क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Mars: मंगल एक क्रूर ग्रह, जानिए इससे जुड़ी कुछ खास बातें

By Pt. Anuj K Shukla
Google Oneindia News

लखनऊ। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मतानुसार सौरमंण्डल के नवग्रहों में मंगल एक क्रूर ग्रह है। मंगल सीधा और सच्चा चलने वाला ग्रह है, यह एक पुरूष ग्रह और इसका रंग रक्तिम है तथा दक्षिण दिशा का यह स्वामी है। पित्त प्रकृति का यह ग्रह अग्नि तत्व प्रधान है। इसका प्रभाव शरीर के नाभिक्षेत्र पर होता है। यह धैर्य, साहस और वीरत्व गुणों का स्वामी, भाई का कारक तथा रक्त शक्ति का नियन्ता है। यह अनैतिक प्रेम का प्रतिनिधित्व भी करता है तथा पुलिस, सेना, शास्त्रागार तथा शल्यापचार कृर्मियों का भी अध्येता है।

 यह ग्रह मध्यम नहीं रह सकता

यह ग्रह मध्यम नहीं रह सकता

इस ग्रह की प्रमुख विशेषता यह है कि यह ग्रह मध्यम नहीं रह सकता। इसकी अशुभता एवं शुभता उच्चकोटि की होती है। वास्तव में मंगल न तो क्रूर है और न ही सौम्य बल्कि मंगल का अच्छा या बुरा न होना कुण्डली के स्वरूप पर निर्भर करता है। आईये जानते है कि कुण्डली में मंगल से बनने वाले शुभ व अशुभ योग हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करते है।

यह भी पढ़ें: मंगल को मजबूत करने के लिए कुत्तों को खिलाएं तंदूरी रोटीयह भी पढ़ें: मंगल को मजबूत करने के लिए कुत्तों को खिलाएं तंदूरी रोटी

 मंगल और भवन योग

मंगल और भवन योग

  • लग्नेश चतुर्थ भाव में स्थित हो और चतुर्थेश लग्न में स्थित हो तथा मंगल बलवान हो तो भवन योग बनता है।
  • यदि चतुर्थेश किसी शुभ ग्रहों के साथ युति करके केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित हो तथा मंगल स्वग्रही उच्च राशिस्थ मित्र ग्रही हो तो यह योग बनता है। ऐसे जातक को अपने परिश्रम से निर्मित भवन उत्तम होता है। और भवन में समस्त प्रकार सुख सुविधायें होती है।
  • चतुर्थ भाव में अगर चन्द्रमा और शुक्र स्थित हो या चतुर्थ भाव में कोई उच्च राशिगत ग्रह स्थित हो तथा मंगल बलवान हो तो ऐसा जातक बड़े बंगलों या महलों एक मात्र स्वामी होता है। ऐसे जातक के भवन के बाहर बगीचा, भवन में जलाशय एवं सुन्दर कलात्मक ढंग से बने भवनों के स्वामी होते है।
  • यदि चतुर्थेश केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तथा मंगल पूर्ण बलवान हो तो भवन योग प्रबल हो जाता है।
  • यदि सुखेश, दशमेश के साथ केन्द्र या त्रिकोण भाव में स्थित हो तथा मंगल स्वग्रही व उच्च राशिस्थ हो तो जातक के पास उत्तम श्रेणी का भवन होता है।
  • यदि चतुर्थेश एवं लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसे जातक को अचानक भवन की प्राप्ति होती है।
  •  नपुसंक योग

    नपुसंक योग

    • यदि मंगल विषम राशि तथा सूर्य सम राशि में स्थित हो एवं परस्पर दृष्ट युक्त हो तो नपुसंक योग होता है।
    • अगर चन्द्र सम व बुध किसी विषम राशि में स्थित हो और मंगल की दोनों पर दृष्टि हो तो नपुंसक योग होता है।
    • यदि चन्द्रमा शनि के साथ और मंगल चतुर्थ या दशम भाव में स्थित हो तो भी जातक संभोग में स्त्री को सन्तुष्ट नहीं कर पाता है।
    • यदि तुला राशि के चन्द्र को मंगल, सूर्य या शनि पूर्ण दृष्टि से देखते हो तो नपुंसक योग होता है।
    • अगर शनि मिथुन या कन्या राशि का षष्ठेश होकर मंगल के साथ स्थित हो तो जातक नपुंसक होता है किन्तु यदि स्त्री की कुण्डली में यह योग है तो स्त्री नपुसंक नहीं होती है।
    • मंगल और मृत्यु तुल्य योग

      • यदि चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हो, शनि दशम भाव मेें स्थित हो तो अपेंडिक्स होने से मौत हो सकती है।
      • अगर द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ, स्थान में चन्द्रमा एवं दशम स्थान में मंगल स्थित हो तो जातक कोई घाव या चोट लगती है। यह घाव नासूर के तरह फैलकर जातक को मृत्य प्रदान कर देता है।
      • यदि दशम भाव चन्द्रमा, सप्तम भाव में सूर्य तथा चतुर्थ भाव में मंगल स्थित हो तो अपवित्र स्थान में मृत्यू होती है।
      • अगर दशम भाव में सूर्य तथा चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो जातक की मृत्यु वाहन या हथियार से मृत्यु होती है।
      • सन्तानहीनता के विभिन्न योग

        सन्तानहीनता के विभिन्न योग

        • यदि लग्न में मंगल अष्टम स्थान में शनि स्थित हो तथा पंचम भाव में सूर्य स्थित हो तो ऐसे जातक का वंश की वृद्धि नहीं होती है।
        • लग्नेश से युक्त मंगल अष्टम स्थान मेें स्थित हो और पंचमेश क्रूर ग्रह के षष्ठांश में स्थित तो सन्तानहीनता का योग होता है।
        • यदि किसी स्त्री की कुण्डली में शनि मंगल छठें भाव या चतुर्थ भाव में स्थित हों तो ऐसी स्त्री गर्भ धारण करने योग्य नहीं होती है।
        • सर्प योग

          • यदि जातक की कुण्डली में लग्नेश राहु से युत हो तथा पंचमेश मंगल से युत हो, कारक गुरू राहु से युत हो तो सर्प श्राप से सन्तान की हानि होती है।
          • यदि जन्मकुण्डली में मंगल के अंश में मंगल से युत पंचमेश बुध हो और लग्न में राहु हो तो सर्प के श्राप से सन्तान की हानि होती है।
          • पंचम भाव में सूर्य, शनि मंगल, राहु, गुरू, बुध स्थित हो और पंचमेश एवं लग्नेश निर्बल हो तो सर्प के श्राप से सन्तान की हानि होती है।

यह भी पढ़ें: Vastu Tips: मकान बनाते समय भूखंड का रखें खास ख्यालयह भी पढ़ें: Vastu Tips: मकान बनाते समय भूखंड का रखें खास ख्याल

English summary
The aggressive planet of Mars is ruled by Fire, and is also called as the Agni Soochak. In many references in Vedic Astrology, Mars is also addressed as the Bhoomi Putra – the son of the mother Earth.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X