Ratna (Gemstone or Precious Stone): जानियों रत्नों की उत्पत्ति कैसे हुई?
लखनऊ। जहां हजारों वर्षो से भारतीय ज्योतिर्विद मनीषियों ने रत्नों, रूद्राक्षों आदि की महिमा बताकर उसके सकारात्मक परिणामों और फलों को बताया वही वर्तमान वैज्ञानिकों से भी अनुसंधानों द्वारा सिद्ध भी किया है। वैज्ञानिकों ने पाया रत्नों, रूद्राक्षों पत्थरों में दिव्य रासायनिक सरंचना विद्यमान रहती है जिसके माध्यम से किसी जातक पर ग्रह, तारे के परिणामों को परिवर्तित कर उसके जीवन को सुखी बनाया जा सकता है।
रत्न क्या है?
यह एक बुनियादी सवाल है इसके द्वारा हम अशुभ निदान एवं चिकित्सा के बारे में नहीं सोच सकते। इसके लिए सबसे पहले जानना बहुत आवश्यक है। यू तो रत्न एक किस्म के पत्थर होते है लेकिन सभी पत्थर रत्न नहीं हो सकते है। यदि यह फर्क आ जाये तो पत्थर से रत्न निकाल सकते है और उनका प्रयोग मानव जीवन के हित के लिए कर सकते है। कुछ पत्थर या पदार्थो के गुण चरित्र एक विशेषताओं के आधार पर हम उन्हें पहचान सकते है जैसे-हीरा, माणिक्य, वैदूर्य, नीलम, पुखराज, पन्ना आदि।
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रत्न भाग्य परिवर्तन करते हैं
प्राचीन काल से ही रत्न का कार्य भूगर्भ या समुद्र तल से प्राप्त होने वाले हीरा, मोती, माणिक्य आदि समझा जाता है। रत्न भाग्य परिवर्तन करने में शीघ्र अति शीघ्र अपना प्रभाव दिखाता है। पृथ्वी के अन्दर लाखों वर्षो तक पड़े रहने के कारण पत्थर में पृथ्वी का चुम्बकरण तथा तेजत्व आ जाता है। पृथ्वी के जिस क्षेत्र में जिस ग्रह का असर अधिक होता है उस क्षेत्र के आस-पास उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न अधिक मात्रा में पाये जाते है। वास्तव में पृथ्वी ग्रहों के संयोग से अपने अन्दर रत्नों का निर्माण करती है। अतः रत्न उसे ही कहेंगे जिसका सौन्दर्य व लावण्य अत्याधिक टिकाउपन के गुण से भरपूर हो अर्थात जिसका सौन्दर्य व लावण्य अत्याधिक टिकाउपन के गुण लम्बे समय तक बरकरार व स्थिर रहें।
पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार राजा बलि के वध के निमित्त भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर उससे दान में तीन गज भूमि माॅगकर उसके अहंकार को समाप्त करने के साथ उसको वरदान भी दिया था। जिस समय भगवान के श्री चरणों से उसका शरीर स्पर्श हुआ उसकी देह रत्न स्वरूप हो गई थी। तब इन्द्र ने उसकी देह पर वज्र से प्रहार किया जिससे राजा बलि की रत्न रूपी देह खण्ड-खण्ड होकर विखर गई थी जिसे भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण उसे ब्रह्याण्ड में अवस्थित बारह राशि और नौं ग्रहों के अनुरूप अनुकूल बनाकर पृथ्वी पर फेंक दिया। पृथ्वी पर जहाॅ-जहाॅ रत्न गिरे वहाॅ-वहाॅ रत्नों की खाने बन गई।
- मुकूट-मूंगा
- मस्तक-हीरा
- स्वर-माणिक
- चित्त-पन्ना
- नेत्र-नीलम
- मन-मोती
- मांस-पुखराज
- भेद-गोमेद
- यज्ञोपवीत-लहसुनिया।
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