आपका नाम, बेचिए चाहे फेंकिए !
हरभजन सिंह बड़े नाम हैं। बेहतर क्रिकेटर हैं। उम्दा गुस्सैल-प्रवृति रखते हैं। एक व्यक्ति के अंदर इतनी सारी खूबियां होने के बावजूद वो नामी न हो यह संभव ही नहीं। दरअसल, आजकल जो माहौल है उसके तहत व्यक्ति को पैसा कमाने और बनाने का हर हुनर आना चाहिए। वो अपने नाम से ही नहीं बल्कि अपने बाल, आंख, नाक, कान के सहारे भी काफी कुछ कमा सकता है। यह दौर बाजार है। बाजार हमसे बेहतर जानता है, हमारी कीमत को। बाजार को अगर लगता है कि नाम से पैसा कमाया जा सकता है, तो उसकी सोच सही है। मैं तो कहूंगा हर व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम इतनी मेहनत तो करनी ही चाहिए कि वो अपने नाम की कमाई जिंदगी भर बैठकर खा सके। अपने नाम की लाइसेंसिंग बड़ी गजब की चीज है भाई।
खबर है, पर्सनालिटी लाइसेंसिंग का विश्व में अरबों डालर का करोबार है। विदेशों में कई मशहूर हस्तियां अपने काम की कमाई की अच्छी-खासी कीमत वसूल रही हैं। वैसे इस कॉस्पेट को हमारे यहां भी लागू किया जाना चाहिए। हर बड़ी और मशहूर हस्ती अपने नाम को बेचने में जागरूक बन सके। आखिर नाम उनका है, कहीं भी और किसी को भी बेचें।
वैसे नाम के बिकने-बिकाने की यह प्रक्रिया सही भी है। जब अपने देश में भूख, गरीबी और बदहाली को स्लमडॉग के मारफ्त बेचा जा सकता है, तो फिर अपना नाम बेचने में क्या हर्ज है? जब नेता से लेकर खिलाड़ी तब बिक सकते हैं, तो फिर नाम में ऐसे कौन से लाल लगे हैं? यहां तो हर बिकती और बेचे जाने वाली चीज सोना ही होती है। जब हमें किसानों की खेती और जमीन बिकने पर अफसोस नहीं होता, फिर नाम के बेचे जाने पर क्यों होगा!
हर चीज बिकने और बेचे जाने के लिए है, बस अंटी में नामा होना चाहिए। हरभजन सिंह न सिर्फ खिलाड़ी हैं वे बाजार के जानकार भी हैं। उन्हें मालूम है अपने नाम की कीमत और हैसियत। तभी तो वे उसको बेच रहे हैं। हां, अगर उनके इस कदम से अपने पेट में तकलीफ होती है, तो होए, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
सुना है, मैनेजमेंट गुरु शिव खेड़ा ने भी अपने नाम को ब्रांड बाजार में उतार दिया है। वे भी अपने नाम को बेचकर कमाई करेंगे। अच्छी सोच है। बिल्कुल कमाऊ। वैसे मुझे भी इस मामले में अब गंभीर होना पड़ेगा। शिव खेड़ा भी लेखक हैं और लेखक में भी हूं। हालांकि शिव खेड़ा जितनी नहीं मगर समाज के भीतर नाम और पहचान तो मेरी भी है। मैं भी अगर अपना नाम को किसी कंपनी को बेच देता हूं, तो कितना फायदा रहेगा। जितनी कमाई एक लेख लिखकर नहीं हो पाती, उससे कहीं गुना अपने नाम को बेचकर हो जाया करेगी। यानी घर बैठे, बिना किसी झंझट, अपने नाम की कीमत मुझे मिलने लगेगी।
सोचिए
जरा
कितना
सुखद
होगा
वो
क्षण
जब
मेरे
भी
नाम
से
बुक-स्टोर
होगा,
रेंस्टोरेंट
होगा
या
कोई
लिटरेरी
एकेडमी
होगी।
हर
कहीं
और
हर
जगह
मेरे
नाम
की
धूम
होगी।
बाजार
में
मेरे
नाम
बिकेगा।
बिके
नाम
की
कीमत
मुझे
मिलेगी।
एक
ही
झटके
में
सारे
पाप
धुल
जाएंगे।
बड़े
कद
का
लेखक
होकर
अपने
नाम
की
कमाई
करना
सचमुच
कितना
सुखद
रहेगा!
वैस
मेरी
यह
सलाह
आपके
लिए
भी
है।
अगर आप बड़े नाम हैं, तो आप भी अपने नाम को बेच ही डालिए। मतलब अपने नाम के बिकने को 'मुफ्त की कमाई' ही समझें। यह आपके नाम की 'बेशकीमती रॉयल्टी' है।
फिलहाल, मैं तो अपने नाम को बेचने का मूड बना चुका हूं, आप भी जल्द ही सोच लिजिए।