड़ दिया था वही मेहनत अब प्रकृति की मेहरबानी के सामने हार चुकी है। ऐसा नहीं है कि इस मौसम में बारिश होती ही नहीं थी, होती थी लेकिन इतनी जबरदस्त बारिश और लगातार बारिश पिछले कई वषरें से नहीं हुई थी और कार्पेट ऐसा उद्योग है जिसमें ज्यादा और लगातार बारिश निर्यातकों के लिए तो नुकसानदायक होती ही है साथ ही रोज कमाने और रोज खाने वाले मजदूरों के लिए सबसे घातक होती है।

पिछले बारह वषरें से कालीन का काम करने वाले शिवानन्द बताते हैं कि लगातार बारिश होने के कारण हम लोगों का काम एक महीने बंद है, काम नहीं होने के कारण परिवार को उधार लेकर पालना पड़ रहा है, लेकिन अब तो मालिक भी उधार देने से कतराने लगे हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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