Roop Chaudas: रूप चतुर्दशी पर ग्रहों की पीड़ा से बचाएगा वैदिक उबटन
नई दिल्ली। कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह दिन रूप, सौंदर्य, आयु और आरोग्य की प्राप्ति का दिन है। इसके लिए उबटन लगाकर, तेल मालिश करने के बाद स्नान किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से रूप और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं यह दिन ग्रहों की पीड़ा दूर करने का दिन भी है। यदि आपकी जन्म कुंडली में कोई ग्रह पीड़ा दे रहा हो। किसी खराब ग्रह की महादशा, अंतर्दशा चल रही हो। शनि की साढ़े साती, ढैया या दशा चल रही हो तो भी व्यक्ति कई तरह की परेशानियों से घिरा रहता है।
किसी ग्रह की पीड़ा भोग रहे हैं तो
यदि आप भी किसी ग्रह की पीड़ा भोग रहे हैं तो इस दिन कुछ विशेष उपाय किए जाते हैं। इन उपायों में से एक है वैदिक उबटन। इस दिन विशेष उपाय से वैदिक उबटन तैयार किया जाता है और उसे पूरे शरीर पर लगाने के बाद शुद्ध जल से स्नान किया जाता है। इससे लाभ यह होता है कि सिर्फ पीड़ित ग्रह ही नहीं बल्कि सभी ग्रहों का शुभ प्रभाव इससे मिलने लगता है।
आइए जानते हैं यह उबटन बनता कैसे है...
ऐसे बनाएं वैदिक उबटन
इस उबटन को बनाने के लिए आपको नवग्रहों से जुड़ी हुई वस्तुएं लेना हैं। सूर्य-मंगल के लिए लाल चंदन पाउडर, चंद्र के लिए दही, बुध के लिए दूर्वा, बृहस्पति के लिए हल्दी पाउडर, शुक्र के लिए सफेद चंदन पाउडर, शनि के लिए तिल के कुछ दाने, राहु-केतु के लिए तिल का तेल। इन सभी सामग्री को मिलाकर अच्छे से बारीक पीस लें। अब इसे अपने मस्तक से प्रारंभ करते हुए पूरे शरीर पर अच्छे से लगाएं। यह उबटन लगाते समय आपको नवग्रह शांति मंत्र का जाप करना है।
ब्रह्मा
मुरारी
त्रिपुरांतकारी
भानु:
शशि
भूमि
सुतो
बुधश्च।
गुरुश्च
शुक्र
शनि
राहु
केतव
सर्वे
ग्रहा
शांति
करा
भवंतु।
उबटन को 24 मिनट लगा रहने के बाद शुद्ध जल से स्नान करें। स्नान के जल में गंगा, नर्मदा आदि किसी भी पवित्र नदी का जल डाल लें। इससे नवग्रह की पीड़ा शांत होगी।
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ये होते हैं लाभ
- शनि की साढ़ेसाती, ढैया, महादशा-अंतर्दशा की परेशानी से मुक्ति मिलती है।
- समस्त ग्रहों की शांति होती है। जो ग्रह कमजोर है उसे बल मिलता है।
- शुभ ग्रह बलवान बनते हैं और वे अधिक शुभ फल देने लगते हैं।
- जन्मकुंडली में अशुभ दोषों का प्रभाव कम होता हे।
- कुंडली के ग्रहण दोष, कालसर्प दोष, नाग दोष का निवारण होता है।
- जन्मकुंडली के अष्टम भाव में दूषित ग्रह हों तो मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। इस प्रयोग से वह संकट दूर होता है।
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