कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है यूनानी तिब्बिआ महाविद्यालय
नई दिल्ली, 5 जून (आईएएनएस)। भारत की पारंपरिक आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति को दशकों से बढ़ावा दे रहा यहां का 19वीं शताब्दी का आयुर्वेदिक यूनानी तिब्बिआ महाविद्यालय आज कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है।
नई दिल्ली, 5 जून (आईएएनएस)। भारत की पारंपरिक आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति को दशकों से बढ़ावा दे रहा यहां का 19वीं शताब्दी का आयुर्वेदिक यूनानी तिब्बिआ महाविद्यालय आज कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है।
महाविद्यालय को शीघ्र ही एक स्वायत्त विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किए जाने की योजना है लेकिन यहां शिक्षकों, प्रयोगशाला के तकनीकी कर्मचारियों के साथ-साथ अन्य कर्मचारियों की भी सख्त जरूरत है। फिलहाल यह दिल्ली विश्वद्यालय के अंतर्गत है।
महाविद्यालय के प्राचार्य अहमद यासीन ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, "महाविद्यालय की आधारभूत संरचनाओं के साथ-साथ मानव संसाधनों की कमी से भी हमलोग जूझ रहे हैं। ऐसे में इसे विश्वविद्यालय का रूप देना चुनौतीपूर्ण कार्य है।"
उन्होंने कहा, "दिल्ली सरकार हमें पूरा सहयोग दे रही है। अब बजट को लेकर भी किसी प्रकार की कठिनाई नहीं है लेकिन यहां अन्य कई चीजों को दुरुस्त किया जाना अभी बाकी है। फिलहाल हमलोग इस दिशा में काम कर रहे हैं।"
प्राचार्य ने बताया कि महाविद्यालय को अभी और अधिक शिक्षकों और प्रयोगशाला में काम करने वाले कर्मचारियों की जरूरत है। इसके अलावा हमें तत्काल 12वीं पास 70 कर्मचारियों की जरूरत है और इतनी ही संख्या में स्नातकोत्तर स्तर के कर्मचारियों की भी आवश्यकता है। धीरे-धीरे इन सभी कर्मचारियों की भर्ती की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के करोल बाग इलाके में स्थित 19वीं शताब्दी का यह महाविद्यालय देश के उन चंद महाविद्यालयों में है जो आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धति की शिक्षा एक साथ प्रदान कर रहा है।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय हकीम अजमल खान को जाता है। महात्मा गांधी ने वर्ष 1921 में इस महाविद्यालय का उद्घाटन किया था और वर्ष 1973 में इसे दिल्ली विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हुई थी।
महाविद्यालय पिछले कई दशकों से भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है। इसके परिसर में जांच घर के साथ-साथ हर्बल पार्क, दवाखाना और 210 बेडों वाला एक अस्पताल भी है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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