ऐसे बनाएं सर्वफल प्राप्ति शिवलिंग, होगी हर इच्छा पूरी...
नई दिल्ली। देवों के देव महादेव भोले भंडारी शिव अपने नाम के अनुरूप ही ब्रह्मांड के सबसे भोले भगवान माने जाते हैं। एक बार वे प्रसन्न हो गए तो भक्त उनका प्राणप्रिय बन जाता है। भोले भंडारी को प्रसन्न करने के लिए ना तो विशेष पूजन सामग्री की आवश्यकता पड़ती है और ना ही राजसी तैयारियों की। वे केवल मन से, भावना से, पूरी श्रद्धा से पूजे जाने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं।
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यही कारण है कि ब्रह्मांड के इस कर्ता धर्ता को रेत का शिवलिंग बनाकर पूरी श्रद्धा से फल फूल जल चढ़ाने मात्र से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। स्वयं पार्वती ने कोई साधन ना होने पर रेत का शिवलिंग बनाकर उपलब्ध फूल पत्र जल चढ़ाकर, निर्जला निराहार व्रत कर साक्षात उन्हें ही पति रूप में पा लिया था। अर्थात् शिव जी की कृपा पाने के लिए किसी विशेष आडंबर की आवश्यकता नहीं है।
आइए, आज जानते हैं शिवलिंग निर्माण की शास्त्रोक्त विधि
शिवलिंग निर्माण की शास्त्रोक्त विधि
शिव प्रकृति में रमने वाले, सृष्टि के कण-कण में बसने वाले देव हैं। इसीलिए उनकी पूजा के उद्देश्य से बनाए जाने वाले शिवलिंग के निर्माण, स्थापना और पूजन में सब प्राकृतिक वस्तुओं का ही समावेश होता है। शास्त्रीय विधि से शिवलिंग निर्माण के लिए इन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है-
- किसी भी प्रकार की मिट्टी या रेत
- कनेर के फूल
- सभी उपलब्ध फलों का रस
- गुड़
- मक्खन
- भस्म
- किसी एक प्रकार का अन्न
- गाय का गोबर
- गंगाजल
ईष्ट का स्मरण क
शिवलिंग निर्माण के लिए सबसे पहले स्नान कर, शुद्ध वस्त्र पहनकर ईष्ट का स्मरण करें। उनसे कृपा की याचना कर एक बड़े पात्र को सर्वप्रथम गंगाजल के छींटे देकर शुद्ध करें। अब जितना बड़ा शिवलिंग आप बनाना चाहते हैं, उसी के अनुरूप आवश्यकतानुसार उपरोक्त बताई गई समस्त सामग्री पात्र में लें और मिश्रित करें। सामग्री के अच्छी तरह एकसार हो जाने पर एक साफ स्थान को गंगाजल के छींटे देकर शुद्ध करें और अक्षत रखें। इसके उपर तैयार सामग्री से शिवलिंग का निर्माण करें। शिवलिंग का यह रूप स्वयं भोले भंडारी को अत्यंत प्रिय है। अतः इस प्रकार निर्मित शिवलिंग के पूजन से भक्तगण भगवान की विशेष कृपा के पात्र बन सकते हैं।
अंगूठे को भी पूज सकते हैं शिवलिंग की तरह
शिव प्रकृति से सरल देवता हैं। उनको पूजना, पाना दोनों ही आसान हैं। मन में केवल उन्हें पाने की आस होनी चाहिए, पूरी श्रद्धा से उन्हें पुकारा जाना चाहिए और वे अपने भक्त के लिए दौड़े चले आते हैं।
विशेष नियम पूर्ति की आवश्यकता नहीं
यही वजह है कि शिव पूजा के लिए किसी विशेष नियम पूर्ति की आवश्यकता नहीं होती। शिव महापुराण में बताया गया है कि यदि मन में इच्छा है, विश्वास है, तो शिव के निर्गुण रूप की उपासना भी उतना ही फल देती है।
साकार रूप की भी आवश्यकता नहीं
अर्थात् शिव को पूजे जाने के लिए मूर्ति निर्माण यानी उनके साकार रूप की भी आवश्यकता नहीं है। यदि निर्गुण पूजा में मन चंचल हो जाता हो तो कुछ ना होने पर भक्त एक बेर की स्थापना करके भी शिव का ध्यान कर सकता है। इसके भी अभाव में भक्त अपने अंगूठे को भी शिवलिंग मान कर अपने ईष्ट का स्मरण कर सकता है। इस प्रकार शिव का किसी भी रूप में स्मरण किया जाए, मन में केवल सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए, भोले बाबा प्रसन्न होते ही हैं।