सब्जी बेचकर मां ने बेटे को बनाया डॉक्टर, अब उसी गांव में मां के नाम अस्पताल खोलेगा बेटा
अपने बच्चों की खुशी के लिए मां अपनी हर तकलीफ भूल जाती है। बच्चों के सपनों को अपना बना मां उन्हें पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत करती है। एक मां की ऐसी ही मेहनत से उसका बेटा सफल डॉक्टर बन पाया है।
लखनऊ। अपने बच्चों की खुशी के लिए मां अपनी हर तकलीफ भूल जाती है। बच्चों के सपनों को अपना बना मां उन्हें पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत करती है। एक मां की ऐसी ही मेहनत से उसका बेटा सफल डॉक्टर बन पाया है। लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से एमडी की डिग्री पूरी करने वाले गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. मेघनाथन अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपनी मां को देते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी मां ने सब्जी बेचकर उन्हें पढ़ाया-लिखाया।
मां ने सब्जी बेचकर बेटे को पढ़ाया
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में मंगलवार को 14वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया। इसमें डॉ. मेघनाथन भी हैं, जिन्होंने पीडियाट्रिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किया। एनबीटी की खबर के अनुसार डॉ. मेघनाथन ने ये मुकाम हासिल करने के लिए काफी मेहनत की है। एमबीबीएस में कॉलेज के दूसरे ही साल में पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां ने सब्जी बेचकर उन्हें पढ़ाया। उन्होंने बताया कि पिता की मौत के बाद घर में कोई कमाने वाला नहीं था।
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'जब पढ़ाई छोड़ने का फैसला लिया तो मां ने दी हिम्मत'
खुद मेघनाथन के पास भी कमाई का कोई जरिया नहीं था। उन्होंने घर जाकर मां-बहन की देखभाल करने का फैसला लिया, लेकिन मां ने उनका हौसला बढ़ाया। मां ने उन्हें समझाया कि वो अपनी पढ़ाई जारी रखें और पिता की इच्छानुसार एक अच्छे और काबिल डॉक्टर बनें। मेघनाथन ने बताया, 'मेरी समझ नहीं आया कि सब कैसे होगा, लेकिन ऊपरवाले और मां पर सब छोड़कर मैं अपने कॉलेज वापस आ गया। मैं ये सोचकर रोता था कि मां मेरे सपनों के लिए सब्जी बेचती है।' डॉ. मेघनाथन ने बताया कि उनकी मां ने कभी उन्हें कभी नहीं बताया कि कॉलेज फीस भरने के लिए वो सब्जी बेचती हैं।
मां के नाम पर खोलेंगे बच्चों का अस्पताल
मेघनाथन ने कहा कि जब वो घर पर होते तो मां सब्जी बेचने नहीं जाती, ताकि उन्हें इस बारे में पता न चल जाए। इसलिए वो जानूबझकर अपने घर ज्यादा नहीं रुकते। डॉ. मेघनाथन ने अपनी पूरी सफलता का श्रेय अपनी मां को दिया है। अह वो अपने गांव में मां के नाम पर बच्चों का अस्पताल खोलना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि सभी बच्चों को बेहतर इलाज मिल सके। वो अपने गांव में ही एक अस्पताल में काम कर रहे हैं।
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