गांधी का 'हिन्द स्वराज' अभी भी सपना ही है: प्रभाष जोशी
भोपाल, 5 जून (आईएएनएस)। वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रभाष जोशी का मानना है कि महात्मा गांधी ने भले ही जीवनभर 'हिंद स्वराज' नामक अपनी पुस्तक में व्यक्त विचारों को ही अपना आदर्श माना हो, मगर भारत में आज भी हिंद स्वराज नहीं आ पाया है। गांधी के हिंद स्वराज को देश के उसी मध्यम वर्ग ने खारिज कर दिया, जिसे गांधी ने बार-बार चेताया था।
जोशी ने यह विचार बुधवार को यहां वरिष्ठ समाजवादी नेता एवं पत्रकार राजबहादुर पाठक की स्मृति में आयोजित वार्षिक व्याख्यानमाला में व्यक्त किए। 'हिन्द स्वराज' की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम के अन्य वक्ता थे वरिष्ठ आलोचक नंदकिशोर आचार्य और साहित्यकार वागीश शुक्ल।
उल्लेखनीय है कि यह वर्ष 'हिंद स्वराज' का शताब्दी वर्ष है और इसके निमित्त देश में यह पहला औपचारिक आयोजन था।
जोशी ने कहा कि महात्मा गांधी ने जीवनभर पश्चिमी सभ्यता को खारिज किया है और हिन्द स्वराज के लिए लड़ाई लड़ी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजाद भारत में हिन्द स्वराज नहीं आ पाया।
उन्होंने कहा कि गांधी के हिन्द स्वराज को उसी अंग्रेज परस्त मध्यम वर्ग ने खारिज किया, जिसके खिलाफ उन्होंने पूरे जीवन संघर्ष किया। महात्मा गांधी के लिए आचरण जीवन की अंतिम कसौटी रहा है। इसके विपरीत आज ऐसे समाज का निर्माण हुआ है जिसके विचारों और आचरण में समानता नहीं है।
वरिष्ठ आलोचक नन्द किशोर आचार्य ने कहा कि वर्तमान अर्थव्यवस्था ने हमारी जीवन शैली को अपनी गिरफ्त में ले लिया है जो हमारी इन्द्रियों को प्रभावित कर रही है। आज हम विकल्पहीनता के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में महात्मा गांधी का 'हिन्द स्वराज' ही विकल्प खोजने में हमारी सहायता कर सकता हैं। गांधी ने हिंद स्वराज में आचरण संबंधी बातें लिखी है । उन्होंने अपना राज पाने का रास्ता स्वदेशी को बताया है। उनका मानना था कि तकनीक से ही सभ्यता बनती है इसलिए स्वदेशी तकनीक से ही हम अपनी सभ्यता को हासिल कर सकते हैं।
इस मौके पर वागीश शुक्ला ने कहा कि महात्मा गांधी का सामाजिक सरोकारों से सीधा जुड़ाव रहा था, लेकिन आज के राजनेताओं को सामाजिक सरोकारों से कोई लेना-देना ही नहीं है।
इस अवसर पर राजबहादुर पाठक की स्मृति में पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिवर्ष दिया जाने वाला 'रक्त सूर्य' पुरस्कार जबलपुर के पत्रकार चैतन्य भट्ट को दिया गया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।