जानिए मुहूर्त कितने के प्रकार के होते हैं और क्या हैं इनका महत्व?
लखनऊ। एक दिन में कुल 30 मुहूर्त होते हैं। सबसे प्रथम मुहूर्त का नाम रुद्र है जिसके शुरु होने का समय प्रातः 6 बजे का है। इसके बाद क्रमशः हर अड़तालीस मिनट बाद आहि, मित्र, पितृ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सप्तमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर बुधन्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातृ, क्ण्ड, अदिति, जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम मुहूर्त होते हैं। वेद, स्मृति आदि धार्मिक ग्रंथों के आधार पर मुहूर्त संबंधि जानकारी देने वाले कुछ मुहूर्त विशेष ग्रंथ भी हैं जिनसे मुहूर्त संबंधि विस्तरित जानकारी मिल सकती है। इनमें मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि हैं। इसके साथ ही शुभ मुहूर्त जानते समय तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, अयन, चैघड़ियां एवं लग्न आदि का भी ध्यान रखा जाता है।
शुभ वार
सात वारों में रवि, मंगल और गुरु श्रेष्ठ है। इनमें भी गुरुवार को सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना गया है क्योंकि गुरु की दिशा ईशान है और ईशान में ही देवताओं का वास होता है।
चैघड़िया
- दिन और रात को मिलाकर 7 चैघड़िया होती हैं, जो वार अनुसार दिन और रात में बदलते रहते हैं। ये चैघड़िया है- शुभ, लाभ, अमृत, चर, काल, रोग, उद्वेग।
- शुभ चैघड़िया-शुभ, अमृत और लाभ चैघड़िया को ही श्रेष्ठ माना गया है उसमें भी शुभ चैघड़िया सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसका स्वामी गुरु है। अमृत का चंद्रमा और लाभ का बुध है। प्रत्येक चैघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। समयानुसार चैघड़िया को तीन भागों में बांटा जाता है शुभ, मध्यम और अशुभ चैघड़िया।
- शुभ चैघडियाः शुभ (स्वामी गुरु), अमृत (स्वामी चंद्रमा), लाभ (स्वामी बुध)
- मध्यम चैघडियाः चर (स्वामी शुक्र)
- अशुभ चैघड़ियाः उद्बेग (स्वामी सूर्य), काल (स्वामी शनि), रोग (स्वामी मंगल)
- महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्ष इसमें से शुक्ल पक्ष को श्रेष्ठ माना गया है। चंद्र के बढ़ने को शुक्ल और घटने को कृष्ण पक्ष कहते हैं। शुक्ल की पूर्णिमा और कृष्ण की अमावस्या होती है। दोनों पक्षों में शुक्ल पक्ष को ही शुभ कार्यों के श्रेष्ठ माना जाता है।
- शुभ एकादशी- प्रत्येक पक्ष में एक एकादशी और माह में दो एकादशी होती है। प्रत्येक वर्ष 24 और अधिकमास हो तो 26 एकादशियां होती हैं। प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व है। उनमें भी कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी श्रेष्ठ है। प्रदोष को भी श्रेष्ठ माना गया है।
- हिन्दू मास के नामः- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।
- शुभ महीने-चैत्र, वैशाख, कार्तिक, ज्येष्ठ, श्रावण, अश्विनी, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन श्रेष्ठ माने गए हैं उनमें भी चैत्र और कार्तिक सर्वश्रेष्ठ है।
- शुभतादायक पंचमी-प्रत्येक माह में पंचमी आती है। उसमें माघ मास के शुक्ल पक्ष की बसंत पंचमी श्रेष्ठ है। सावन माह की नाग पंचमी भी श्रेष्ठ है।
- श्रेष्ठ अयन-दक्षिणायन और उत्तरायण मिलाकर एक वर्ष माना गया है। छह माह का दक्षिणायन और छह का उत्तरायण होता है। सूर्य जब दक्षिणायन होता है तो देव सो जाते हैं और जब सूर्य उत्तरायण होता है तो देव उठ जाते हैं। अतः उत्तरायण श्रेष्ठ माना गया है।
- श्रेष्ठ अयन-दक्षिणायन और उत्तरायण मिलाकर एक वर्ष माना गया है। छह माह का दक्षिणायन और छह का उत्तरायण होता है। सूर्य जब दक्षिणायन होता है तो देव सो जाते हैं और जब सूर्य उत्तरायण होता है तो देव उठ जाते हैं। अतः उत्तरायण श्रेष्ठ माना गया है।
- श्रेष्ठ संक्रांति-सूर्य की 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति ही श्रेष्ठ है। सूर्यदेव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचते हैं तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन हो जाता है। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। 12 संक्रांतियों में से चार- मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति लाभकारी मानी गई हैं।
- उत्तम ऋतु-भारतीय परम्परा के अनुसार कुल 6 ऋतुयें मानी गई है। 1. बसंत ऋतु, 2.ग्रीष्म ऋतु, 3.वर्षा ऋतु, 4.शरद ऋतु, 5.हेमन्त ऋतु, 6.शिशिर ऋतु। छह ऋतुओं में वसंत और शरद ऋतु ही श्रेष्ठ है।
- अनुकूल नक्षत्र-नक्षत्र 27 होते हैं उनमें कार्तिक मास में पड़ने वाला पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ है। इसके अलावा अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रेवती नक्षत्र शुभ माने गए हैं।
शुभ एकादशी
प्रत्येक माह में पंचमी आती है
छह माह का दक्षिणायन और छह का उत्तरायण होता है
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