क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

भारत में 20 लाख बच्चे सड़कों पर, जानकारी सिर्फ 18 हजार की

Google Oneindia News

नई दिल्ली, 23 फरवरी। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किए एक हलफनामा में कहा है कि देश में कुल 17,914 बच्चे सड़कों पर या सड़कों पर रहने जैसे हालात में रह रहे हैं. इनमें से 10,359 लड़के हैं और 7,554 लड़कियां हैं.

आयोग के अनुसार इनमें से 9,530 बच्चे सड़कों पर अपने परिवारों के साथ रहते हैं और 834 बच्चे सड़कों पर अकेले रहते हैं. इनके अलावा 7,550 ऐसे बच्चे भी हैं जो दिन में सड़कों पर रहते हैं और रात में झुग्गी बस्तियों में रहने वाले अपने परिवारों के पास लौट जाते हैं.

(पढ़ें: युगांडा में सड़कों पर जीने वाले बच्चों का बढ़ता संकट)

धार्मिक स्थलों से ट्रैफिक सिग्नल तक

इन बच्चों में सबसे ज्यादा (7,522) बच्चे 8-13 साल की उम्र के हैं. इसके बाद 4-7 साल की उम्र के 3,954 बच्चे हैं. राज्यों की बात करें तो सड़कों पर सबसे ज्यादा बच्चे (4,952) महाराष्ट्र में हैं. इसके बाद स्थान है गुजरात (1,990), तमिलनाडु (1,703), दिल्ली (1,653) और मध्य प्रदेश का (1,492) है.

लगभग हर उम्र के लाखों बच्चे सड़कों पर हैं लेकिन सरकारों को उनकी सुध नहीं है

आयोग ने अदालत को बताया कि बच्चे सड़कों पर सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों, ट्रैफिक सिग्नलों, औद्योगिक इलाकों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों और पर्यटन स्थलों पर पाए जाते हैं. आयोग ने 17 राज्यों में ऐसे 51 धार्मिक स्थलों की पहचान की है जहां सबसे ज्यादा बाल भिखारी, बाल श्रमिक पाए जाते हैं और बच्चों का शोषण भी होता है.

(पढ़ें: घर महंगे होते हैं तो लोग कम बच्चे पैदा करते हैंः रिसर्च)

आयोग ने यह हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की प्रतिक्रिया के रूप में दायर किया है. आयोग ने अदालत को बताया कि ये आंकड़े राज्यों ने 15 फरवरी तक इकट्ठा किए थे और आयोग के वेब पोर्टल "बाल स्वराज" पर अपलोड किया था.

लेकिन आयोग ने यह भी कहा कि इससे पहले आयोग ने जब सेव द चिल्ड्रन एनजीओ को ऐसे बच्चों का पता लगाने के लिए कहा था तो एनजीओ ने सड़कों पर जीवन बिता रहे बच्चों की संख्या दो लाख बताई थी.

सही तस्वीर मालूम नहीं

हालांकि अदालत ने इन आंकड़ों पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि सड़क पर बच्चों की अनुमानित संख्या 15 से 20 लाख है और यह सीमित आंकड़े इस लिए सामने आ रहे हैं क्योंकि राज्य सरकारें राष्ट्रीय बाल आयोग के पोर्टल पर जानकारी डालने का काम ठीक से नहीं कर रही हैं.

बड़ी संख्या में बच्चों को बाल श्रम में भी झोंक दिया जाता है

अदालत ने राज्यों को यह कमी दूर करने की सख्त हिदायत दी. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को इन बच्चों के हालात सुधारने के लिए आयोग द्वारा सुझाए गए उपायों को लागू करने के लिए भी कहा. अभी तक इस समस्या से निबटने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कोई दिशा-निर्देश मौजूद नहीं हैं. इसलिए राज्यों द्वारा उठाए जा रहे कदमों में एकरूपता नहीं थी.

(पढ़ें: क्या कानून में संशोधन से रुकेंगे बाल विवाह)

इसे देखते हुए अदालत के आदेश पर आयोग ने कुछ कदम सुझाए हैं और अदालत ने राज्यों को इन सुझावों का पालन करने के लिए कहा है. अदालत ने विशेष रूप से पुलिस की भूमिका पर नाराजगी जताते हुए कहा कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का बिलकुल भी पालन नहीं हो रहा है.

अधिनियम के तहत जब भी किसी पुलिस अफसर को कोई बच्चा भीख मांगता हुआ दिखाई दे तो उसे कानूनी मामला दर्ज करना होता है और उस बच्चे की देखभाल सुनिश्चित करनी होती है. अदालत ने कहा कि किसी भी राज्य में यह नहीं हो रहा है और इस स्थिति को बदले जाने की जरूरत है.

Source: DW

Comments
English summary
20 lakh street children in india but information availabe only on about
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X